भक्ति अगाध अनंत के लोकार्पण में बोले अशोक वाजपेयी-भक्ति कविताओं में व्यक्ति की गरिमा का सहज स्वीकार भी था

Literature News : रजा न्यास के प्रबंध न्यासी और वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने कहा कि सदियों से निरंतर और देशव्यापी भक्ति चेतना को समेकित रूप में जानने समझने की जरूरत है, जिसके लिए भक्ति अगाध अनंत जैसे संचयन उपयोगी सिद्ध होंगे.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 5, 2025 8:20 AM

Literature News : ‘भक्ति अगाध अनंत’ हिंदी में अपने ढंग पहला महत्वपूर्ण कार्य है, जिसमें भारतीय भाषाओं के अधिकांश महत्वपूर्ण संत- भक्त सम्मिलित हैं. भारतीय भक्त कवियों के सामने पहले से दिया कोई आदर्श नहीं रहा और उन्होंने नए ढंग से भक्ति काव्य की रचना और पुनर्रचना की. विख्यात आलोचक प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल ने रजा न्यास द्वारा आयोजित ‘भक्ति अगाध अनंत’ के लोकार्पण समारोह में कहा कि परंपरा से प्राप्त अपने साहित्य को निरंतर देखना समझना चाहिए. इससे पहले प्रसिद्ध समाजशास्त्री आशीष नंदी और मंचासीन वक्ताओं ने माधव हाड़ा द्वारा संपादित ग्रन्थ ‘भक्ति अगाध अनंत’ का लोकार्पण किया.

परिचर्चा में कन्नड़ साहित्य के मर्मज्ञ सिराज अहमद ने ग्रंथ में सम्मिलित कवियों की चर्चा करते हुए कहा कि कन्नड़ के वचनकारों का भक्ति साहित्य बहुत अलग और महत्वपूर्ण है. उन्होंने अक्का महादेवी, बसवन्ना, अल्लम प्रभुदेव की रचनाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रसन्नता व्यक्त की कि संपूर्ण भारत के भक्ति साहित्य का यह चयन पाठकों को अपनी विरासत से जोड़ेगा. रजा न्यास के प्रबंध न्यासी और वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने कहा कि सदियों से निरंतर और देशव्यापी भक्ति चेतना को समेकित रूप में जानने समझने की जरूरत है, जिसके लिए भक्ति अगाध अनंत जैसे संचयन उपयोगी सिद्ध होंगे.

उन्होंने कहा भक्ति की कविता-सत्ता अपने सत्व में, प्रभाव में और व्याप्ति में जनतांत्रिक थी उसने धर्म, अध्यात्म, सामाजिक आचार-विचार, व्यवस्था आदि का जनतंत्रीकरण किया. वह एक साथ सौंदर्य, संघर्ष, आस्था, अध्यात्म, प्रश्नवाचकता की विधा बनी. यह अपने आप में किसी क्रांति से कम नहीं है. इस नई जनतांत्रिकता में व्यक्ति की सीमा और गरिमा का सहज स्वीकार भी था प्रायः सभी भक्त कवि अपनी रचनाओं में निस्संकोच अपने नाम का उल्लेख करते हैं. वाजपेयी ने संपादक माधव हाड़ा को निर्धारित समय में संचयन का कार्य पूरा कर सुंदर ढंग से प्रस्तुत करने के लिए मुक्त सराहना की.

परिचर्चा में संपादक प्रो माधव हाड़ा ने कहा कि भक्ति कविता परलोक व्यग्र कविता नहीं है अपितु यह जीवन की कविता है. भक्ति कविता का ईश्वर भक्तों का सखा, मित्र और प्रेमी है तथा उनकी पहुंच के भीतर है. हाड़ा ने कहा कि भक्ति कविता की निर्मिति में परंपरा से प्रदत्त स्मृति और संस्कार की भी निर्णायक भूमिका है.

आयोजन का एक और आकर्षण शास्त्रीय गायिका कलापिनी कोमकली का गायन भी था. कोमकली में गोरखनाथ का पद कौन सुनता कौन जागे हैं, नानकदेव का अब मैं कौन उपाय करूं, कबीर का गगन की ओट निसाना है भाई जैसे कुछ पदों के गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. आयोजन में प्रसिद्ध रंगकर्मी प्रसन्ना, आलोचक मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, रेखा अवस्थी, कवि प्रयाग शुक्ल, आलोचक अपूर्वानंद, कवि लीलाधर मंडलोई, सुमन केशरी, कथाकार प्रवीण कुमार, सोपान जोशी, पीयूष दईया, सिने विशेषज्ञ मिहिर पण्ड्या सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे.

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