Jitiya Vrat 2025 Puja Vidhi: आज रखा जा रहा है जितिया व्रत, यहां से जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त से लेकर सबकुछ

Jitiya Vrat 2025 Puja Vidhi: संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाने वाला जीवित्पुत्रिका व्रत आज 14 सितंबर को अष्टमी तिथि पर मनाया जा रहा है. यहां जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और पारण की पूरी जानकारी.

By Shaurya Punj | September 14, 2025 7:12 AM

Jitiya Vrat 2025 Puja Vidhi: हर साल आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महिलाएं जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत करती हैं. यह व्रत विशेष रूप से पुत्र की दीर्घायु, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और कल्याण की कामना के लिए रखा जाता है. आज 14 सितंबर को महिलाओं द्वारा जितिया व्रत रखा जा रहा है.

व्रत की तिथि और समय

  • अष्टमी तिथि प्रारंभ: 14 सितंबर 2025, सुबह 5:04 बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 15 सितंबर 2025, सुबह 3:06 बजे
  • व्रत का दिन: रविवार, 14 सितंबर 2025
  • सरगही (ओठगन) मुहूर्त: सूर्योदय से पहले, प्रातः 5:53 बजे तक
  • पारण: सोमवार, 15 सितंबर 2025 को सुबह 6:27 बजे के बाद

जीवित्पुत्रिका व्रत की विशेषता

इस दिन पुत्रवती महिलाएं निर्जला और निराहार उपवास करती हैं. इसमें जल, अन्न, फल, दूध कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता और व्रती को दिनभर ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है.

 संतान की लंबी आयु के लिए आज रखा जा रहा है जीवित्पुत्रिका व्रत, इस आरती के बिना अधूरी रहेगी पूजा 

पूजा-विधि

  • शुभ मुहूर्त में एक पात्र में जल भरकर उसमें गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की प्रतिमा स्थापित करें.
  • जीमूतवाहन की पूजा फूल, अक्षत, माला, धूप-दीप से करें.
  • उन्हें खल्ली, सरसों का तेल, बांस के पत्ते और लाल-पीली रूई अर्पित करें.
  • मिट्टी व गोबर से मादा चील और मादा सियार की प्रतिमा बनाकर उन पर सिंदूर, केराव, खीरा, दही और चूड़ा अर्पित करें.
  • प्रतिमाओं के ललाट पर लाल सिंदूर से टीका करें.
  • इसके बाद महिलाएं जितिया व्रत कथा या जीवित्पुत्रिका व्रत कथा सुनें और संतान की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें.

पारण की विधि

15 सितंबर की सुबह सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जाता है. पारण में व्रती को रागी की रोटी, तोरई और नोनी साग की सब्जी का सेवन करना शुभ माना गया है.

व्रत का महत्व

  • धार्मिक मान्यता के अनुसार जितिया व्रत करने से संतान को दीर्घायु, सुख-समृद्धि और जीवन की बाधाओं से सुरक्षा प्राप्त होती है. इस व्रत से घर-परिवार में सुख-शांति और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है.
  • कथाओं के अनुसार, राजा जीमूतवाहन ने नाग जाति की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था. उनके इस त्याग की स्मृति में ही यह व्रत प्रारंभ हुआ और आज भी उतनी ही श्रद्धा से किया जाता है.