Charanamrit significance: सनातन धर्म मे चरणामृत का महत्व, जानिए चरणामृत ग्रहण करने का सही तरीका
Charanamrit significance: सनातन धर्म में पूजा के बाद भक्तों को जो पवित्र जल दिया जाता है, उसे चरणामृत कहा जाता है. यह सिर्फ एक परंपरा नहीं है, बल्कि इसे करने से आध्यात्मिक लाभ और पुण्य की प्राप्ति होती है. पुराणों के अनुसार यह पुण्य वैसा ही होता है जैसा तीर्थ यात्रा करने, गंगा स्नान करने या यज्ञ में हिस्सा लेने से मिलता है.
Charanamrit significance: चरणामृत का मतलब है भगवान के चरणों से प्राप्त पवित्र अमृत. इसे केवल पानी से बनाया जा सकता है या पंचामृत से भी, जिसमें दूध, दही, घी, शहद और शक्कर मिलाई जाती है. पूजा में भगवान की मूर्ति या शिवलिंग का अभिषेक इसी पंचामृत से किया जाता है और यही भक्तों को चरणामृत के रूप में दिया जाता है. इसे ग्रहण करने से शारीरिक और मानसिक शांति मिलती है.
चरणामृत के महत्व
शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान विष्णु के चरणों से गंगा का स्रोत हुआ और पुराणों में कहा गया है कि भगवान के चरणों का जल सभी तीर्थ स्थलों से भी ज्यादा पवित्र होता है. शिवपुराण में लिखा है कि भगवान शिव के अभिषेक में प्रयुक्त जल भी मोक्ष देने वाला होता है. इसलिए चरणामृत सिर्फ एक परंपरा नहीं है, बल्कि यह पवित्रता, भगवान की कृपा और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है. इसे लेने से मन और आत्मा को शांति मिलती है, भक्त को शक्ति और हिम्मत मिलती है, और जीवन की परेशानियां दूर होती हैं. इसे ग्रहण करना तीर्थ यात्रा या गंगा स्नान करने के समान पुण्यदायक माना जाता है.
चरणामृत ग्रहण करने के तरीके
1. शुद्ध होकर ग्रहण करें – चरणामृत लेने से पहले स्नान या हाथ-पैर धोकर स्वच्छ होना जरूरी है.
2. दाहिने हाथ से लें – इसे हमेशा अपने दाहिने हाथ से लेना शुभ माना गया है.
3. भक्ति और श्रद्धा के साथ लें – चरणामृत को हल्के में नहीं लेना चाहिए, इसे पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ पीना चाहिए.
4. गिरे हुए चरणामृत को न लें – अगर चरणामृत जमीन पर गिर जाए तो उसे नहीं लेना चाहिए.
5. ग्रहण के बाद कुछ समय मौन रहें – चरणामृत लेने के बाद भगवान का स्मरण करते हुए कुछ समय चुप रहना लाभकारी होता है.
चरणामृत के लाभ
1. तीर्थों के समान पुण्य देता है
पुराणों में कहा गया है कि चरणामृत पीने से वैसा ही पुण्य मिलता है जैसा तीर्थ यात्रा, गंगा स्नान या यज्ञ में भाग लेने से होता है. यह एक सरल लेकिन बहुत शक्तिशाली साधन है जो कम प्रयास में अधिक पुण्य प्रदान करता है. गंगा जल की तरह चरणामृत में भी पाप नाश करने की शक्ति होती है. शास्त्रों में लिखा है कि “चरणामृतं पानं पावनं पापनाशनम्।” इसका अर्थ है कि चरणामृत का सेवन पवित्रता लाता है और ज्ञात-अज्ञात पाप मिटाता है.
2. मन और शरीर की होती है शुद्धि
चरणामृत में उपयोग होने वाले पंचामृत के सभी तत्व स्वास्थ्य और पोषण के लिए लाभकारी हैं. दूध शरीर को ताकत देता है, शहद रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, दही पाचन सुधारता है, घी वात-पित्त संतुलित करता है और शक्कर ऊर्जा और ताजगी देती है. इन सबका संयोजन मानसिक शांति और सात्त्विक अनुभव प्रदान करता है.
3. ईश्वर की मिलती है कृपा
अगर चरणामृत श्रद्धा और भक्ति के साथ लिया जाए तो यह जीवन में ईश्वर की विशेष कृपा को आकर्षित करता है. यह दुर्भाग्य को भाग्य में बदलने में मदद करता है और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है.
4. घर में बनी रहती है सुख-शांति
नियमित रूप से चरणामृत लेने वाले घरों में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है. इससे अशांति, रोग और कलह दूर होते हैं और घर में सुख-शांति का वातावरण बनता है.
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