kali Puja 2025: दिवाली की आधी रात को क्यों होती मां काली की पूजा? जानें महत्व
Kali Puja 2025: दिवाली में सभी लोग अपने घर में लक्ष्मी गणेश की पूजा करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं, इसी रात काली मां की भी पूजा होती है. आइए जानते हैं काली पूजन का महत्व.
kali Puja 2025: अमावस्या की रात को अक्सर ‘काली रात’ या ‘अंधकार की रात’ कहा जाता है. इस विशेष समय पर मां काली की आराधना इसलिए की जाती है क्योंकि उनका रौद्र रूप शांत होता है और वे अंधकार पर विजय प्राप्त करने वाली शक्ति का प्रतीक हैं. यह पूजा न केवल नकारात्मक शक्तियों को दूर करती है, बल्कि भक्तों को साहस, आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति भी प्रदान करती है.
क्यों होती है अमावस्या की रात काली मां की पूजा
अंधकार पर जीत का प्रतीक: अमावस्या का समय अंधकार और निष्क्रियता का प्रतिनिधित्व करता है. मां काली की पूजा इस बात का संदेश देती है कि अंधकार चाहे जितना भी घना हो, प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा अंत में उसकी जीत ले जाते हैं.
दुष्ट शक्तियों का नाश: मां काली की आराधना से नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियाँ दूर होती हैं. इससे भय, संकट और जीवन की बाधाएँ कम होती हैं और भक्त सुरक्षित महसूस करते हैं.
आत्मविश्वास और साहस का संचार: उनकी पूजा करने से व्यक्ति के भीतर साहस, धैर्य और आत्मविश्वास बढ़ता है. जीवन में आने वाली मुश्किलों का सामना आसानी से किया जा सकता है.
आध्यात्मिक उन्नति: माना जाता है कि मां काली की भक्ति से आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह पूजा मन और आत्मा दोनों के लिए संतुलन और शांति लाती है.
विशेष साधना का अवसर: कुछ परंपराओं में, अमावस्या की रात तंत्र-मंत्र और आध्यात्मिक साधना के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस समय की पूजा से साधना में अधिक शक्ति और सफलता मिलती है.
अमावस्या को हुआ था मां काली का जनम
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही मां काली प्रकट हुई थीं. इसे विशेष इसलिए माना जाता है क्योंकि इस समय उन्होंने बुराई और दुष्ट शक्तियों का नाश करने के लिए अवतार लिया. कथा कहती है कि जब राक्षसों और अधर्म का वर्चस्व बढ़ गया था, तब देवी दुर्गा के क्रोध से मां काली प्रकट हुईं और उन्होंने मधु और कैटभ जैसे राक्षसों का विनाश किया. इस दिन की पूजा से न केवल बुरी शक्तियाँ दूर होती हैं, बल्कि भक्तों को साहस और आंतरिक शक्ति भी मिलती है.
काली पूजन शुभ मुहूर्त
काली पूजा करने का सबसे अनुकूल समय मध्यरात्रि यानी निशिता काल माना जाता है. साल 2025 में यह पूजा 20 अक्टूबर की रात लगभग 11:30 बजे से 12:30 बजे तक की जाएगी. इस समय के दौरान श्रद्धा और भक्ति के साथ मां काली की आराधना करना शुभ और फलदायी माना जाता है.
दिवाली की आधी रात में मां काली की पूजा क्यों होती है?
यह समय ‘अंधकार की गहरी रात’ माना जाता है, जब मां काली का रौद्र रूप शांत होकर अंधकार पर विजय पाने वाली शक्ति का प्रतीक बनता है. पूजा से नकारात्मक ऊर्जा का नाश और भक्तों को साहस व आत्मविश्वास मिलता है.
काली पूजा का क्या आध्यात्मिक महत्व है?
मां काली की भक्ति से मन, जीवन और आत्मा में संतुलन और शांति आती है. इसे करने से बुरी शक्तियाँ दूर होती हैं और आध्यात्मिक उन्नति संभव होती है.
क्या अमावस्या को मां काली का अवतरण हुआ था?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक मास की अमावस्या को मां काली प्रकट हुई थीं और उन्होंने दुष्ट राक्षसों का संहार किया था।
काली पूजा के दौरान किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए?
पूजा शुद्ध स्थान पर, साफ़ वस्त्र पहनकर और मन को एकाग्र करके करनी चाहिए. दीपक जलाना, मंत्रोच्चारण और श्रद्धा से भजन करना शुभ माना जाता है.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी केवल मान्यताओं और परंपरागत जानकारियों पर आधारित है. प्रभात खबर किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है.
