PHOTOS: जमशेदपुर में चल रही मस्ती की पाठशाला, माउंटेन क्लाइंबिंग में देखिए शहर का जुनून
माउंटेनियरिंग के क्षेत्र में जमशेदपुर की अलग पहचान है. टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन पिछले 40 साल से माउंटेन क्लाइंबिंग को प्रमोट कर रहा है. फाउंडेशन की सहायता से अब तक 11 पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट अभियान को पूरा किया है.

जमशेदपुर, निसार : एक अगस्त यानी नेशनल माउंटेन क्लाइंबिंग दिवस है. माउंटेनियरिंग के क्षेत्र में भी जमशेदपुर की अलग पहचान है. टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की सहायता से अब तक 11 पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट जैसे मुश्किल अभियान को पूरा किया है, वहीं कई पर्वतारोही एवरेस्ट फतह तो नहीं कर सके, लेकिन अभियान में शामिल होने से उनमें आत्मनिर्भरता बढ़ी है. ये अब अभियान के दौरान सीखी बातों को जीवन में भी अमल कर रहे हैं. वहीं, अब सेना, पुलिस, आपदा प्रबंधन व अन्य रेस्क्यू टीमों के अलावा विभिन्न माउंटेनियरिंग एजेंसियां फिट व प्रशिक्षित इंस्ट्रक्टर को रोजगार दे रही हैं, जिससे युवाओं में माउंटेन क्लाइंबिंग को लेकर एक अलग क्रेज बन रहा है.
आज से 39 साल पहले 23 मई को भारत की एक बेटी अपने साहस के दम पर दुनिया के शिखर पर जा बैठी थी. यह बेटी कोई और नहीं, बल्कि बछेंद्री पाल हैं, जिन्होंने मौत को मात देकर 23 मई 1984 को पहली भारतीय महिला के रूप में माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया था. इसके बाद से बछेंद्री पाल की देखरेख में अब तक हजारों लोग विभिन्न पर्वतों की चोटी पर चढ़ चुके हैं. बछेंद्री पाल ने प्रभात खबर को बताया कि पिछले 40 वर्षों में माउंटेनियरिंग में काफी बदलाव देखा है. पहले लोग माउंट क्लाइंबिंग को इतनी गंभीरता से नहीं लेते थे. अब कई संस्थान हैं, जो इसको प्रमोट कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि चुनौतियों पर काबू करने के लिए माउंट क्लाइंबिंग एक शानदार माध्यम है.
बछेंद्री की देखरेख में एवरेस्ट किया फतह
एवरेस्टर : वर्ष
प्रेमलता अग्रवाल : 20 मई, 2011
बिनीता सोरेन : 26 मई, 2012
मेघलाल महतो : 26 मई, 2012
राजेंद्र सिंह पाल : 26 मई, 2012
सुशेन महतो : 19 मई, 2013
अरुणिमा सिन्हा : 21 मई, 2013
हेमंत गुप्ता : 27 मई, 2017
संदीप तोलिया : 22 मई, 2018
पूनम राणा : 22 मई, 2018
स्वर्णलता दलाई : 22 मई, 2018
अस्मिता दोरजी : 23 मई, 2023
जमशेदपुर में माउंटेन ट्रेकिंग के शौक रखने वालों के लिए शुरुआत ट्रेकिंग अभियान से की जाती है, जिसका नाम दलमा ट्रेकिंग है. यह माउंटेन क्लाइंबिंग का सबसे पहला स्टेप है. अगर यहां पर किसी में क्षमता दिखती है, तो उसे एडवांस ट्रेनिंग दी जाती है. एवरेस्ट सहित दुनिया की सात सबसे मुश्किल और ऊंची चोटियों पर चढ़ने वाली प्रेमलता अग्रवाल ने भी अपनी शुरुआत दलमा ट्रेकिंग से ही की थी.
चल रही मस्ती की पाठशाला
क्लाइंबिंग को प्रमोट करने के लिए जमशेदपुर और इससे सटे इलाकों में मस्ती की पाठशाला चलायी जा रही है. इसके लिए आठ जगहों पर कृत्रिम वाॅल लगाये गये हैं. तुमंग, डिमना, पीपला, बागुनहातु, राजनगर, परसुडीह, टिनप्लेट और कदमा में कृत्रिम वाॅल बनाये गये हैं, जिससे लोगों में क्लाइंबिंग के प्रति रुझान बढ़ सके.
टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन माउंटेन क्लाइंबिंग के लिए कई कार्यक्रम चला रहा है. जमशेदपुर से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तुमंग में माउंट क्लाइंबिंग की ट्रेनिंग दी जाती है. यहां पर बेहतर करने वाले क्लाइंबरों को एडवांस ट्रेनिंग के लिए टीएसएएफ उत्तरकाशी भेजा जाता है. माउंट क्लाइंबिंग से जुड़ने के लिए टीएसएएफ से संपर्क कर सकते हैं. टीएसएएफ का ऑफिस जेआरडी में स्थित है.
