नैमिषारण्य की मां ललिता देवी पूरी करती हैं भक्त की मनोकामना, 108 शक्तिपीठों में है दूसरा स्थान

88000 ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य आध्यात्मिक स्थानों में विशेष महत्व रखता है. पौराणिक आख्यानों के अनुसार इसकी महिमा सतयुग से चली आ रही है. इस पावन धरा पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम से लेकर शेषावतार बलराम ने धार्मिक यात्राएं की हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 29, 2023 2:34 PM

Naimisharanya maa lalita devi: भारत भूमि में सनातन धर्म के ऐसे विशेष धार्मिक स्थान हैं जहां की महिमा सुनकर आस्थावान व्यक्ति खींचे चले आते हैं. ऐसा ही एक स्थान उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के निकट है जोकि नैमिषारण्य के नाम से विख्यात है. 88000 ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य आध्यात्मिक स्थानों में विशेष महत्व रखता है. पौराणिक आख्यानों के अनुसार इसकी महिमा सतयुग से चली आ रही है. इस पावन धरा पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम से लेकर शेषावतार बलराम ने धार्मिक यात्राएं की हैं. परम तपस्वी महर्षि दधीचि से लेकर महर्षि विश्वामित्र ने तपस्या की है. सृष्टि के आदिपुरुष राजा मनु से लेकर राजा दिलीप ने ऋषियों की सेवा एवं तप किया है. ऐसी पावन धरा पर आदिशक्ति का जाग्रत स्थान है, जो कि ललिता देवी के नाम से जगत विख्यात है.

ललिता देवी मंदिर के रूप में जाना जाता है यह मंदिर

त्रिपुरसुंदरी, राजराजेश्वरी, श्रीमाता, श्रीमतसिंहासनेश्वरी जैसे अनेक पावन नामों से विख्यात मां ललिता देवी की पूरे भारत में बड़ी महिमा है. पुराणों में इनका वर्णन लिंग्धारिणी के नाम से आता है किंतु अब यह मंदिर ललिता देवी मंदिर के रूप में जाना जाता है.

नैमिषारण्य में यह दिव्य मंदिर सबसे प्रमुख

नैमिषारण्य में यह दिव्य मंदिर सबसे प्रमुख है जहां हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. इस स्थान की महिमा के बारे में कई पुराणों में लेख मिलता है. देवी कवच में माता ललिता को हृदय की रक्षा करने वाली शक्ति कहा गया है. इसलिए इनके दर्शन और ध्यान करने से हृदय की पीड़ा शांत होती है. वासंतिक नवरात्र में मंदिर के परिसर में सैकड़ों की संख्या में भक्त जन ललिता सहस्रनाम, दुर्गा सप्तशती, देवी कवच का पाठ कर माता की आराधना करते हैं.

देवी के 108 पवित्र स्थानों में है

श्रीमद्देवी भागवत महापुराण के अनुसार, परमभागवत परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने कृष्णद्वैपायन व्यास से देवी के जाग्रत स्थानों के बारे में प्रश्न पूछा तब उन्होंने देवी के 108 पवित्र स्थानों का वर्णन किया. तब व्यास जी ने 108 शक्ति पीठों में प्रथम वाराणसी की विशालाक्षी मंदिर और दूसरे स्थान पर नैमिष की देवी लिंगधारिणी मां ललिता का नाम वर्णित किया. जिसके कारण इनकी बड़ी महिमा है.

देवीभागवत के अनुसार

वाराणस्यां विशालाक्षी नैमिषेलिङ्गधारिणी .

ललिता सहस्त्रनाम के अनुसार,

आदिशक्ति रमेयात्मा परमा पावनाकृति .

अनेककोटि ब्रह्मांड जननी दिव्य विग्रहः ..

अर्थात आदिशक्ति मां ललिता परम पावन आकृति के रूप में सबकी आत्मा में रमने वाली शक्ति है. देवी ने अपने दिव्य श्रीविग्रहः से करोड़ों ब्रह्मांडों को उत्पन्न किया है. इस आख्यान के अनुसार, नैमिषारण्य में मां ललिता देवी सृष्टि के निर्माण से ही निवास कर रही हैं एवं इस पुण्यभूमि पर मां ने तप किया है.

एक बार दर्शन से ही कल्याण करती हैं मां ललिता

यहां आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि माता ललिता का दर्शन मात्र कर लेने से बड़े से बड़ा संकट कट जाता है और हृदय से कामना करने पर भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है . यहां पुत्र की कामना करने पर जिनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है वो अपने बच्चे का अन्नप्राशन और मुंडन संस्कार भी करवाते हैं . यहां हर महीने की अमावस्या पर मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के मंदिर में शीश झुकाते हैं . इसके अलावा वासंतिक और शारदीय नवरात्रि, पूर्णिमा और अन्य धार्मिक अवसरों पर भरी भीड़ जुटती है .

कैसें पहुंचे नैमिषारण्य तीर्थ

यह धार्मिक स्थल उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद में स्थित है . यह राजधानी लखनऊ से मात्र 90 किलोमीटर दूर है . यहां के नजदीकी रेलवे स्टेशन हरदोई और सीतापुर हैं, जहां से नैमिष की दूर लगभग 40 किलोमीटर है . आप बस, ट्रेन अथवा हवाई जहाज से लखनऊ तक आ सकते हैं . लखनऊ से सुबह 6 बजे शाम 5 बजे तक सरकारी बस कैसरबाग बस अड्डे से मिलती है .

पंडित विवेक शास्त्री

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