eid ul adha 2020: त्याग का दूसरा नाम है ईद-उल-अजहा

eid ul adha 2020: मानव जीवन में प्रत्येक त्योहार किसी घटना का स्मरण कराता है, ईद-उल-अजहा भी इसी की बानगी है. जब एक पिता ने ईश्वरीय आदेश के लिए अपने सबसे प्रिय की कुर्बानी पेश की. वास्तव में इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम और अंतिम जिल-हिज्ज त्याग और बलिदान का प्रतीक है. ईद-उल-अजहा या ईद-उल-जुहा को सामान्यत: कुर्बानी या बकरीद के नाम से भी जाना जाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 1, 2020 8:50 AM

eid ul adha 2020: मानव जीवन में प्रत्येक त्योहार किसी घटना का स्मरण कराता है, ईद-उल-अजहा भी इसी की बानगी है. जब एक पिता ने ईश्वरीय आदेश के लिए अपने सबसे प्रिय की कुर्बानी पेश की. वास्तव में इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम और अंतिम जिल-हिज्ज त्याग और बलिदान का प्रतीक है. ईद-उल-अजहा या ईद-उल-जुहा को सामान्यत: कुर्बानी या बकरीद के नाम से भी जाना जाता है. यहूदी, ईसाई और इस्लाम तीनों ही धर्म में पैगंबर इब्राहीम (अ) का वर्णन है. दुनियाभर के मुस्लिम हज के अवसर पर मक्का जाते हैं. इस दौरान वे पैगंबर इब्राहीम (अ) की सुन्नत अदा करते हैं.

कैसे आबाद हुआ मक्का

शिक्षाविद् रांची के डॉ शाहनवाज कुरैशी ने बताया कि इस्लामिक मान्यता के अनुसार धरती पर ईश्वर का संदेश सुनाने एक लाख चौबीस हजार नबी आये. इब्राहीम (अ) ने ईश्वरीय आदेश से अपनी पत्नी हाजरा (अ) को सुनसान रेगिस्तानी इलाके (वर्तमान मक्का) में लाकर खाने-पीने का कुछ सामान के साथ छोड़ दिया. बकौल कुरआन-ऐसी जगह जहां किसी प्रकार की उपज नहीं होती थी. जब खाने-पीने का सामान खत्म हुआ और इस्माइल (अ) प्यास से तड़पने लगे, तो हाजरा पानी की तलाश में सफा और मरवा पहाड़ियों के बीच दौड़ लगाती है. हज के मौके पर हाजरा की स्मृति में हजयात्री दोनों पहाड़ों के बीच दौड़ लगाते हैं.

इधर प्यासे इस्माइल के एड़ी रगड़ने से वहां पानी निकल पड़ता है. दूसरा तथ्य यह है कि अल्लाह के हुक्म से फरिश्ते जिब्राइल (अ) ने अपने पंख को जमीन पर मारा, जिससे पानी का स्रोत फूट पड़ा. हाजरा यह देख जमजम पुकारती है अर्थात ‘ठहर जा-ठहर जा’. कुछ दिनों उपरांत वहां से जुरहूम नामक कबीला गुजरा, तो हाजरा से अनुमति लेकर वहीं बस गया. इस्माइल (अ) की शादी भी उसी कबीले की एक युवती सैयदा बिंत मजाज से हुई. धीरे-धीरे वहां की आबादी बढ़ती चली गयी और कई कबीले के लोग वहां आकर बसने लगे. आज मक्का, रियाद और जेद्दाह के बाद मुल्क का तीसरा सबसे आबादी वाला शहर है.

जमजम की विशेषता

पश्चिम में लाल सागर, दक्षिण में अदन की खाड़ी और पूर्व में फारस की खाड़ी के बीच स्थित सऊदी अरब में कोई भी नदी नहीं है. इस्लामिक इतिहास में जमजम के पानी का विशेष महत्व है. यह कुआं काबा के परिसर में मकाम-ए-इब्राहीम के करीब स्थित है. जमजम का पानी विश्व भर में हजयात्रियों के माध्यम से पहुंचता है. जमजम का कुआं 1.08 से 2.66 मीटर चौड़ा और 30 मीटर गहरा है. कुएं में लगे मोटरों से प्रति सेकंड आठ हजार व प्रति मिनट चार लाख 80,000 लीटर पानी निकाला जाता है. यह कुआं सिर्फ 11 मिनट में फिर से भर जाता है. जिस कारण कुएं में पानी का स्तर कभी कम नहीं होता है. लगभग 4000 वर्षों से इसका पानी कभी नहीं सूखा और न इसके पानी के स्वाद में कभी बदलाव हुआ. इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन इंटरनेशनल के अनुसार जमजम श्रेष्ठ पेयजल है.

काबा का निर्माण

काबा का शाब्दिक अर्थ ऊंचा या उठा हुआ है. इस्लामिक मान्यता के अनुसार काबा का निर्माण इब्राहीम (अ) ने पुत्र इस्माइल (अ) के सहयोग से किया. इसके निर्माण में तीन पहाड़ों कोहे अबूकबीश, हीरा और वरकान के पत्थर लगाये गये. शुरुआती निर्माण के समय इसकी ऊंचाई नौ हाथ थी. इसका निर्माण लगभग एक महीने में किया गया. निर्माण के दौरान दो विशेष पत्थरों का इस्तेमाल किया गया. एक को काबे की दीवार में लगा दिया गया, जिसे संग-ए-असवद कहा जाता है.

काबा की परिक्रमा करते समय इसे बोसा दिया जाता है. पैगंबर मुहम्मद (स) ने ऐसा किया था. दूसरा पत्थर वह है, जो निर्माण के समय आवश्यकता अनुसार बड़ा या छोटा हो जाता था. इस पत्थर को अभी एक शीशे में घेर कर रखा गया है. इसे मकाम-ए-इब्राहीम के नाम से जाना जाता है. पैगंबर मुहम्मद (स) के काल में बाढ़ के कारण काबा क्षतिग्रस्त हुआ, जिसका पुनर्निर्माण रोम निवासी याकूम की देख-रेख में कराया गया. वर्तमान समय में काबा की लंबाई 42.2 फीट (12.86 मी), चौड़ाई 36.02 फीट (11.03 मी) और ऊंचाई 43 फीट (13.1 मी) है. दुनिया भर के मुस्लिम काबा की ओर चेहरा कर नमाज पढ़ते हैं.

(लेखक 2017 में भारतीय हज मिशन के तहत सऊदी अरब में प्रतिनियुक्त थे)

News posted by : Radheshyam kushwaha

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