स्पोर्ट्स क्लाइंबिंग है अलग
माउंटेन क्लाइंबिंग और स्पोर्ट्स क्लाइंबिंग में फर्क है. माउंटेन क्लाइंबिंग से ही स्पोर्ट्स क्लाइंबिंग की शुरुआत हुई. स्पोर्ट्स क्लाइंबिंग ओलिंपिक 2024 में शामिल हुआ. यहां पर जीतने वाले को पदक मिलता है. लेकिन, माउंटेन क्लाइंबिंग करने वाले किसी भी व्यक्ति को चढ़ाई पूरी करने पर किसी तरह का कोई पदक नहीं मिलता है.
टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की ओर से माउंटेन क्लाइंबिंग के जरिये लोगों में लीडरशिप के गुण विकसित किये जाते हैं. टाटा कंपनी सहित अन्य कॉरपोरेट घराने के लिए एक लीडरशिप कार्यक्रम चलाया जाता है. इसमें माउंटेन क्लाइंबिंग एक्सीडिशन शामिल है. बड़े-बड़े अधिकारियों और आराम पसंद लोगों को उन्हें आराम की दुनिया से निकाल कर नैनीताल, उत्तकाशी और भारत के अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में माउंटेन क्लाइंबिंग के लिए ले जाया जाता है. इससे उनकी टीम बिल्डिंग, समय पर डिसिजन लेने की क्षमता और को-ऑपरेशन की भावना बढ़ती है. जानकारी के अनुसार, टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के पास 50 से अधिक प्रशिक्षित इंस्ट्रक्टर और स्टॉफ हैं, जो माउंटेनियरिंग को बढ़ावा देने में जुटे हैं. उन्होंने बताया कि टाटा फाउंडेशन (जो पहले टीएसआरडीएस था ) ग्रामीण क्षेत्र से बच्चों को माउंटेन क्लाइंबिंग से जोड़ने के लिए एक स्काउट कार्यक्रम चलाता है. यह कार्यक्रम झारखंड और ओडिशा में चलाया जाता है. वहीं, आम गृहिणियों के लिए भी फिटनेस के उद्देश्य से माउंटेन क्लाइंबिंग का आयोजन होता है. इसके तहत उनको कम ऊंचाई वाले पहाड़ों पर चढ़ने के लिए ले जाया जाता है. पिछले वर्ष 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं ने 50 प्लस फिट एक्सपीडिशन में हिस्सा लिया था और अपने आत्मविश्वास का परिचय दिया था.
एवरेस्ट विजेता प्रेमलता अग्रवाल का कहना है कि मैं टाटा स्टील व बछेंद्री मैम की शुक्रगुजार हूं. जिन्होंने मुझे पर्वतारोहण के लिए प्रेरित किया. इनके सहयोग से मैंने एवरेस्ट, किलिमंजारो, एलब्रस, डेनाली एकनगुआ जैसी पर्वतों पर चढ़ सकी. वहीं, एवरेस्ट विजेता मेघलाल महतो ने कहा कि मैं एवरेस्ट के आलावा माउंट कनामो पर चढ़ चुका हूं. मैं अपने क्लाइंबिंग के शौक के कारण सरायकेला के एक छोटे से गांव से निकलकर दुनिया भर में मशहूर हुआ.
एवरेस्ट विजेता अस्मिता दोरजी ने कहा कि मैं एवरेस्ट के अलावा दुनिया की 8वीं सबसे ऊंटी चोटी माउंट मनासुलू फतह कर चुकी हूं. इससे मैं आत्मनिर्भर बनी. जो मुझे किसी भी मुसीबत से बाहर निकल की कला सिखायी है. वहीं, एवरेस्ट विजेता बिनीता सोरेन का कहना है कि एवरेस्ट के अलावा मैंने माउंट कनामो व उत्तरकाशी में चढ़ाई की है. मैंने टीएसएएफ की सहायता से एक अलग पहचान बनायी. आज मुझे हर लोग जानते हैं, जो पर्वतारोहण से मिला. पर्वतारोही पायो मुर्मू का कहना है कि मैं एक साधारण गृहिणी हूं. मैंने बछेंद्री मैडम और टीएसएएफ की सहायता से एवरेस्ट अभियान, माउंट कनामो, उत्तरकाशी अभियान में हिस्सा लिया. इससे मैंने बहुत कुछ सीखा.
टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के चीफ एवरेस्ट विजेता हेमंत गुप्ता ने बताया कि माउंटेन क्लाइंबिंग के क्षेत्र में इन दिनों करियर के भी अच्छे अवसर हैं. सेना, पुलिस, आपदा प्रबंधन व अन्य रेस्क्यू टीम के अलावा विभिन्न माउंटेनियरिंग एजेंसियां फिट व प्रशिक्षित इंस्ट्रक्टर को रोजगार दे रही हैं. आइएमएफ (इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन) की ओर से कई बेसिक और एडवांस कोचिंग पूरे भारत में अलग-अलग जगहों पर चलाये जाते हैं, जहां जुड़कर लोग क्वालिफाइड इंस्ट्रक्टर बन सकते हैं. टीएसएएफ द्वारा भी समय-समय पर कोर्स का आयोजन किया जाता है.
