खाद्य प्रसंस्करण : स्थानीय क्रांति से राष्ट्रीय आंदोलन तक, पढ़ें मंत्री चिराग पासवान का आलेख

Food Processing : बिहार की पीएमएफएमइ कहानी में महिलाएं केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं. राज्य में 8,953 महिला-नेतृत्व वाली इकाइयों को ऋण मिला है और 24,924 स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) सदस्याओं को 90.12 करोड़ की बीज पूंजी दी गयी है. यह सहयोग महिलाओं को मखाना, सत्तू, अचार और मसालों को रिटेल-तैयार उत्पादों में बदलने में मदद कर रहा है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 6, 2025 7:30 AM

-चिराग पासवान, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री-

Food Processing : सच्चा विकास सामूहिक प्रयास एवं सामंजस्य से संभव होता है. मुजफ्फरपुर के व्यस्त बाजारों में यह सिद्धांत रोज साकार होता है. यहां महिलाएं लगन और दक्षता से मसालेदार अचार तैयार करती हैं, युवा उद्यमी मखाना खीर तथा भुना और स्वादयुक्त मखाना सलीके से सजाते हैं. किसान गर्व से देखते हैं कि उनके आम पटना से दुबई तक खाने की मेजों तक पहुंचने के लिए तैयार हैं. इसका सजीव उदाहरण मैंने वर्ल्ड फूड इंडिया, 2025 के उद्घाटन के मौके पर देखा, जब आधुनिक खाद्य-प्रसंस्करण तकनीकों वाले पैवेलियन में भागलपुर की स्वीटी कुमारी प्रधानमंत्री के सामने आत्मविश्वास से खड़ी थीं.


उन्होंने बताया कि कैसे प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों की औपचारिकीकरण योजना (पीएमएफएमइ) की मदद से उन्होंने सत्तू और जीआइ-टैग प्राप्त कतरनी चूड़ा को आधुनिक ब्रांड में बदल दिया. यह मेरे लिए, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री और एक बिहारी होने के नाते, गर्व का क्षण था. बिहार में सदैव ही आर्थिक विकास के मूलभूत घटक विद्यमान रहे हैं. दशकों तक इन संभावनाओं को साकार करने के लिए आवश्यक पुल अनुपस्थित रहे, लेकिन जब हमने ये पुल बनाये, तो पूरा आर्थिक ताना-बाना बदल गया. यह सत्य समस्त भारत के लिए प्रासंगिक है. वर्षों तक हम केवल कच्चा माल निर्यात करते रहे और वही माल ब्रांडेड उत्पाद के रूप में वापस आता रहा. परिणामस्वरूप, फसलोपरांत नुकसान की दर उच्च रही, आय अल्प रही, मजबूरी में बिक्री होती रही और प्रसंस्करण जैसे क्षेत्र में भी स्थानीय रोजगार का अभाव रहा. प्रश्न यह था कि क्या स्रोत पर ही मूल्यवर्धन किया जा सकता है, ताकि लोग पलायन किये बिना व्यवसाय स्थापित कर सकें? इस प्रश्न का उत्तर हमें 2020 में मिला. कोविड-19 महामारी में प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को रेखांकित किया.


इस दृष्टिकोण ने राष्ट्रीय स्तर पर ठोस परिणाम दिये हैं. जून 2025 तक 1.44 लाख से अधिक सूक्ष्म उद्यमों को क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी के तहत मंजूरी दी जा चुकी है और 1.11 लाख से अधिक लोगों को क्षमता निर्माण कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षित किया गया, जिससे कुशल स्थानीय कार्यबल तैयार हुआ है. इस तस्वीर में बिहार सबसे अलग और प्रेरक रूप से उभरा है, क्योंकि देश में सबसे अधिक स्वीकृत इकाइयां यहीं हैं. जून, 2025 तक बिहार में पीएमएफएमइ के अंतर्गत 25,000 से अधिक सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को मदद प्राप्त हुई. इसने 1,800 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश को प्रोत्साहित किया और प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से 78,000 से अधिक नये रोजगार सृजित किये. ‘बिहार’ को ब्रांड के रूप में गढ़ने की दिशा में केंद्र ने बिहार ग्रामीण आजीविका प्रोत्साहन समिति की जीविका पहल की ब्रांडिंग और मार्केटिंग हेतु 1.18 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की है. सतत विकास के लिए निरंतर प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन जरूरी है. इसे ध्यान में रखते हुए हमने हाल में पटना में पीएमएफएमइ योजना के तहत एक क्षमता निर्माण केंद्र का उद्घाटन किया. यह उद्यमियों को उन्नत तकनीकी ज्ञान, गुणवत्ता मानक और बाजार-तैयार कौशल से लैस करता है.


बिहार की पीएमएफएमइ कहानी में महिलाएं केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं. राज्य में 8,953 महिला-नेतृत्व वाली इकाइयों को ऋण मिला है और 24,924 स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) सदस्याओं को 90.12 करोड़ की बीज पूंजी दी गयी है. यह सहयोग महिलाओं को मखाना, सत्तू, अचार और मसालों को रिटेल-तैयार उत्पादों में बदलने में मदद कर रहा है. इससे महिलाओं के स्वामित्व वाली इकाइयां बढ़ रही हैं, परिवार की आय बढ़ रही है और स्थानीय मूल्य शृंखलाएं सशक्त हो रही हैं. दरभंगा की पूनम टेकरीवाल इसकी मिसाल हैं. पीएमएफएमइ के जरिये उन्होंने अपनी छोटी इकाई को 30 लोगों की टीम वाला मखाना ब्रांड बना दिया.


वित्त, अनुपालन और क्षमता का मजबूत आधार तैयार होने के बाद हमारा ध्यान मजबूत बाजार कड़ियां बनाने पर केंद्रित हुआ. इस जरूरत ने हमें मई, 2025 में पटना में पहली बार इंटरनेशनल बायर-सेलर मीट (आइबीएसएम) आयोजित करने के लिए प्रेरित किया. इसमें 20 देशों के 70 अंतरराष्ट्रीय खरीदार बिहार पहुंचे और स्थानीय उद्यमियों से 500 से अधिक संरचित व्यापार बैठकों में मिले. इसके परिणाम तुरंत दिखाई पड़े, जिनमें बिहार के चावल, दाल, मसाले, फल, सब्जियों और मखाना के लिए सहमति पत्र और खरीद प्रतिबद्धताएं शामिल थीं. मिथिला मखाना, मुजफ्फरपुर लीची, आम और शहद-के इर्द-गिर्द सबसे संभावनाशील परियोजनाओं की पहचान की, बैंकों ने जोखिम-रहित प्रस्ताव देखे, उद्यमियों को समय पर प्रशिक्षण और तकनीकी मदद प्राप्त हुई. पीएमएफएमइ का अनुभव आत्मनिर्भर भारत का व्यावहारिक उदाहरण है. जब जिले अपनी उपज का प्रसंस्करण करते हैं, तो खाद्य सुरक्षा बढ़ती है, क्योंकि बर्बादी घटती है, आय और रोजगार बढ़ते हैं, क्योंकि बेहतर मूल्य मिलते हैं, पूरे साल उत्पादन चलता है और निर्यात और भारत की सॉफ्ट पावर भी बढ़ती है, जो शुरुआत मुजफ्फरपुर में एक स्थानीय क्रांति के रूप में हुई थी, वह अब एक राष्ट्रीय आंदोलन बन चुकी है.