भारत में गूगल के भारी निवेश का अर्थ
Google : दुनियाभर में सूचना तकनीक के क्षेत्र में बड़े बदलाव हो रहे हैं, जिनके लिए विशाल आधारभूत ढांचे की जरूरत सभी देशों को है. भारत खुद भी अपने यहां एआइ के विकास को बढ़ावा दे रहा है, लेकिन साथ ही हमारे लिए एक और संभावना का दोहन करने का मौका है.
Google : पिछले कुछ महीनों में अमेजन वेब सर्विसेज और माइक्रोसॉफ्ट के दो बड़े निवेशों के बाद अब गूगल ने भी भारत में आइटी और एआइ के क्षेत्र में 15 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की घोषणा की है. अमेरिका के बाद सबसे बड़ा निवेश करने के लिए गूगल ने भारत को चुना है. यह निवेश ऐसे समय पर हो रहा है, जब भारत अपने आपको विश्व के आइटी और एआइ इंजन के रूप में स्थापित करने की कोशिश में जुटा है. यह विशाल निवेश भारत के आइटी विजन में वैश्विक आइटी दिग्गजों के विश्वास को अभिव्यक्त करता है.
दुनियाभर में सूचना तकनीक के क्षेत्र में बड़े बदलाव हो रहे हैं, जिनके लिए विशाल आधारभूत ढांचे की जरूरत सभी देशों को है. भारत खुद भी अपने यहां एआइ के विकास को बढ़ावा दे रहा है, लेकिन साथ ही हमारे लिए एक और संभावना का दोहन करने का मौका है. वह संभावना है-बाकी दुनिया के लिए ऐसा क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराना, जिसका इस्तेमाल भारतीय कंपनियों के साथ वैश्विक कंपनियां भी कर सकें. यानी दुनिया की एआइ मशीन के इंजन के रूप में भारत भी एक बड़ा विकल्प बन सके. असल में यह कहानी डिजिटल युग के लिए भारत में नयी ‘डिजिटल सड़कें’ और ‘डिजिटल बिजलीघर’ बनाने की है. विशाखापत्तनम में बनने वाला गूगल का हब (केंद्र) तीन बड़ी परियोजनाओं को एक साथ लाएगा : गीगावाट-स्केल कंप्यूटिंग पावर (इसे एआइ का इंजन समझिए), एक नया अंतरराष्ट्रीय समुद्री केबल गेट-वे, जो दुनियाभर के इंटरनेट ट्रैफिक को संभालेगा, और इसे चलाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा व नयी ट्रांसमिशन लाइनें.
यह परियोजना गूगल के 12 देशों में फैले एआइ डाटा सेंटरों के नेटवर्क से जुड़ेगी. भारत के पूर्वी तट पर कई नयी समुद्री केबलों के लैंडिंग स्टेशन भी बनेंगे, जो मुंबई और चेन्नई के मौजूदा डिजिटल नेटवर्कों को मजबूत करेंगे. इस परियोजना के साथ स्वस्थ ऊर्जा का पहलू इसलिए जुड़ा है, क्योंकि बड़े डाटा सेंटरों में बिजली की बहुत अधिक खपत होती है. इस बिजली का पर्यावरण-अनुकूल ढंग से निर्मित होना भारत के हितों के अनुकूल है. गूगल का निवेश रोजगार सृजन के लिहाज से भी अहम है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के मुताबिक, इस परियोजना के चलते करीब 1,88,000 प्रत्यक्ष और परोक्ष नौकरियों का सृजन होगा, जो आइटी के साथ ढांचागत विकास, कार्य-संचालन (ऑपरेशन्स) और स्वस्थ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में होंगी. यही बात अन्य बहुराष्ट्रीय आइटी कंपनियों के निवेश पर भी लागू होती है.
भारत में इंटरनेट, क्लाउड और एआइ आधारित सेवाओं की गुणवत्ता और रफ्तार बहुत बढ़ जाने वाली है, जो आम आदमी से लेकर स्टार्टअप्स तथा आइटी कंपनियों से लेकर सरकारी संस्थानों तक के लिए लाभदायक होगी. याद रहे, करीब-करीब इसी तरह की परियोजनाओं के लिए अमेजन वेब सर्विसेज ने 2030 तक भारत में क्लाउड और एआइ इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 12.7 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है. इसी तरह, माइक्रोसॉफ्ट भी तीन अरब डॉलर के निवेश की घोषणा कर चुका है. अगर इन निवेशों को समग्रता में देखा जाये, तो भारत में विकसित हो रहे विशाल एआइ-इन्फ्रास्ट्रक्चर का खाका उभरता है. उद्योग के आंकड़ों के मुताबिक, 2027 तक भारत के डाटा सेंटर उद्योग में निवेश 100 अरब डॉलर से ज्यादा हो सकता है.
