आलम शाह खान की याद में उदयपुर में जुटे देश के प्रख्यात साहित्यकार

हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो असगर वजाहत ने आलम शाह खान की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि खान की कहानियां खुले अंत वाली होती हैं, जो पाठकों को मजबूत बनाती हैं. उन्होंने खान की प्रतिनिधि कहानियों की चर्चा करते हुए बताया कि अपने खास अंदाज के कारण वे अविस्मरणीय हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 19, 2023 1:00 PM

राजनेता जनता से शक्ति लेते हैं जबकि लेखक जनता को शक्ति देते हैं

उदयपुर में आयोजित एक साहित्यिक विमर्श में असगर वजाहत ने कहा कि अपने लोगों की स्मृतियों को बचाना जरूरी काम है क्योंकि इससे न केवल हम अपनी परंपरा को सुरक्षित रख पाते हैं बल्कि हमें आगे सही रास्ता खोजने में भी मदद मिलती है. राजनेता जहां जनता से शक्ति लेते हैं वहीं लेखक जनता को शक्ति प्रदान करते हैं. वजाहत ने इस अवसर पर आलमशाह खान पर केंद्रित एक वेबसाइट का लोकार्पण भी किया.

चिंताओं और तकलीफों के चितेरे कथाकार थे आलम शाह खान

सूचना केंद्र सभागार में यह कार्यक्रम राजस्थान साहित्य अकादमी तथा आलम शाह खान यादगार समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ. उद्घाटन सत्र में व्यंग्यकार फारुक आफरीदी ने कहा कि डॉ आलम शाह खान समाज के गरीब, पिछड़े, मजदूर और महिला वर्ग की चिंताओं और तकलीफों के चितेरे कथाकार थे. डॉ खान ने मानव अधिकारों के हनन को लेकर अपनी कहानियां लिखी और मजलूम, बेजूबान और हाशिये के समाज के पक्ष में खड़े होने का साहस दिखाया. लेखक प्रबोध कुमार गोविल ने कहा कि डॉ आलम शाह खान का नाम उनके लिए आकर्षण था, शाह साहब की कई कहानियां पढ़ी, उनकी कहानियों पर मजबूत पकड़ थी. उनके साहित्य पर लंबे समय पर चर्चा होती रहेगी. गोविल ने कहा कि अभी उनका उजाला और घना करने की जरूरत है, आंचलिक-जीवन पर उनकी गहरी पकड़ एक धरोहर है, उन्हें अपने जीवन में विभिन्न स्तरों पर लड़ाई लड़नी पड़ी, उनके अद्भुत लेखन के प्रति वे नतमस्तक हैं.

आलम शाह की कहानियां मनोरंजन के लिए नहीं थीं

मंच से वरिष्ठ साहित्यकार गोविंद माथुर ने कहा कि राजस्थान के लेखकों में शाह की चर्चा अधिक नहीं हुई, डॉ आलम शाह खान सर्वहारा वर्ग की कहानियां लिखते थे, उनकी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए हमें कोशिश करनी चाहिए. साहित्य अकादमी और अन्य संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए. जानेमाने लेखक डॉ सत्यनारायण व्यास ने कहा कि फासीवादी लोग पाखंड के बल पर सत्ता में या जाते हैं. डॉ आलम शाह खान की आज भी जरूरत है. उनका कबीराना अंदाज गजब का था. वे स्पष्टवादी एवं निर्भीकता के प्रतीक थे. उनके चरित्र में दोहरापन नहीं था. वे विद्रोही प्रवृति के लेखक थे. कबीर की तरह विद्रोही प्रवृति के थे. उनकी कहानियां मनोरंजन के लिए नहीं थीं. जीवन के अस्तित्व का संघर्ष उनकी कहानियों में झलकता था.

शाह की कहानियां हमेशा प्रासंगिक रहेंगी

उर्दू अफसानानिगार डॉ सरवत खान ने कहा कि शाह की कहानियां आने वाली पीढ़ियां पढ़ेंगी और हमेशा प्रासांगिक रहेंगी. हम सभी को मिल कर शाह पर और अधिक काम करना है. किशन दाधीच ने कहा कि शाह पर संस्मरणों की किताब आनी चाहिए. वे खुद्दारी के सिपहसालार थे. उनकी भाषा अपने समय और परिवेश की भाषा है. समय के दुख को निकटता से देखते थे. उनकी कहानियों में समाज का दुख झलकता था. दूसरे सत्र में खान के शिष्य और वरिष्ठ आलोचक प्रो माधव हाड़ा ने वंश भास्कर और वचनिकाओं पर लिखी उनकी शोध-आलोचना की चर्चा की. प्रो हाड़ा ने कहा कि पुराने साहित्य में खान साहब की रुचि गति अद्भुत और अनुकरणीय थी. इस सत्र में दिल्ली से आये युवा आलोचक पल्लव ने समांतर कहानी आंदोलन की चर्चा करते हुए उसमें खान की कहानियों की विशिष्टता को रेखांकित किया.

डॉ खान की कहानियों में मानवीय मूल्यों का चित्रण

तृतीय सत्र की अध्यक्षता राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ दुलाराम सहारण ने की. उन्होंने कहा कि अकादमी राजस्थान के पुरोधाओं के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित करेगी. उन्होंने घोषणा की कि राजस्थान साहित्य अकादमी अगले वर्ष प्रोफेसर आलम शाह खान के सम्मान में दो दिवसीय आयोजन करेगी. सत्र के मुख्य वक्ता भारतीय लोक कला मंडल के निदेशक डॉक्टर लईक हुसैन ने डॉ आलम शाह खान की चर्चित कहानी मौत का मजहब की प्रस्तुति के विविध पक्षों की चर्चा की तथा कहा कि डॉ खान की कहानियों में जिन मानवीय मूल्यों का चित्रण है, उन्हें जन-जन तक पहुंचाना आवश्यक है. इस सत्र में युवा रंगकर्मी सुनील टाक ने आलम शाह खान की कहानियों के नाट्य रूपांतरण एवं लघु फिल्म निर्माण की संभावनाओं की चर्चा की. इस सत्र का संचालन प्रोफेसर हेमेंद्र चंडालिया ने किया. सत्र के अंत में डाक्टर तबस्सुम खान एवं समिति अध्यक्ष आबिद अदीब ने धन्यवाद ज्ञापित किया. भारतीय लोक कला मंडल में कविराज लाइक हुसैन के निर्देशन में आलम शाह खान की कहानी ‘मौत का मजहब’ का मंचन लोक कला मंडल के खुले प्रांगण में हुआ.

Next Article

Exit mobile version