Malmas 2026: नववर्ष में दो महीने रहेगा मलमास, 13 महीनों का होगा साल, जानें पुरुषोत्तम मास का महत्व और नियम
Malmas 2026: नववर्ष 2026 में जेठ माह के दौरान मलमास लगने से साल 13 महीनों का हो जाएगा. यह अधिमास पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है. जानें मलमास क्यों पड़ता है, इसका धार्मिक महत्व क्या है और इस दौरान किन नियमों का पालन जरूरी है.
मार्कण्डेय शारदेय
(ज्योतिष और धर्मशास्त्र विशेषज्ञ)
Malmas 2026: नववर्ष 2026 धार्मिक दृष्टि से बेहद विशेष रहने वाला है. इस वर्ष जेठ माह में मलमास लगने जा रहा है, जिसे अधिमास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. पंचांग के अनुसार यह मलमास 17 मई 2026 से 15 जून 2026 तक रहेगा. इस दौरान शुभ और मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन और नए व्यवसाय की शुरुआत वर्जित मानी जाती है. मलमास के कारण वर्ष 2026 में 13 महीने होंगे, जो इसे ज्योतिषीय रूप से दुर्लभ बनाता है.
क्या है मलमास और क्यों पड़ता है?
मलमास हमारे प्राचीन खगोलविद और ज्योतिषाचार्यों की अद्भुत खोज है. इसका मूल उद्देश्य चंद्रमास और सौर वर्ष के बीच संतुलन बनाए रखना है. चंद्र वर्ष लगभग 354 दिनों का होता है, जबकि सौर वर्ष 365 दिनों का. इस अंतर को संतुलित करने के लिए लगभग हर ढाई से तीन वर्ष में एक अधिमास जोड़ा जाता है.
यदि यह व्यवस्था न होती, तो हमारे पर्व-त्योहार अपने मौसम से भटक जाते. कभी होली बरसात में और कभी दिवाली भीषण गर्मी या कड़ाके की ठंड में पड़ती. मलमास के कारण ही भारतीय पर्व अपने प्राकृतिक और मौसमी स्वरूप में बने रहते हैं.
क्यों कहलाता है पुरुषोत्तम मास?
मलमास को सामान्यतः अशुभ माना जाता है, लेकिन शास्त्रों में इसे पुरुषोत्तम मास कहकर विशेष सम्मान दिया गया है. पौराणिक कथा के अनुसार जब मलमास को कोई देवता या ग्रह स्वीकार नहीं कर रहा था, तब वह भगवान विष्णु की शरण में गया. भगवान विष्णु ने इसे अपना नाम दिया और कहा कि यह मास भक्ति, साधना और पुण्य कर्मों के लिए सर्वोत्तम होगा. तभी से इसे पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा.
पद्म पुराण के अनुसार पुरुषोत्तम मास की महिमा कार्तिक, माघ और वैशाख मास से भी कम नहीं, बल्कि कुछ मामलों में उनसे भी अधिक मानी गई है. इस माह में किया गया एक दिन का भी पुण्य कर्म कई गुना फल देता है.
पुरुषोत्तम मास में क्या करें?
इस मास में विशेष रूप से प्रातः स्नान, भगवान विष्णु की पूजा, नाम-स्मरण, जप, व्रत, दान और कथा श्रवण करना अत्यंत फलदायी माना गया है. विष्णु सहस्रनाम, श्रीमद्भगवद्गीता पाठ और तुलसी पूजन का विशेष महत्व है.
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस मास में किए गए कर्म नैमित्तिक होते हैं, यानी इनका पालन करना अनिवार्य माना गया है. शास्त्रों में इसकी अवहेलना को गंभीर दोष का कारण बताया गया है.
पुरुषोत्तम मास की अवहेलना का फल
पौराणिक कथाओं में पुरुषोत्तम मास की अवहेलना के दुष्परिणामों का वर्णन मिलता है. दुर्वासा ऋषि और राजा अम्बरीष की कथा इसका उदाहरण है. मान्यता है कि इस मास का तिरस्कार करने से व्यक्ति को आर्थिक कष्ट, रोग, संतान सुख की कमी और मानसिक अशांति का सामना करना पड़ सकता है.
पद्म पुराण में यहां तक कहा गया है कि जो लोग इस मास का सम्मान नहीं करते, वे जन्म-जन्मांतर तक दुर्भाग्य, पराधीनता और संतोषहीन जीवन से ग्रस्त रहते हैं.
कौन से कार्य वर्जित हैं?
मलमास के दौरान विवाह, गृहप्रवेश, भूमि पूजन, नामकरण और नए व्यवसाय की शुरुआत नहीं की जाती. हालांकि दान, व्रत, तप, जप और भक्ति पर कोई रोक नहीं होती, बल्कि इन्हें विशेष फलदायी माना गया है.
क्यों है यह मास विशेष?
वस्तुतः पुरुषोत्तम मास आत्मशुद्धि और भक्ति का काल है. यह हमें भौतिक इच्छाओं से हटकर ईश्वर की ओर उन्मुख करता है. शास्त्रों में कहा गया है कि इस मास का सही पालन करने वाला व्यक्ति जीवन में स्थायी सुख और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करता है.
