Premanand Ji Maharaj: नौकरी से निकाला तो क्या अधिकारी को लगेगा पाप? जानिए प्रेमानंद महाराज का जवाब
Premanand Ji Maharaj: कई नौकरीपेशा लोग अपने जीवन में कभी न कभी ऐसी परिस्थितियों से जरूर गुजरते हैं, जब उनकी नौकरी चली जाती है या उन्हें काम से निकाल दिया जाता है. इससे उन्हें और उनके परिवार को कष्ट सहना पड़ता है. ऐसे में सवाल उठता है कि जिन लोगों ने उन्हें काम से निकालकर उनके जीवन-यापन के साधन पर रोक लगा दी है, क्या उन्हें पाप का दोषी माना जाएगा?
Premanand Ji Maharaj: नौकरी केवल एक शब्द नहीं, बल्कि कई लोगों के जीवन जीने का जरिया होती है. नौकरी के बारे में कहा जाता है कि यदि परिवार में किसी एक व्यक्ति को भी अच्छी नौकरी मिल जाए, तो वह पूरे परिवार की किस्मत बदल देता है. वह घर की सभी जिम्मेदारियां और दायित्व संभाल लेता है.
लेकिन कई बार ऐसा होता है कि नौकरी लगने के कुछ समय बाद ही कंपनियां कर्मचारियों को काम से निकाल देती हैं. इससे केवल उस व्यक्ति की आय ही नहीं रुकती, बल्कि उसके और उसके परिवार के जीवन-यापन का साधन भी छिन जाता है. इससे उस व्यक्ति और उसके पूरे परिवार को कष्ट और दुख सहना पड़ता है.शास्त्रों में दूसरों को कष्ट और दुख देना पाप माना गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि जिन लोगों के कारण किसी की नौकरी जाती है, क्या उन्हें भी पाप लगता है?
क्या कर्मचारियों को बर्खास्त करने से पाप लगता है?
वृंदावन स्थित प्रेमानंद महाराज के आश्रम पहुंचे एक व्यक्ति ने यही सवाल रखा. उसने कहा, “महाराज, कई बार हमें कर्मचारियों को निकालना पड़ता है, लेकिन वे इसका दोष हमें देते हैं. क्या इसका पाप हमें लगेगा?”इस पर प्रेमानंद महाराज ने कहा कि सबसे पहले यह देखना जरूरी है कि क्या कर्मचारी स्वयं किसी गलती का दोषी है. क्या उसने ऐसा कोई कर्म किया है, जिसके कारण उसे दंड मिलना चाहिए?
उनका कहना है कि यदि किसी ईमानदार और कर्मठ कर्मचारी को बिना कारण निकाला जाता है, तो उसका दोष जरूर लगता है, क्योंकि इससे केवल उस व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि उस पर निर्भर पूरे परिवार को कष्ट पहुंचता है.
किन परिस्थितियों में कर्मचारी को बर्खास्त करना गलत नहीं है?
हालांकि, यदि कर्मचारी ने कोई दंडनीय कार्य किया हो, जिसके लिए उसे दोबारा मौका देना संभव न हो, तो ऐसे में उसे निकालना पाप नहीं माना जाता. ऐसे हालात में आप उसे काम से हटा सकते हैं.इसके अलावा, यदि किसी संस्था या व्यक्ति की आर्थिक क्षमता अधिक कर्मचारियों को रखने की न हो, और इस कारण कर्मचारी को हटाया जाए, तो इसे भी अपराध या पाप नहीं माना जाता.
यह भी पढ़ें: Premanand Ji Maharaj: अकाल मृत्यु पहले से तय या कर्मों का फल? प्रेमानंद जी महाराज ने बताया रहस्य
