Kartik Maas Katha: कार्तिक मास में पूजा के साथ जरूर करें इस कथा का पाठ, मिलेगा भगवान विष्णु का आशीर्वाद 

Kartik Maas Katha: कार्तिक मास को सनातन धर्म में बेहद पवित्र माना गया है. इस महीने पूजा-पाठ, दान, तुलसी पूजन और स्नान का खास महत्व होता है. कहा जाता है कि इस महीने भगवान विष्णु की आराधना के साथ-साथ कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए. इस आर्टिकल में हमने कार्तिक मास की एक कथा प्रस्तुत की है.

By Neha Kumari | October 7, 2025 6:41 PM

Kartik Maas Katha: कार्तिक मास बुधवार यानी 8 अक्टूबर 2025 से शुरू हो रहा है. यह महीना भगवान विष्णु को समर्पित है. माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु पूरी निष्ठा और विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसके जीवन से सारी परेशानियाँ दूर होती हैं और जीवन में शांति, स्थिरता और समृद्धि आती है. इस समय सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के बाद कथा का पाठ करना चाहिए. इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं.

कार्तिक मास की कथा

मान्यता है कि प्राचीन समय में एक ब्राह्मण पति-पत्नी नगर में रहते थे. दोनों रोज गंगा और यमुना नदी में स्नान करने जाते थे. नदी तक पहुँचने के लिए रोजाना दोनों को सात कोस पैदल चलकर जाना पड़ता था. इतना ज्यादा चलने के कारण ब्राह्मण की पत्नी थक जाती थी. ऐसे ही यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा.

एक दिन ब्राह्मणी ने अपने पति से अपनी व्यथा बताते हुए कहा, “काश हमारा कोई बेटा होता. यदि आज हमारा बेटा होता, तो उसकी बहू घर के काम संभाल लेती. हमारे लौटने तक खाना भी तैयार रहता, और हमें घर आने के बाद किसी चीज़ की चिंता नहीं करनी पड़ती.”
ब्राह्मण ने उसकी व्यथा समझी और कहा कि वह उसके लिए एक बहू लेकर आएंगे. इसके बाद ब्राह्मण ने एक पोटली में आटा और सोने के कुछ सिक्के रखकर यात्रा के लिए प्रस्थान किया.

रास्ते में उसे यमुना किनारे कुछ सुंदर लड़कियां खेलती हुई दिखाई दीं. उनमें से एक लड़की बहुत विनम्र थी. ब्राह्मण ने तय किया कि वह उसे अपनी बहू बनाएगा. उसने लड़की से कहा, “अभी कार्तिक मास चल रहा है, इस समय मैं केवल पवित्र स्थान पर ही भोजन करता हूँ. क्या मैं आज तुम्हारे घर भोजन कर सकता हूँ?” लड़की मान गई और उन्हें आदरपूर्वक घर लेकर आई.
 

ब्राह्मण ने लड़की की माता को आटे की पोटली देकर कहा कि वह उनके लिए आटा छानकर रोटी बनाए.जब लड़की की माँ ने आटा छाना, तो उसमें से सोने की मोहरें निकलीं. महिला ने सोचा कि ब्राह्मण अवश्य ही धनवान है. इसके बाद महिला ने अपनी पुत्री का विवाह ब्राह्मण से कर दिया और उसे ससुराल के लिए विदा कर दिया.

ब्राह्मणी की बहू जब घर में आई, तो सास को पहले शक हुआ, लेकिन बहू बहुत समझदार और मेहनती थी. वह प्यार से घर के सारे काम करती थी. वह कभी भी चूल्हे की आग बुझने नहीं देती थी और मटके में हमेशा पानी भरा रखती थी.

एक दिन गलती से चूल्हे की आग बुझ गई. घबराई बहू पड़ोसन के पास गई, लेकिन पड़ोसन ने उसे गलत सलाह दी. उसने कहा कि वह सास-ससुर की बात न माने और न ही घर के काम करे. बहू पड़ोसन की बातों में आ गई और सारे कामकाज करना बंद कर दिया तथा बात करने का रवैया भी बदल लिया. इससे सास-ससुर नाराज हो गए. उन्होंने उससे सातों कोठियों (भंडार घरों) की चाबियां ले लीं.

कुछ समय बाद बहू ने छुपकर कोठियों की चाबियां लेकर उन्हें खोल दिया. पहली कोठी में अन्न, दूसरी में धन, तीसरी में बर्तन, चौथी में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ रखी थीं. इसी तरह अन्य कोठियों में मूल्यवान चीजें मिलीं.

जब बहू सातवीं कोठी खोलने ही वाली थी, तो उसने दरार से देखा कि अंदर एक सुंदर युवक चंदन की चौकी पर बैठा माला जप रहा है. उसने पूछा, “आप कौन हैं?”
युवक ने कहा, “मैं तुम्हारा पति हूं, लेकिन दरवाज़ा तब खोलना जब मेरे माता-पिता आएं.”बहू ने उसकी बात मान ली.

इसके बाद बहू फिर से अपने सास-ससुर के साथ बहुत अच्छे से रहने लगी. इस बार सास-ससुर की उपस्थिति में उसने सातवीं कोठी का दरवाजा खोला, तो देखा कि अंदर पवित्र तुलसी, बहती हुई गंगा-यमुना और देवी-देवता विराजमान हैं. मां ने बेटे को पहचानने के लिए एक कठिन परीक्षा ली, जिसे उसने सच्चाई से पूरा किया. यह देखकर सास-ससुर बहुत खुश हुए और बहू को आशीर्वाद दिया.

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