बढ़ती सामुद्रिक शक्ति

सरकार का प्रयास है कि सैन्य क्षमता के विस्तार के लिए विदेशी सहयोग और खरीद पर निर्भरता कम हो तथा थल, वायु और समुद्र में हमारी शक्ति बढ़े.

By संपादकीय | September 5, 2022 8:26 AM

युद्धपोत विक्रांत का नौसैनिक बेड़े में शामिल होना गौरवशाली परिघटना है. इसके साथ ही भारत उन कुछ देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है, जिनके पास ऐसे युद्धपोत बनाने की क्षमता है. पूर्ववर्ती युद्धपोत विक्रांत से लगभग तीन गुना बड़े इस जहाज की रूप-रेखा भारतीय है तथा देश में निर्मित यह सबसे बड़ा युद्धपोत भी है. इस अत्याधुनिक युद्धपोत के निर्माण के पीछे ढाई दशकों का परिश्रम है.

एक ओर सरकार का प्रयास है कि सैन्य क्षमता के विस्तार के लिए विदेशी सहयोग और खरीद पर निर्भरता कम हो तथा दूसरी ओर थल, वायु और समुद्र में हमारी शक्ति बढ़े. हिंद-प्रशांत क्षेत्र कई कारकों की वजह से एक महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र बन गया है, जिसमें तमाम शक्तिशाली देशों की गहरी रूचि है. इस परिदृश्य में युद्धपोत विक्रांत का आना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की क्षमता बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम है.

उल्लेखनीय है कि कुछ समय से चीन इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति भी बढ़ा है तथा अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए भी प्रयासरत है. उल्लेखनीय है कि चीन के दो बड़े युद्धपोत सक्रिय हैं तथा एक-दो वर्षों में तीसरा जहाज भी नौसैनिक बेड़े में शामिल हो सकता है. भारत के पास विक्रमादित्य युद्धपोत भी है, जो रूस से लिया गया है. भारतीय नौसेना ने तीसरे युद्धपोत की आवश्यकता को रेखांकित किया है.

जानकारों का आकलन है कि विक्रांत के निर्माण अनुभव के कारण अगला युद्धपोत बनाने में कम समय लगेगा तथा उसकी लागत भी कम हो सकती है. तीसरे युद्धपोत की जरूरत इसलिए भी है कि अगर कोई जहाज मरम्मत के लिए खड़ा है, तो सैन्य क्षमता में कुछ समय के लिए कमी आ सकती है. लड़ाकू जहाज ढोने तथा बड़ी संख्या में अन्य सैन्य साजो-सामान की क्षमता से लैस बड़े युद्धपोत केवल सामुद्रिक सीमाओं की ही रक्षा नहीं करते, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुद्र में बहुत दूर तक गश्त लगाकर शत्रुओं की हरकतों पर नजर भी रखते हैं तथा मालवाहक जहाजों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करते हैं.

ऐसे में अगर हमारे पास तीसरा युद्धपोत आ जाता है, तो पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्र में एक-एक जहाज की तैनाती की जा सकती है, यदि तीसरा पोत खड़ा हो. रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने तथा अन्य देशों को साजो-सामान निर्यात करने के उद्देश्य से हो रहे प्रयासों के कारण रक्षा उद्योग का विस्तार भी हो रहा है तथा आयात पर हमारी निर्भरता भी कम हो रही है. आज हम युद्धपोत निर्माण के साथ डीजल व परमाणु शक्ति से चालित पनडुब्बियां तथा हल्के लड़ाकू हवाई जहाज देश में ही बनाने की क्षमता रखते हैं. नवागत युद्धपोत विक्रांत भारतीय सैन्य शक्ति के साथ-साथ हमारी आत्मनिर्भरता का भी गौरव प्रतीक है.

Next Article

Exit mobile version