Shiv Chalisa Path: भोलेनाथ का दिन है सोमवार, जानें आज के दिन शिव चालीसा पढ़ने का सही समय और महत्व

Shiv Chalisa Path: सोमवार को भगवान शिव की उपासना का विशेष महत्व माना जाता है. इस दिन शिव चालीसा का पाठ करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, कष्ट दूर होते हैं और जीवन में शांति-सौभाग्य की वृद्धि होती है। जानें आज शिव चालीसा पढ़ने का शुभ समय और इसका धार्मिक महत्व.

By Shaurya Punj | December 8, 2025 5:59 AM

Shiv Chalisa Path: हिंदू धर्म में सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ को समर्पित माना गया है. यह दिन शिव उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि माना जाता है कि सोमवार को पूजा, मंत्र-जप और शिव चालीसा का पाठ करने से भगवान शिव तुरंत प्रसन्न होते हैं. भक्त इस दिन व्रत रखते हैं, मंदिर जाते हैं और जलाभिषेक करते हैं, ताकि जीवन की बाधाएँ दूर हों और सुख-समृद्धि बढ़े.

शिव चालीसा पढ़ने का सही समय

सोमवार को शिव चालीसा का पाठ ब्रह्म मुहूर्त में करना अत्यंत शुभ माना जाता है. यदि यह संभव न हो तो सूर्योदय के बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर भी पाठ किया जा सकता है. शाम के समय प्रदोष काल—यानी सूर्यास्त के करीब का समय—भी शिव चालीसा पढ़ने के लिए अत्यंत उत्तम माना जाता है. इस समय किया गया पाठ मन को शांति देता है और आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ाता है.

शिव चालीसा पढ़ने का महत्व

शिव चालीसा के नियमित पाठ से मन की अशांति दूर होती है और जीवन में स्थिरता आती है. सोमवार को यह पाठ करने से विशेष रूप से स्वास्थ्य समस्याएँ कम होने, आर्थिक स्थिति बेहतर होने और रिश्तों में मधुरता बढ़ने का आशीर्वाद मिलता है. शिव चालीसा का पाठ नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सद्भाव, साहस और आत्मविश्वास बढ़ाता है. माना जाता है कि जो भक्त सोमवार को भक्तिभाव से शिव चालीसा पढ़ते हैं, उन्हें भोलेनाथ उनकी मनोकामनाएँ अवश्य पूरी करते हैं.

सोमवार का दिन भक्तों के लिए समर्पण और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है—इसलिए आज शिव चालीसा का पाठ अवश्य करें.

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॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥

॥ चौपाई ॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ 4

मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥ 8

देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ 12

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ 16

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ 20

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ 24

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥

मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥ 28

धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥ 32

नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ 36

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ 40

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ॥