वर्ष 2019 से 2024 के बीच भारत ने इस क्षेत्र में करीब 60 अरब डॉलर के निवेश आकर्षित किये हैं, जिनमें महाराष्ट्र और तमिलनाडु सबसे आगे रहे हैं. भारत में सेमीकंडक्टर असेंबली, डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग और कंपोनेंट्स के लिए भी निवेश बढ़ा है. ऑटो और इंडस्ट्रियल कंपनियां भी भारत में एआइ रिसर्च और मैन्युफैक्चरिंग सेंटर बना रही हैं. अर्थ यह कि अब भारत को सिर्फ एक बड़े बाजार मात्र के रूप में देखना उचित नहीं होगा, क्योंकि वह एआइ युग के लिए प्रोडक्शन और इनोवेशन का केंद्र भी बन रहा है.
भारत से पहले जिन देशों में इस तरह के निवेश हुए, वहां आर्थिक, तकनीकी और ढांचागत विकास के लिहाज से ठोस विकास हुआ है.
पिछले दशक में आयरलैंड के डबलिन और आसपास के इलाकों में वैश्विक क्लाउड कंपनियों ने भारी निवेश किया था, जिससे आयरलैंड यूरोप का डाटा हब बन गया. इससे बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा हुईं और कुशल आइटी पेशेवर भी तैयार हुए. हालांकि वहां पर डाटा सेंटरों के कारण बिजली की मांग बढ़ने से स्थानीय पावर ग्रिड पर दबाव तथा पर्यावरणी प्रभावों को लेकर विवाद भी हुआ. भारत में आ रही परियोजनाओं में इस पहलू का ध्यान रखा जा रहा है और डाटा सेंटरों को रिन्यूएबल एनर्जी और स्टोरेज से जोड़ा जा रहा है.
इन्हीं चिंताओं के चलते सिंगापुर ने कुछ समय के लिए नये डाटा सेंटरों के निर्माण पर रोक लगायी थी, ताकि टिकाऊ पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित किया जा सके. अब वे भी रिन्यूएबल एनर्जी का रास्ता अपना रहे हैं. स्वीडन और फिनलैंड जैसे देशों ने भी स्वच्छ ऊर्जा और ठंडे मौसम का फायदा उठाकर डाटा सेंटरों के विकास को आकर्षित किया है. इससे इन देशों की अर्थव्यवस्था और तकनीकी विकास को तो लाभ हुआ ही है, डाटा सेंटरों से अरबों डॉलर का कर भी सृजित हो रहा है. भारत भी अपने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाये बिना इसी तरह के लाभ उठाने की उम्मीद कर सकता है.
गूगल ने अमेरिका के बाहर अपना सबसे बड़ा एआइ हब विकसित करने के लिए भारत को क्यों चुना? वह भी तब, जब अमेरिकी प्रशासन वहां की कंपनियों के बाहरी निवेश को लेकर बहुत सकारात्मक नजरिया नहीं रखता. इसका जवाब है-भारत का मजबूत डिजिटल इकोसिस्टम. यह निवेश प्रतीकात्मक भी है. यह ऐसे समय आया है, जब भारत-अमेरिकी संबंधों में उतार-चढ़ाव का दौर है. गूगल का कहना है कि यह निवेश अगले दौर के भारत-अमेरिका तकनीकी सहयोग की नींव रखेगा, जिससे अमेरिका की जीडीपी को भी फायदा होगा. आज की तकनीकी सप्लाई चेन आपस में जुड़ी हुई है. इसलिए भारत की तरक्की में दोनों का फायदा है. विशाखापत्तनम में निर्मित होने वाला एआइ हब सिर्फ एक बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनी का बड़ा निवेश नहीं है. यह आइटी में सही दिशा में काम करने के लिए एक खाका उपलब्ध कराता है. वह खाका है-कंप्यूटिंग, कनेक्टिविटी और क्लीन एनर्जी को साथ लाओ, लोकल पार्टनर्स के साथ मेक इन इंडिया पर केंद्रित विनिर्माण तथा विकास करो, इन परियोजनाओं को भारत के राष्ट्रीय डिजिटल लक्ष्यों से जोड़ो और यह सुनिश्चित करो कि इनका लाभ सबको मिले.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
