Jitiya Vrat Katha hindi: जितिया व्रत रखने के साथ ये कथा पाठ भी है जरूरी

Jitiya Vrat Katha hindi: हिंदू धर्म में जितिया व्रत जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखा जाता है. इस व्रत में माताएं निर्जला उपवास करती हैं और चिल्हो-सियारो तथा राजा जीमूतवाहन की कथा सुनना विशेष महत्व रखता है.

By Shaurya Punj | September 14, 2025 10:53 AM

Jitiya Vrat Katha hindi: हिंदू धर्म में जितिया व्रत का विशेष महत्व है. इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है. माताएं अपनी संतान की सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना से इस व्रत का संकल्प लेती हैं. इस वर्ष यह व्रत आज रविवार, 14 सितंबर 2025 को रखा जा रहा है. परंपरा के अनुसार, माताएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान और जल-भोजन कर व्रत की तैयारी करती हैं. इसके बाद सूर्योदय से लेकर अगले दिन तक महिलाएं निर्जला उपवास का पालन करती हैं.

जितिया व्रत से दो प्रमुख कथाएं जुड़ी हुई हैं—चिल्हो-सियारो की कथा और राजा जीमूतवाहन की कथा. इन दोनों का व्रत में विशेष महत्व है.

चिल्हो-सियारो की कथा

कहा जाता है कि एक वन में सेमर के पेड़ पर एक चील रहती थी और पास की झाड़ी में एक सियारिन का निवास था. दोनों में गहरी मित्रता थी. चील अपनी हर खुराक में से सियारिन के लिए हिस्सा जरूर रखती और इस तरह दोनों प्रसन्नतापूर्वक जीवन बिता रही थीं.

एक दिन उन्होंने देखा कि गांव की महिलाएं जितिया व्रत की तैयारी कर रही हैं. प्रेरित होकर दोनों सहेलियों ने भी यह व्रत करने का निश्चय किया. चील ने पूरे नियम से निर्जला व्रत रखा, लेकिन रात होते-होते सियारिन से भूख बर्दाश्त न हुई और उसने मांस व हड्डियां खा लीं. जब चील ने आवाज सुनी तो उसने कारण पूछा, जिस पर सियारिन ने झूठ बोल दिया. चील ने उसकी पोल पकड़ ली और कहा कि व्रत निभाना नहीं था तो संकल्प क्यों लिया.

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अगले जन्म में दोनों बहनें बनीं—सियारिन बड़ी बहन और चील छोटी बहन. बड़ी बहन (सियारिन) के संतान जीवित नहीं रहती थी जबकि छोटी बहन (चील) के बच्चे स्वस्थ और दीर्घायु हुए. ईर्ष्या में बड़ी बहन ने बच्चों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की, पर वे दिव्य कृपा से सुरक्षित रहे. अंततः बड़ी बहन को अपनी भूल का एहसास हुआ. उसने पश्चाताप करते हुए जीवित्पुत्रिका व्रत पूरे विधि-विधान से किया, जिसके बाद उसकी संतान भी सुरक्षित रहने लगी.

राजा जीमूतवाहन की कथा

गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन परोपकारी और त्यागी स्वभाव के थे. राजपाट मिलने के बाद भी उन्होंने राज्य का भार भाइयों को सौंप दिया और वन में पिता की सेवा करने लगे. वहीं उनकी मुलाकात राजकुमारी मलयवती से हुई और दोनों का विवाह हुआ.

एक दिन जीमूतवाहन ने एक वृद्धा को विलाप करते देखा. पूछने पर उसने बताया कि वह नागवंश की स्त्री है और उसका पुत्र शंखचूड़ आज गरुड़ के भक्षण हेतु बलि चढ़ाया जाएगा. यह सुनकर जीमूतवाहन ने पुत्र की रक्षा का संकल्प लिया. उन्होंने लाल वस्त्र ओढ़कर स्वयं वध्य-शिला पर लेट गए.

गरुड़ ने आकर उन्हें पंजों में दबोच लिया और चोट पहुँचाई. दर्द सहते हुए भी जीमूतवाहन कराहने लगे. आश्चर्यचकित गरुड़ ने सच्चाई पूछी. जीमूतवाहन ने बताया कि वे नाग-पुत्र की रक्षा के लिए स्वयं बलि देने आए हैं. उनकी निःस्वार्थ भावना से प्रभावित होकर गरुड़ ने उन्हें मुक्त किया, घाव भरे और वरदान मांगने को कहा.

जीमूतवाहन ने प्रार्थना की कि गरुड़ नागों को भक्षण करना छोड़ दें और अब तक जितनों की बलि ली है, उन्हें जीवनदान दें. गरुड़ ने यह वरदान स्वीकार किया. तब से ही मान्यता है कि जो स्त्री जीमूतवाहन की कथा सुनकर व्रत करती है, उसकी संतान मृत्यु के मुख से भी बच जाती है.

जितिया व्रत का धार्मिक महत्व

कहा जाता है कि यह कथा स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को कैलाश पर्वत पर सुनाई थी. इसलिए जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन भगवान गणेश, माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के बाद इन दोनों कथाओं का श्रवण करना आवश्यक माना गया है.