ट्रैवल ब्लॉगिंग का जादू और नेपथ्य में जाता यात्रा लेखन
Travel Blogging : यात्रा साहित्य में आये इस आर्थिक संकट का एक कारण यह भी है कि पर्यटन विभाग, राज्य बोर्ड और होटल कंपनियां भी अब अपना प्रचार व्लॉगर्स के माध्यम से ही कर रहे हैं. बीते दशकों में यात्रा वृत्तांत केवल सैर-सपाटे की दास्तान नहीं रहे, बल्कि वे स्थानों की संस्कृति, मनुष्यता और समयबोध को समझने का एक अनोखा माध्यम रहे हैं.
–मुकुल श्रीवास्तव–
Travel Blogging : पहले जहां यात्राएं आत्ममंथन और समाज विश्लेषण का जरिया होती थीं, वहीं अब यह फॉलोवर्स और व्यूज बटोरने का मात्र जरिया बनती जा रही हैं. इस व्लॉगिंग (यह वीडियो और लॉग का मेल है, जो लिखित ब्लॉग से अलग, वीडियो प्रारूप का उपयोग करता है) के जादू ने परंपरागत यात्रा वृत्तांत लेखन को किनारे कर दिया है. ऑप्टिनमॉन्स्टर की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेट पर लगभग 600 मिलियन से अधिक ब्लॉग्स हैं, जिनमें यात्रा एक लोकप्रिय विषय है. वहीं फ्यूचर डेटा स्टैट्स 2024 की मानें, तो ट्रैवल व्लॉग का दुनियाभर का वैश्विक बाजार 2025 में 4.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. हालांकि बढ़ते व्लॉग्स का यात्रा वृत्तांत लेखन पर सीधा असर पड़ा है. वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, जहां 2006 में अमेरिका में 1.9 करोड़ यात्रा से जुड़ी किताबें बिकती थीं, वहीं अगले दशक तक यह आंकड़ा आधा हो गया.
भारतीय प्रकाशन उद्योग में भी यात्रा वृत्तांत अब कम बिकने वाले खंडों में गिना जाने लगा है.
पिछले एक दशक में भारत ने इंटरनेट के क्षेत्र में एक क्रांति देखी, सस्ते मोबाइल डेटा पैक, किफायती स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के व्यापक प्रसार ने हमारे हर अनुभव को दृश्य केंद्रित बना दिया है. परिणामस्वरूप व्लॉगिंग, विशेषकर ट्रैवल व्लॉगिंग ने पारंपरिक यात्रा लेखन की लोकप्रियता, मांग और गुणवत्ता को खासा नुकसान पहुंचाया है. बड़े प्रकाशकों, जैसे राजकमल, वाणी और अन्य प्रकाशनों की ओर से यात्रा साहित्य की नयशृंखलाएं काफी कम प्रकाशित हुई हैं. इसके विपरीत ट्रैवल व्लॉगर्स, जैसे नोमैडिक इंडियन, माउंटेन ट्रैकर, देसी गर्ल ट्रैवलर जैसे यूट्यूबर्स ने ट्रैवल व्लॉगिंग के जरिये करोड़ों व्यूज और फॉलोवर्स अर्जित किये हैं.
यात्रा साहित्य में आये इस आर्थिक संकट का एक कारण यह भी है कि पर्यटन विभाग, राज्य बोर्ड और होटल कंपनियां भी अब अपना प्रचार व्लॉगर्स के माध्यम से ही कर रहे हैं. बीते दशकों में यात्रा वृत्तांत केवल सैर-सपाटे की दास्तान नहीं रहे, बल्कि वे स्थानों की संस्कृति, मनुष्यता और समयबोध को समझने का एक अनोखा माध्यम रहे हैं. पारंपरिक यात्रा लेखक किसी भी स्थल को केवल देखते नहीं थे, वे वहां रुकते, लोगों को समझते और उस जगह को महसूस करते थे. चाहे वह राहुल सांकृत्यायन की ‘दार्जिलिंग यात्रा’ हो, निर्मल वर्मा की यूरोपीय यात्राओं की झलक या फिर अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में लिखे गये यात्रा संस्मरण. इन सभी में लेखक अपने भीतर और बाहर के संसारों को एक साथ टटोलते थे. वे जो देखते थे, उसे सांस्कृतिक संदर्भ, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, और मूलवासी अनुभवों के साथ जोड़ते थे. नतीजतन, पाठक केवल एक जगह की यात्रा नहीं करता था, वह एक समयबद्ध अनुभव से गुजरता था, जिसमें स्थान, काल और संस्कृति का जीवंत चित्रण होता था.
