jitiya Vrat Katha: क्यों किया जाता है जीवित्पुत्रिका व्रत? पौराणिक कथाओं में छिपा है व्रत का राज
Jitiya Vrat Katha: आज (14 सितंबर 2025) माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए जितिया का व्रत करेंगी. इस दिन पूजा-पाठ करने और जितिया व्रत से जुड़ी कुछ कथाएं सुनने का विशेष महत्व है. इस लेख में हमने जितिया व्रत से संबंधित जीमूतवाहन की कथा और चील-सियारन की कथा प्रस्तुत की है.
Jitiya Vrat Katha: आज (रविवार) जितिया का व्रत है. इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं और अपने संतान की लंबी उम्र तथा सुख-समृद्धि के लिए कामना करती हैं. आज के दिन पूजा-पाठ के साथ जितिया व्रत से जुड़ी कुछ विशेष पौराणिक कथाएं, जैसे जीमूतवाहन की कथा और चील-सियारन की कथा सुनना बेहद शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि सच्चे मन से पूजा-अर्चना के बाद कथा-पाठ करने से भगवान जीमूतवाहन प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं..
चील और सियारन की कथा
जितिया की प्रसिद्ध कथाओं में से एक है चील और सियारन की कथा. कहा जाता है नर्मदा नदी के किनारे एक जंगल में एक चील और एक सियारन रहते थे. दोनों बहुत अच्छे मित्र थे. एक दिन दोनों ने गांव की महिलाओं को जितिया व्रत की पूजा की तैयारी करते देखा. इसके बाद दोनों ने व्रत रखने का निश्चय किया.
दोनों ने विधि-विधान का पालन कर जितिया व्रत रखा, लेकिन कुछ समय बाद सियारन को भूख सताने लगी. वह भूख सहन न कर सकी और चोरी से भोजन कर लिया, जबकि चील ने पूरे नियम से व्रत पूरा किया.
अगले जन्म में दोनों बहन बनकर एक राजा के घर में जन्मीं. बड़ी बहन (सियारन) के बच्चे बार-बार मर जाते थे, जबकि छोटी बहन (चील) के बच्चे स्वस्थ रहते थे. जलन के कारण बड़ी बहन ने कई बार अपनी छोटी बहन और उसके बच्चों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुई. अंत में जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसने भी जितिया व्रत किया. इसके बाद उसे संतान सुख और बच्चों की लंबी उम्र का आशीर्वाद मिला.
जीमूतवाहन की कथा
जितिया व्रत की एक प्रसिद्ध कथा गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि जब जीमूतवाहन के पिता बूढ़े हो गए, तो उन्होंने अपना राजपाठ अपने बेटों को सौंप दिया और वानप्रस्थ आश्रम चले गए. जीमूतवाहन को राजा बनने का अवसर मिला, लेकिन उन्हें राजगद्दी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उन्होंने राज्य का कामकाज अपने भाइयों को सौंप दिया और स्वयं अपने पिता की सेवा करने के लिए जंगल में रहने लगे.
जंगल में रहते हुए जीमूतवाहन का विवाह मलयवती नाम की राजकुमारी से हो गया. एक दिन वे जंगल में घूम रहे थे, तभी उन्हें एक बूढ़ी औरत जोर-जोर से रोती हुई दिखी.
जीमूतवाहन ने उससे पूछा – “मां, तुम इतनी दुखी क्यों हो?”
तब उस महिला ने बताया – “मैं नागवंश की स्त्री हूं. मेरा एक ही बेटा है और मैं उसके बिना जी नहीं सकती. लेकिन हमारी प्रतिज्ञा है कि हर दिन हम अपने वंश का एक नाग पक्षियों के राजा गरुड़ को बलि स्वरूप देते हैं. आज मेरे बेटे शंखचूड़ की बारी है.”
यह सुनकर जीमूतवाहन ने उसे शांत करते हुए कहा – “मां, चिंता मत कीजिए. आज आपके बेटे को कुछ नहीं होगा. उसकी जगह मैं खुद बलि दूंगा.”
इसके बाद जीमूतवाहन ने उस महिला के बेटे शंखचूड़ से लाल कपड़ा लिया और बलि स्थल पर जाकर लेट गए. जल्द ही पक्षीराज गरुड़ वहां पहुंचे. उन्होंने लाल कपड़े में ढके हुए जीमूतवाहन को नाग समझ लिया और अपनी चोंच में दबाकर पहाड़ की ऊंचाई तक ले गए.
लेकिन जब गरुड़ ने देखा कि उनकी चोंच में दबा जीव लगातार कराह रहा है और रो रहा है, तो उन्हें आश्चर्य हुआ. उन्होंने तुरंत पूछा – “तुम कौन हो और यहां क्यों आए हो?”
तब जीमूतवाहन ने पूरी घटना उन्हें बताई कि किस तरह उन्होंने नागवंश की स्त्री से वादा किया और उसके बेटे की जगह खुद बलिदान के लिए तैयार हो गए. यह सुनकर गरुड़ जीमूतवाहन की निःस्वार्थ भावना और बहादुरी से बहुत प्रभावित हुए.
गरुड़ ने न केवल जीमूतवाहन को छोड़ा, बल्कि वचन दिया कि अब से वे कभी नागों से बलि नहीं लेंगे.
कहा जाता है कि तभी से संतान की रक्षा और लंबी उम्र के लिए जीमूतवाहन की पूजा और जितिया व्रत की परंपरा शुरू हुई.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी केवल मान्यताओं और परंपरागत जानकारियों पर आधारित है. प्रभात खबर किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है.
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