सेना की गिरफ्त में पाकिस्तान

पाकिस्तान में सेना का साम्राज्य है. वह उद्योग-धंधे चलाती है. प्रोपर्टी के धंधे में उसकी खासी दिलचस्पी है. उसकी अपनी अलग अदालतें हैं.

By Ashutosh Chaturvedi | June 15, 2020 2:27 AM

आशुतोष चतुर्वेदी, प्रधान संपादक, प्रभात खबर

ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in

पाकिस्तान में सेना का सत्ता पर नियंत्रण कोई नयी बात नहीं है. लेकिन, कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट का फायदा उठाते हुए पाक सेना ने सत्ता पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया है. इमरान खान अब मात्र मुखौटा प्रधानमंत्री रह गये हैं. रिश्तों को लेकर भारत पहले से ही चीन और नेपाल के साथ कठिन दौर से गुजर रहा है. विवादों को बातचीत के जरिये सुलझाने का प्रयास जारी है. ऐसे दौर में पाकिस्तान का घटनाक्रम चिंतित करनेवाला है. पुरानी कहावत है कि आप अपना मित्र बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं.

पाकिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है, इसलिए न चाहते हुए भी वहां का घटनाक्रम हमें प्रभावित करता है. पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शाक्तियों का कमजोर हो जाना और सेना का मजबूत होना शुभ संकेत नहीं है. पड़ोसी मुल्क में राजनीतिक अस्थिरता भारत के हित में नहीं है. दूसरी ओर वहां विपक्षी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी मजबूत होती नजर आ रही थी. सेना ने उसे भी कमजोर करने का दांव खेला है और एक विदेशी महिला से पीपीपी नेताओं पर यौन शोषण के आरोप लगवा कर उन्हें भी बैकफुट पर ला दिया है.

पाकिस्तान में सेना कितनी ताकतवर है, उसका आम भारतीयों को अंदाज नहीं है, क्योंकि अपने देश में सेना की राजनीति में कोई भूमिका कभी नहीं रही है. हाल में ब्लूमबर्ग ने पाकिस्तान के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट की है. इसमें बताया गया है कि सेना के वफादार माने जानेवाले दर्जनभर लोग इमरान खान सरकार में प्रमुख पदों पर काबिज हो गये हैं. इनमें से कुछेक तो पूर्व सैन्य अधिकारी हैं. ये उड्डयन, बिजली और स्वास्थ्य जैसे अहम विभागों में नियुक्त किये गये हैं.

इनमें से कई परवेज मुशर्रफ की सरकार के भी हिस्सा थे. इनमें आंतरिक सुरक्षा मंत्री एजाज शाह और इमरान खान के आर्थिक सलाहकार अब्दुल हफीज शेख शामिल हैं. और तो और रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल असीम सलीम बाजवा अब इमरान खान के मीडिया सलाहकार हैं. हालांकि, इमरान खान बार-बार सफाई दे रहे हैं कि सत्ता उनके पास है और सेना उनके साथ खड़ी है. लेकिन, हकीकत यह है कि वे केवल मुखौटा भर रह गये हैं.

दरअसल, कोरोनो के कारण पाकिस्तान में आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है. पाकिस्तान में आर्थिक विकास दर शून्य से नीचे पहुंच गयी है. कोरोना के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं. दक्षिण एशिया में भारत के बाद सबसे अधिक कोरोना संक्रमित पाकिस्तान में हैं. इस संकट का सेना ने भरपूर फायदा उठाया है. लेकिन, दिलचस्प तथ्य यह है कि पाक मीडिया में इस पर चर्चा नहीं हो रही है. वहां आजकल सुर्खियों में एक अमेरिकी ब्लागर है. सिंथिया डी रिची नामक इस महिला के पाकिस्तान के सियासी लोगों से पुराने रिश्ते रहे हैं. पिछले एक दशक से वह पाकिस्तान में सक्रिय है. सिंथिया के पाकिस्तानी सेना से रिश्ते किसी से छुपे हुए नहीं हैं.