इस तेजी से बदलती संस्कृति का प्रभाव स्थानीय भाषाओं और सांस्कृतिक प्रस्तुति पर भी पड़ा है. पारंपरिक यात्रा लेखन में अक्सर स्थानीय बोली, लोक कथाएं, कहावतें और गीत परंपरा भी शामिल होती थीं. लेकिन आज अधिकांश भारतीय ट्रैवल व्लॉगिंग या तो अंग्रेजी में और/या हिंदी-अंग्रेजी की मिश्रित बोली में होते हैं. जिससे प्रादेशिक भाषाओं में रचना का प्रवाह कम हुआ है. पर्यटन विभाग की ओर से जारी इंडिया टूरिज्म स्टेटिस्टिक्स रिपोर्ट 2023 के अनुसार, कोविड महामारी के बाद भारतीय पर्यटकों की विदेश यात्रा फिर से कोविड पूर्व के आंकड़ों के पास पहुंच गयी है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ट्रैवल एंड टूरिज्म डेवलपमेंट इंडेक्स में 2024 में भारत ने 39वां स्थान हासिल किया है, जो भारत के पर्यटन क्षेत्र में हो रहे ढांचागत परिवर्तनों और उसकी वैश्विक मान्यता की ओर इशारा करता है. हालांकि इस बढ़ते वैश्विक और राष्ट्रीय पर्यटन के पीछे डिजिटल कंटेंट और ट्रैवल व्लॉग का गहरा प्रभाव है.
अब पर्यटन केवल मंत्रालयों, विज्ञापनों और ट्रैवल एजेंसियों की सिफारिशों से निर्देशित नहीं होता, बल्कि यह कंटेंट क्रिएटर्स, ट्रैवल व्लॉगर्स द्वारा संचालित होता है. इस कारण कई नये और कम जाने जाने वाले पर्यटन स्थल अचानक से वायरल डेस्टिनेशन बन जाते हैं. जैसे हिमाचल का जिबी, केरल का वागामोन, लद्दाख का तुरतुक और मेघालय के दावकी जैसे स्थान, जो पहले सीमित पर्यटक आकर्षण थे, व्लॉगिंग के कारण अब वायरल डेस्टिनेशन हो चले हैं. यह ट्रेंड न केवल पर्यटकों के निर्णयों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था, पर्यावरणीय दबाव, और सांस्कृतिक अंतःक्रिया की प्रकृति को भी नये सिरे से परिभाषित कर रहा है.
हालांकि इन सबके बीच यात्रा लेखन, जैसे यात्रा वृत्तांत, यात्रा संस्मरण, यात्रा निबंध और यात्रा डायरी जैसी विधाएं कहीं पीछे छूटती नजर आ रही हैं. कैमरे और स्क्रीन पर हम बहुत कुछ देख सकते हैं, पर इन्हें महसूस करने के लिए शब्दों की जरूरत होती है. यात्रा लेखन केवल जगहों का जिक्र नहीं करता, वह उनके साथ जुड़ी संवेदनाओं, इतिहास, और लोगों की कहानियों को भी सामने लाता है. जरूरी नहीं कि इन दोनों विधाओं में टकराव हो. जरूरत है तो बस एक संतुलन की. यात्रा सिर्फ घूमने-फिरने का नाम नहीं है, यह अपने भीतर झांकने का एक मौका भी है और उन महसूस किये गये अनुभवों को जिंदा रखने का सबसे सच्चा तरीका आज भी शब्द ही हैं.
