नेपाल की रार

भारत और नेपाल का परस्पर राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध प्राचीन और प्रगाढ़ रहा है, परंतु हाल के दिनों में पैदा हुईं तनावपूर्ण घटनाएं चिंताजनक हैं. कुछ दिन पहले ही कोरोना संक्रमण का सामना करने के लिए भारत से भेजी गयी मदद के लिए नेपाल सरकार ने आभार जताया था. इसके पहले सीमावर्ती क्षेत्रों को लेकर और बाद में कोरोना वायरस को लेकर नेपाल की ओर से आपत्तिजनक बयान भी आये हैं.

By संपादकीय | May 22, 2020 5:05 AM

भारत और नेपाल का परस्पर राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध प्राचीन और प्रगाढ़ रहा है, परंतु हाल के दिनों में पैदा हुईं तनावपूर्ण घटनाएं चिंताजनक हैं. कुछ दिन पहले ही कोरोना संक्रमण का सामना करने के लिए भारत से भेजी गयी मदद के लिए नेपाल सरकार ने आभार जताया था. इसके पहले सीमावर्ती क्षेत्रों को लेकर और बाद में कोरोना वायरस को लेकर नेपाल की ओर से आपत्तिजनक बयान भी आये हैं. यदि ये बयान किसी नेता या मंत्री की ओर से आते, तो इन्हें अनदेखा भी किया जा सकता था, लेकिन जब नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ही बेतुकी बातें कहने लगें, तो इसका मतलब यही है कि कूटनीतिक स्तर पर तकरार बढ़ता जा रहा है.

मौजूदा प्रकरण की शुरुआत तब हुई, जब भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस महीने के शुरू में धारचूला से लिपुलेख दर्रे तक अस्सी किलोमीटर लंबे सड़क मार्ग का उद्घाटन किया. यह भारतीय इलाका है, पर नेपाल ने दावा कर दिया कि यह सड़क नेपाली क्षेत्रों से होकर गुजरती है. पहले की तरह ऐसे विवादों को राजनीतिक या कूटनीतिक स्तर पर सुलझाया जा सकता था, किंतु ऐसा इंगित होता है कि नेपाल की दिलचस्पी मसले को तूल देने में अधिक है. नेपाली प्रधानमंत्री ने संसद में कह दिया कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा नेपाल के हिस्से हैं और सरकार ने इस बाबत एक नक्शा भी जारी कर दिया है. तनाव बढ़ाने की प्रधानमंत्री ओली की मंशा उनके इस बयान से भी जाहिर होती है कि भारत से आनेवाला कोरोना वायरस चीन और इटली के वायरस से ज्यादा खतरनाक है.

आज जब समूची दुनिया कोविड-19 के संक्रमण से जूझ रही है और इसके उपचार का उपाय खोज रही है, किसी देश के प्रधानमंत्री का ऐसा कहना असंवेदनशील और गैर-जिम्मेदाराना है. यह वायरस देश, धर्म या नस्ल से चिन्हित नहीं हो सकता है और न ही इसके संक्रमण का आधार किसी की राष्ट्रीयता है. यह एक मानवीय संकट है और इसका मुकाबला मिल-जुलकर ही किया जाना चाहिए. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण एशिया में इस संक्रमण की आहट होते ही पड़ोसी देशों के साथ बैठककर परस्पर सहयोग करने का आह्वान किया था. उस बैठक में उन्होंने भारत की ओर से हरसंभव मदद की पेशकश भी की थी, जिसके तहत कुछ दिन पहले नेपाल को भी मेडिकल सहायता सामग्री भेजी गयी है. जानकारों का मानना है कि नेपाल के बदलते तेवर के पीछे चीन का उकसावा हो सकता है, जो इस क्षेत्र में अपने प्रभाव बढ़ाने की लगातार कोशिश कर रहा है. भारत ने स्वाभाविक रूप से नेपाल के आधारहीन दावे को खारिज कर दिया है. नेपाल का यह कदम सीमा से जुड़े मुद्दों को आपसी बातचीत से सुलझाने की समझदारी से मेल नहीं खाती है. ऐसे में भारत को कूटनीतिक तरीकों तथा दोनों देशों के भावनात्मक जुड़ाव के आधार पर नेपाल को विश्वास में लेने की भरसक कोशिश करनी चाहिए.

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