सिंथिया ने पाकिस्तान के विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के कई नेताओं पर यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म जैसे गंभीर आरोप लगाये हैं. हाल में सिंथिया ने अपने फेसबुक अकाउंट के लाइव वीडियो के माध्यम से आरोप लगाया कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार में गृह मंत्री रहे रहमान मलिक ने वर्ष 2011 में उनके साथ दुष्कर्म किया था. साथ ही सिंथिया ने इसी पार्टी वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी पर भी यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है. सिंथिया का दावा है कि जब वह इस्लामाबाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री निवास में गिलानी से मिली थीं, तो गिलानी ने उनके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की थी. सिंथिया ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के एक और वरिष्ठ नेता पूर्व स्वास्थ्य मंत्री शहाबुद्दीन पर भी यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है.

आयशा सिद्दीका पाकिस्तान की जानी मानी विश्लेषक हैं और लंदन विवि में रिसर्च एसोशिएट हैं. उन्होंने विस्तार से एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि 2009-10 के दौरान पाकिस्तान को प्रचार की जरूरत काफी महसूस की जाने लगी थी. इस दौरान पत्रकार से राजनयिक बनीं मलीहा लोदी ने पाकिस्तान : बियोंड अ क्राइसिस स्टेट नामक किताब लिख डाली थी, जिसमें पाकिस्तान की बेहतर छवि पेश करने की जरूरत का जिक्र किया था. ऐसा लगता है, मेजर जनरल गफूर ने इस सलाह पर तेजी से और गंभीरता से अमल करने का फैसला कर लिया है. सिंथिया पाकिस्तानी फौज की पब्लिसिटी विंग की पुरानी रणनीति का नया चेहरा बनीं. वैसे, सिंथिया का मौजूदा काम शायद विपक्ष की आवाज को बेअसर करना और उस आवाज को पढ़े-लिखे मध्यवर्ग में फैलने से रोकना है.

पाकिस्तानी फौज पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को नापसंद करती आयी है. पीपीपी से मौजूदा नाराजगी की वजह यह है कि उसने संविधान में 18वें संशोधन को मंजूरी दिये जाने का समर्थन किया है. इस संशोधन के तहत राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता बढ़ा दी गयी है. नतीजन संसाधनों में केंद्र सरकार की आर्थिक हिस्सेदारी घट गयी है. इससे भविष्य में फौज का बजट प्रभावित हो सकता है और उसके आर्थिक संसाधनों में कटौती करनी पड़ सकती है जो उसे पसंद नहीं आ रही है. पीपीपी की मजबूरी यह है कि वह ही यह संशोधन लायी थी, इसलिए वह इसे रद्द करने का समर्थन नहीं कर सकती है, अन्यथा उसे इसका खासा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. माना जा रहा है कि यही वजह है कि सेना के इशारे पर सिंथिया ने पीपीपी नेताओं को निशाना बनाया है.

यह तथ्य जगजाहिर है कि पिछले चुनाव में पाकिस्तानी सेना ने पूरी ताकत लगाकर इमरान खान को जितवाया था. पाक सुरक्षा एजेंसियों ने चुनावी कवरेज को प्रभावित करने के लिए लगातार अभियान चलाया. जो भी पत्रकार, चैनल अथवा अखबार नवाज शरीफ के पक्ष में खड़ा नजर आये, खुफिया एजेंसियों ने उन्हें निशाना बनाया. पाकिस्तान के सबसे बड़े टीवी प्रसारक जियो टीवी को हफ्तों तक आंशिक रूप से ऑफ एयर रहना पड़ा था.

पाकिस्तान के जाने-माने अखबार डॉन का अरसे तक प्रसार प्रभावित रहा, क्योंकि उसने नवाज शरीफ का पक्ष लिया था. पाकिस्तान में सेना का साम्राज्य है. वह उद्योग-धंधे चलाती है. प्रोपर्टी के धंधे में उसकी खासी दिलचस्पी है. उसकी अपनी अलग अदालतें हैं. सेना का एक फौजी ट्रस्ट है, जिसके पास करोड़ों की संपदा है. खास बात यह है कि सेना के सारे काम धंधों को जांच पड़ताल के दायरे से बाहर रखा गया है. अनियंत्रित पाक सेना की हरकतों का खामियाजा भारत को भी झेलना पड़ता है. लोकतांत्रिक रूप से चुनी सरकार से संवाद की गुंजाइश रहती है. लेकिन, पाक सेना से संवाद संभव नहीं है. वह तो केवल सर्जिकल स्ट्राइक की ही भाषा समझती है.

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