Holi 2023: आज मनाई जा रही है होली, देश के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे मनाया जाता है रंगों का त्योहार

Holi 2023, Happy Holi 2023, Holi festival history, importance, regional stories behind this: आज 8 मार्च को होली का त्योहार मनाया जा रहा है. आप सभी यह तो जानते होंगे की होली का त्यौहार रंगों के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है.

By Shaurya Punj | March 8, 2023 7:52 AM

Holi 2023, Happy Holi 2023, Holi festival history, importance, regional stories behind this celebration: आज 8 मार्च को रंगों का त्योहार यानी होली मनाया जा रहा है.  हर वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष के आखरी माह यानि के फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. आप सभी यह तो जानते होंगे की होली का त्योहार रंगों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है. जिसको लोग बहुत ही धूम धाम से मनाते है. देश के अलग-अलग क्षेत्रों में होली का त्योहार अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है.

देश के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे मनाया जाता है होली का त्योहार

देश के अलग-अलग क्षेत्रों में होली का त्योहार अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है. मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है, जो मुख्य होली से भी अधिक जोर-शोर से खेली जाती है. ब्रज क्षेत्र में सबसे ज्यादा धूम-धाम से होली मनाई जाती है. खास तौर पर बरसाना की लट्ठमार होली बहुत मशहूर है. मथुरा और वृन्दावन में भी 15 दिनों तक होली की धूम रहती है. महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखा गुलाल खेला  जाता है. छत्तीसगढ़ में होली पर लोक-गीतों का प्रचलन है. 

प्रचलित कथा

रंगों की होली खेलने की परंपरा शुरू होने के पीछे एक और कथा है. कथा के अनुसार श्रीकृष्ण का रंग सांवला था जबकि राधारानी बहुत गोरी थीं. जब उन्होंने इस बात की शिकायत अपनी मैया यशोदा से की तो उन्होंने हंस कर टाल दिया. लेकिन बार-बार शिकायत करने उन्होंने श्रीकृष्ण से कह दिया कि वे राधा को जिस रंग में देखना चाहते हैं, वो रंग राधा के चेहरे पर लगा दें. नटखट कन्हैया को मैया का सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने ग्वालों के साथ मिलकर कई तरह के रंग तैयार किए और बरसाना पहुंच कर राधा और उनकी सखियों को उन रंगों से रंग दिया. ब्रजवासियों को भी ये शरारत पसंद आई और उस दिन से रंगों की होली खेलने की प्रथा की शुरुआत हो गई.

पूतना की कहानी की भी है मान्यता

कहा जाता है कि कंस (Kans) ने बालक कृष्ण को मारने के लिए राक्षसी पूतना को भेजा. पूतना की योजना थी कि वह विषयुक्त स्तनपान कराकर बाल कृष्ण को मार देगी. लेकिन, लीलाधर की लीलाएं बाल रूप में ही आरंभ हो चुकी थीं. बालक कृष्ण पूर्णतः सुरक्षित रहे और पूतना मृत्यु को प्राप्त हुई. ये दिन फाल्गुन पूर्णिमा का था, इसी दिन कृष्ण के बचने की खुशी में लोगों ने रंगों के साथ जश्न मनाया जो एक परंपरा बन गया.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. prabhatkhabar.com इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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