Navratri Kanya Pujan 2022: कल है नवरात्रि की नवमी तिथि, कन्या पूजन पर रखें इन बातों का ध्यान

Navratri Kanya Pujan 2022: नवरात्रि की पूजा बिना कन्या पूजन की अधूरी मानी जाती है. मां दुर्गा की पूजा में हवन, तप, दान से उतना प्रसन्न नहीं होती हैं जितना कन्या पूजन कराने से होती हैं. कन्या पूजन करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती है और आपकी सभी मनोकामना को पूरा करती हैं.

By Shaurya Punj | October 3, 2022 1:39 PM

Navratri Kanya Pujan 2022: हिंदू पंचाग के अनुसार इस बार  4 अक्टूबर को  शारदीय नवरात्रि की नवमी तिथि पड़ रही है. नवरात्रि के नौंवे दिन नवमी तिथि पर कन्या पूजन किया जाता है. इस दिन मां दुर्गा के नौंवे स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. 10 साल से कम उम्र की कन्याओं को देवी का रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है.

कन्या पूजन का महत्व

नवरात्रि की पूजा बिना कन्या पूजन की अधूरी मानी जाती है. मां दुर्गा की पूजा में हवन, तप, दान से उतना प्रसन्न नहीं होती हैं जितना कन्या पूजन कराने से होती हैं. कन्या पूजन करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती है और आपकी सभी मनोकामना को पूरा करती हैं. नवरात्र पर्व पर कन्याओं की पूजा की जाती है. इस पूजन में नौ साल की कन्याओं की पूजा करने का विधान है. कन्या पूजन से भक्त के पास कभी भी कोई दुख नहीं आता है और मां अपने भक्त पर प्रसन्न होकर मनवांछित फल देती हैं.

कन्या को इन चीजों का लगाएं भोग

कन्याओं को हलवा-पूड़ी और चने का भोग लगाया जाता है. इसके साथ ही आप उनकी पसंद के अनुसार खीर, मिठाई और फल का भोग भी लगा सकते हैं.

कन्याओं को दक्षिणा

कन्या पूजन में दक्षिणा का भी विशेष महत्व माना जाता है, कन्याओं को भोग लगाने के बाद आप उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार 11, 21, 51, 101, 501 रुपये की दक्षिणा दे सकते हैं. आप कन्याओं को गिफ्ट भी दे सकते हैं.

कन्या पूजन के नियम

कन्या पूजन करने से मां भगवती की कृपा प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि इनमें आदि शक्ति का वास होता है. कन्या पूजन के दौरान ध्यान रखें कि कन्याओं की उम्र दो से 10 साल की उम्र के बीच होनी चाहिए. इसके साथ ही एक बालक को जरूर आमंत्रित करें क्योंकि यह बालक बटुक भैरव और लागूंरा का रूप माना जाता है. आदि शक्ति की सेवा और सुरक्षा के लिए भगवान शिव ने हर शक्तिपीठ के साथ-साथ एक-एक भैरव को रखा हुआ है इसलिए देवी के साथ इनकी पूजा भी जरूरी मानी गई है. शक्तिपीठ के दर्शन के बाद अगर भैरव के दर्शन नहीं किए तो मां के दर्शन भी अधूरे माने जाते हैं.

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