अनुचित है वैमनस्य

इस संकट के दौर से कामयाबी के साथ गुजरने के लिए यह जरूरी है कि सरकारें, उद्योग जगत, नागरिक संगठन और समाज कंधे से कंधा मिलाकर चले. लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग, जिनमें अनेक जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि और नेता भी शामिल हैं

By संपादकीय | May 1, 2020 7:10 AM

दुनिया के बहुत सारे देशों की तरह भारत भी इस समय कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहा है. एक तरफ संक्रमितों के उपचार और मौतों के सिलसिले को रोकने की चुनौती है, तो दूसरी तरफ लॉकडाउन से अस्त-व्यस्त हुई अर्थव्यवस्था को संभालने की भारी जिम्मेदारी हमारे ऊपर है. इस संकट के दौर से कामयाबी के साथ गुजरने के लिए यह जरूरी है कि सरकारें, उद्योग जगत, नागरिक संगठन और समाज कंधे से कंधा मिलाकर चले. लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग, जिनमें अनेक जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि और नेता भी शामिल हैं, ऐसे समय में भी सामाजिक सद्भाव और सहिष्णुता के आदर्शों के उलट आचरण कर लोगों के बीच भेदभाव और घृणा फैलाने का आपराधिक कृत्य कर रहे हैं.

ऐसे खतरनाक तत्वों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वह संदेश सुनना और समझना चाहिए, जिसमें उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि कोरोना वायरस संक्रमण का शिकार बनाने से पहले जाति, धर्म, नस्ल आदि की पहचानों की परवाह नहीं करता. देश और दुनिया में लाखों संक्रमितों और संक्रमण से मारे गये हजारों लोगों में हर राष्ट्रीयता, धार्मिक संबद्धता, रंग, नस्ल, लिंग और जाति के लोग शामिल हैं. जब यह जानलेवा वायरस हमारे बारे में कोई विभेद नहीं करता, तो क्यों नहीं हम भी मिल-जुलकर इसका सामना करें? प्रधानमंत्री के आह्वान पर समूचे देश ने लॉकडाउन समेत विभिन्न निर्देशों का अनुपालन किया है तथा अगली कतार में खड़े होकर संकट से लोहा ले रहे योद्धाओं- चिकित्साकर्मी, पुलिसबल, साफ-सफाई का ध्यान रख रहे लोग, जरूरत की चीजों की आपूर्ति बनाये रखनेवाले, परेशान लोगों की परवाह कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता आदि- को बार-बार धन्यवाद किया जा रहा है.

इनमें भी हर समुदाय के लोग शामिल हैं. कहीं-कहीं कुछ दुर्व्यवहार या नियमों के उल्लंघन की घटनाएं हुईं, तो उन्हें रोकने का प्रयास और उनकी आलोचना भी सभी ने साथ मिलकर किया है. इस माहौल में एकता और सहयोग हमारी सबसे बड़ी ताकत है. इसमें दरार डालने की कोशिश देश के विरुद्ध आचरण है. जो नेता और कार्यकर्ता सांप्रदायिक या सामाजिक वैमनस्य फैला रहे हैं, वे देश की सरकार और अपने संगठन के निर्देशों के साथ संवैधानिक एवं सांस्कृतिक मर्यादाओं का भी उल्लंघन कर रहे हैं. निर्वाचित राजनेताओं के ऐसे व्यवहार से कुंठित और उन्मादी तत्वों का भी हौसला बढ़ता है, जो सोशल मीडिया पर या गली-मुहल्लों में आपत्तिजनक बातें या व्यवहार करते हैं.

ऐसी हरकतों से दुनिया की नजर में देश की छवि और प्रतिष्ठा को भी चोट पहुंचती है, जैसा कि कुछ दिन पहले हमने अरब देशों की कड़ी प्रतिक्रिया के रूप में देखा. उस प्रकरण में हमारे कूटनीतिज्ञों को असुविधाजनक स्थिति का सामना करना पड़ा. कुछ लोगों के आपत्तिजनक रवैये से भारत को कटघरे में खड़े करने की कोशिश में लगे लोगों की ही मदद होती है, जैसा हाल में एक अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट में देखा गया है. ऐसे लोगों को बिना देरी अपने आचरण में सुधार करना चाहिए.

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