स्कूलों में शिक्षकों की कमी पर ध्यान देने की जरूरत
Jharkhand : तथ्य यह है कि झारखंड में शिक्षकों की कमी देश के सभी राज्यों की तुलना में ज्यादा है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य के लगभग एक-तिहाई सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में एक ही शिक्षक हैं. राज्य के अधिकांश प्राथमिक और उच्च-प्राथमिक विद्यालय शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के निर्धारित मानदंडों को पूरा नहीं करते.
Jharkhand : झारखंड राज्य के गठन के पच्चीस साल पूरे हो गये. झारखंड का निर्माण राज्य के लोगों को बाहरी लोगों के शोषण से मुक्त कराने के लिए किया गया था. झारखंड के लोग यह चाहते थे कि राज्य उनके अपने मूल्यों और जीवन शैली के आधार पर विकसित हो. राज्य गठन के पच्चीस साल पूरे होने के अवसर पर झारखंड में स्कूली शिक्षा की स्थिति पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है. दुनिया भर में, सार्वभौमिक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आर्थिक और सामाजिक विकास का आधार साबित हुई है. अपने देश में भी, जिन राज्यों ने शिक्षा पर जल्दी ध्यान दिया, (जैसे, केरल, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश) उन्हें इसका भरपूर लाभ मिला है. उसी तरह झारखंड में भी स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर अपेक्षित ध्यान देने की आवश्यकता है.
तथ्य यह है कि झारखंड में शिक्षकों की कमी देश के सभी राज्यों की तुलना में ज्यादा है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य के लगभग एक-तिहाई सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में एक ही शिक्षक हैं. राज्य के अधिकांश प्राथमिक और उच्च-प्राथमिक विद्यालय शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के निर्धारित मानदंडों को पूरा नहीं करते. इन मानदंडों के अनुसार, प्रत्येक विद्यालय में कम से कम दो शिक्षक होने चाहिए, और प्रत्येक तीस बच्चों पर कम से कम एक शिक्षक होना चाहिए. ये मानदंड बहुत हल्के हैं और इनका उल्लंघन करने का कोई औचित्य नहीं है. शिक्षकों की सेवानिवृत्ति और मृत्यु के कारण स्कूली शिक्षकों की कमी राज्य में बढ़ती ही जा रही है. पिछले नौ वर्षों में स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है. ऐसे में, शिक्षा के अधिकार अधिनियम के मानदंडों को पूरा करने के लिए, झारखंड को प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर कम से कम 50,000 शिक्षकों की तत्काल भर्ती करने की आवश्यकता है.
इस वर्ष तक स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति में देरी का एक प्रमुख कारण संबंधित योग्यताओं को लेकर चल रहा मुकदमा था. झारखंड सरकार चाहती थी कि भर्ती केवल झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा (जेटीइटी) उत्तीर्ण लोगों तक ही सीमित रहे. जबकि केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीइटी) उत्तीर्ण लोग भी पात्र होना चाहते थे. विगत 30 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार के पक्ष में फैसला किया. इससे जेटीइटी के आधार पर शिक्षक नियुक्तियों का रास्ता साफ हो गया. स्कूली शिक्षा मंत्री ने घोषणा की थी कि जल्द ही 60,000 स्कूली शिक्षकों की नियुक्ति की जायेगी.
इस बीच, झारखंड उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई शुरू कर दी थी, जिसमें यह मांग की गयी थी कि झारखंड में स्कूली शिक्षकों की संख्या शिक्षा के अधिकार अधिनियम के मानदंडों के अनुसार हो. इस याचिका के जवाब में झारखंड सरकार ने सितंबर के अंत तक 26,001 शिक्षकों की नियुक्ति का वादा किया. उच्च न्यायालय की कड़ी निगरानी में शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गयी थी. लेकिन वह वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ है. नियुक्ति प्रक्रिया के हर चरण में सफल आवेदकों की संख्या घटती गयी. उदाहरण के लिए, उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित और विज्ञान शिक्षकों की नियुक्ति पर विचार करें. उच्च न्यायालय में सरकार द्वारा पेश दस्तावेजों के अनुसार, इस श्रेणी में 5,008 शिक्षकों की नियुक्ति होनी थी. हालांकि परीक्षा परिणामों के आधार पर केवल 2,734 आवेदकों को योग्य माना गया. इनमें से, दस्तावेज सत्यापन के बाद केवल 1,661 को ही रखा गया. आरक्षित श्रेणियों के लिए उत्तीर्णांक में छूट की समीक्षा के बाद यह संख्या घटकर 1,454 रह गयी. सितंबर के अंत तक जब 5,008 गणित और विज्ञान शिक्षकों की नियुक्ति की जानी थी, मुश्किल से 1,000 नियुक्ति पत्र जारी किये गये थे.
कुल मिलाकर, 10,000 से कम शिक्षकों की नियुक्ति हुई है, जबकि उच्च न्यायालय में 26,001 शिक्षकों की नियुक्ति का वादा किया गया था. इसके अलावा, इनमें से आधी नियुक्तियां नयी नियुक्तियां नहीं, बल्कि पैरा-शिक्षकों के प्रोमोशन हैं. ये प्रोमोशन उचित हो सकते हैं, लेकिन इनसे शिक्षकों की कमी दूर करने में कोई मदद नहीं मिलती.
राज्य के स्कूलों को 26,001 शिक्षकों की नियुक्ति से काफी फायदा हो सकता था. इससे राज्य के सभी 9,000 एकल-शिक्षक स्कूलों में एक अतिरिक्त शिक्षक तैनात करने में मदद मिल सकती थी. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि शिक्षा के अधिकार कानून का पालन करने के लिए राज्य को सिर्फ 26,001 नहीं, कम से कम 50,000 अतिरिक्त शिक्षकों की आवश्यकता है. इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि शिक्षकों की कमी की कीमत खासकर वंचित समुदाय के बच्चे चुका रहे हैं. एकल-शिक्षक स्कूलों में पढ़ने वाले 60 फीसदी से ज्यादा बच्चे दलित या आदिवासी परिवारों से हैं. इन स्कूलों में पढ़ाई न के बराबर होती है. इस कारण इनमें से ज्यादातर बच्चे अब मजदूरी भरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर होंगे. शिक्षक नियुक्ति में देरी का एक और नतीजा यह है कि राज्य में युवा शिक्षकों की संख्या बहुत कम है. लातेहार जिले के 40 प्राथमिक स्कूलों के हालिया सर्वे में हमने यह पाया कि कुछ ही शिक्षक 40 साल से कम उम्र के थे और स्कूल शिक्षकों की औसत उम्र 47 साल थी. ऐसे में, बच्चों को स्वाभाविक ही उस ऊर्जा से वंचित रहना पड़ रहा है, जो युवा शिक्षक स्कूली शिक्षा प्रणाली में ला सकते हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं)
