विकसित देशों का पैंतरा

मौजूदा संकट ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को संकटग्रस्त कर दिया है और इसके असर से कोई भी देश अछूता नहीं है. विशेषज्ञों ने आशंका जतायी है कि आर्थिक मोर्चे पर पैदा हुई समस्याओं से छुटकारा पाने में कई महीने भी लग सकते हैं और कुछ साल भी. जाहिर है कि आयात और निर्यात के समीकरण तथा करों व शुल्कों के हिसाब में भी बदलाव होंगे तथा कुछ देश दूसरे देशों के बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ाने की कवायद भी करेंगे. ऐसी ही एक कोशिश में विकसित देशों ने विश्व व्यापार संगठन में स्थायी रूप से आयात शुल्कों में कटौती का प्रस्ताव रखा है. इन देशों का तर्क है कि ऐसी पहलों से कोरोना संकट का मुकाबला करने में मदद मिलेगी. लेकिन कोरोना केवल बहाना है. यह महामारी तो देर-सबेर खत्म हो जायेगी और वैक्सीन व दवाओं की उपलब्धता के साथ ही दुनिया संक्रमण के डर से मुक्त हो जायेगी.

By संपादकीय | May 20, 2020 5:05 AM

मौजूदा संकट ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को संकटग्रस्त कर दिया है और इसके असर से कोई भी देश अछूता नहीं है. विशेषज्ञों ने आशंका जतायी है कि आर्थिक मोर्चे पर पैदा हुई समस्याओं से छुटकारा पाने में कई महीने भी लग सकते हैं और कुछ साल भी. जाहिर है कि आयात और निर्यात के समीकरण तथा करों व शुल्कों के हिसाब में भी बदलाव होंगे तथा कुछ देश दूसरे देशों के बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ाने की कवायद भी करेंगे. ऐसी ही एक कोशिश में विकसित देशों ने विश्व व्यापार संगठन में स्थायी रूप से आयात शुल्कों में कटौती का प्रस्ताव रखा है. इन देशों का तर्क है कि ऐसी पहलों से कोरोना संकट का मुकाबला करने में मदद मिलेगी. लेकिन कोरोना केवल बहाना है. यह महामारी तो देर-सबेर खत्म हो जायेगी और वैक्सीन व दवाओं की उपलब्धता के साथ ही दुनिया संक्रमण के डर से मुक्त हो जायेगी.

यह बात विकसित देशों को भी मालूम है, तो फिर एक अस्थायी संकट की आड़ में शुल्कों में स्थायी कटौती की मांग क्यों की जा रही है? भारत ने इस मांग का विरोध करते हुए स्पष्ट तौर कहा है कि असल में ये देश अन्य देशों में अपने उत्पादों के लिए बाजार का विस्तार करना चाह रहे हैं. विकसित देशों को यह समझना चाहिए कि आयात शुल्क देशों की आमदनी का अहम स्रोत होने के साथ उनके घरेलू उद्योगों और उद्यमों के संरक्षण भी करते हैं. विश्व व्यापार संगठन के और मुक्त व्यापार से जुड़े अन्य कई समझौतों की वजह से विकसित देशों को पूरी दुनिया में बाजार उपलब्ध हुआ है तथा शुल्कों की दरें भी बहुत अधिक नहीं है. जिन उत्पादों पर शुल्क कम करने की मांग की जा रही है, उनमें दुग्ध, कृषि और मेडिकल से जुड़े उत्पाद भी हैं.

मेडिकल साजो-सामान के उद्योग नये क्षेत्र हैं और भारत इसमें तेजी से उभर रहा है. दुग्ध और कृषि के उत्पाद भारत समेत अनेक उभरती अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं तथा घरेलू मोर्चे पर रोजगार और आमदनी का बड़ा जरिया होते हैं। अभी तो समस्याएं पैदा हुई हैं, उनकी सबसे अधिक मार विकासशील देशों को ही झेलनी पड़ी है. ऐसे में विकसित देशों को उनकी मदद करने के लिए आगे आना चाहिए, न कि हालात का फायदा उठाकर अपने व्यापारिक और वित्तीय हितों को साधने का प्रयास करना चाहिए. यह पहली बार नहीं हो रहा है कि विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर विकसित देश दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. कृषि में अनुदान, देशी उद्योग को संरक्षण तथा ई-कॉमर्स व डेटा संग्रहण को लेकर भी खींचतान होती रही है. अब जब भारत आत्मनिर्भर होकर वैश्विक परिदृश्य में योगदान व सहकार का संकल्प कर रहा है, तो वह अपने बाजार को सस्ते आयातित सामानों से भर देने की छूट नहीं दे सकता है. ऐसा ही अन्य विकासशील देशों के साथ भी है.

Next Article

Exit mobile version