Nag Panchmi 2025: क्या इच्छाधारी नाग-नागिन लेते हैं जन्मों का बदला, पढ़ें हैरान करने वाली बातें

Nag Panchmi 2025: नाग पंचमी के पावन अवसर पर नाग देवता की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है. ऐसा विश्वास है कि इस दिन नाग पंचमी की कथा सुनने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है और जीवन में शांति एवं समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है. पढ़ें यह पौराणिक कथा.

By Shaurya Punj | July 29, 2025 8:25 AM

Nag Panchmi 2025: भारत में नाग-नागिन से जुड़ी कथाएं, लोककथाएं और धार्मिक विश्वास हजारों वर्षों से प्रचलित हैं. इनमें इच्छाधारी नाग और नागिन को सबसे रहस्यमयी और शक्तिशाली प्राणी माना जाता है.ऐसा माना जाता है कि ये नाग अपने पूर्वजन्म की स्मृतियों को याद रखते हैं और यदि उनके या उनके साथी के साथ कोई अन्याय होता है, तो वे बदला लेने की अद्भुत क्षमता रखते हैं.

पुराणों में इच्छाधारी नागों का वर्णन

हिंदू धर्मग्रंथों और पुराणों में इच्छाधारी नागों का अनेक बार उल्लेख हुआ है.कहा जाता है कि तपस्या या किसी विशेष वरदान के चलते ये नाग रूप बदलने की शक्ति प्राप्त कर लेते हैं.महाभारत में तक्षक नाग की कहानी प्रसिद्ध है, जिसने राजा परीक्षित की मृत्यु का बदला लिया था.इसके अलावा भी कई पुराणों और लोककथाओं में ऐसे नागों द्वारा बदला लेने की घटनाएं वर्णित हैं.

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ग्रामीण भारत में गहरी है इच्छाधारी नागों में आस्था

एक आम मान्यता के अनुसार, इच्छाधारी नाग अपने साथी की मृत्यु के समय वहां मौजूद व्यक्ति का चेहरा अपने मन में अंकित कर लेते हैं और उपयुक्त समय पर प्रतिशोध लेते हैं.खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में इस विश्वास की जड़ें आज भी गहरी हैं.नाग पंचमी जैसे त्योहार इसी श्रद्धा और भय के मिश्रण का प्रतीक माने जाते हैं, जब नागों की पूजा कर उनसे कृपा और सुरक्षा की कामना की जाती है.

विज्ञान की नजर में इच्छाधारी नाग सिर्फ कल्पना

हालांकि, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इच्छाधारी नाग-नागिन की धारणा को कोई प्रमाण नहीं मिला है.यह अवधारणा अधिकतर पौराणिक गाथाओं और सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित है.बावजूद इसके, आज भी भारत में बड़ी संख्या में लोग इस पर विश्वास करते हैं कि इच्छाधारी नाग होते हैं और वे न्याय के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.

वैज्ञानिक प्रमाण नहीं, फिर भी गहराई से जुड़ी आस्था

इच्छाधारी नाग-नागिन का अस्तित्व वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध नहीं है, लेकिन भारतीय परंपरा, आस्था और लोककथाओं में ये अब भी रहस्य और भक्ति का प्रतीक बने हुए हैं.