सभी वर्गों का साथ मिला आप को

अश्विनी कुमार राजनीतिक विश्लेषक delhi@prabhatkhabar.in दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं बल्कि एक सिटी स्टेट हैं. ऐसे में यहां के नतीजों का असर पूरे देश पर पड़ सकता है. दिल्ली में पहले से आम आदमी पार्टी की जीत तय थी और इसकी खास वजह कानून-व्यवस्था पर सरकार का नियंत्रण नहीं होना है. ऐसे में दिल्ली सरकार ने […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 12, 2020 7:48 AM
अश्विनी कुमार
राजनीतिक विश्लेषक
delhi@prabhatkhabar.in
दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं बल्कि एक सिटी स्टेट हैं. ऐसे में यहां के नतीजों का असर पूरे देश पर पड़ सकता है. दिल्ली में पहले से आम आदमी पार्टी की जीत तय थी और इसकी खास वजह कानून-व्यवस्था पर सरकार का नियंत्रण नहीं होना है. ऐसे में दिल्ली सरकार ने विकास और जनकल्याणकारी कामों पर विशेष ध्यान दिया. आप की जीत को विकास की जीत कहा जा सकता है.
नतीजों से साफ जाहिर होता है कि धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण का लाभ क्षणिक तौर पर हासिल हो सकता है, लेकिन लंबे समय की राजनीति में यह सफल नहीं होगा. आप की जीत से साफ संकेत मिलते हैं कि धर्म और जाति आधारित राजनीति की बजाय विकास और प्रदर्शन आधारित राजनीति देश में हावी हो रही है. भाजपा विकास और हिंदुत्व की राजनीति के आधार पर केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई और अब हिंदुत्व प्लस की राजनीति पर काम कर रही है.
धारा-370 हटाना, तीन तलाक पर कानून, अयोध्या मुद्दे का हल इस कड़ी का हिस्सा है और हकीकत है कि यह भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा बन गया है. भले ही दिल्ली में आप को जीत मिली है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा करीब 40 फीसदी मत हासिल कर दूसरे स्थान पर है. हिंदुत्व और विकास का प्रयोग कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे समाज और देश के नायक बन गये हैं. पर, इस राजनीति की अपनी सीमाएं है और दिल्ली चुनाव ने इसे दिखाया है.
लोक सभा में मिली प्रचंड जीत के बाद भाजपा कई राज्यों में चुनाव हारी है. इसका एक बड़ा कारण है कि पार्टी पूर्ण रूप से मोदी के चेहरे के साथ मैदान में उतर रही है. क्षेत्रीय स्तर पर कोई ऐसा लोकप्रिय चेहरा नहीं मिल रहा है, जो स्थानीय स्तर पर विशेष पहचान और पकड़ रखता हो. जिन राज्यों में भाजपा के सामने मजबूत क्षेत्रीय दल या गठबंधन रहा है, वहां पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है.
दिल्ली में मिली जीत के बाद अरविंद केजरीवाल विकास और जनकल्याण के पुरोधा बनकर उभरे हैं. लेकिन इस जीत के बाद भी वे नरेंद्र मोदी को चुनौती देने की स्थिति में नहीं हैं.
यह समझना होगा कि अब दिल्ली परंपरागत दिल्ली नहीं, बल्कि आधुनिक हो गयी है. यह सिर्फ शरणार्थियों का शहर नहीं रह गया है, बल्कि पूर्वांचली और कामकाजी लोगों का शहर हो गया है. इसी बदलती दिल्ली की भावना को समझते हुए शीला दीक्षित ने विकास और कल्याणकारी राजनीति कर करीब 15 साल तक सत्ता पर काबिज रहीं.
अरविंद केजरीवाल ने इसी कड़ी को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. दिल्ली में संभ्रांत वर्ग के साथ, मध्यम वर्ग और निम्न- मध्य वर्ग के बीच आप ने पकड़ बनायी है. इस परिणाम से साफ जाहिर होता है कि केजरीवाल ने सभी वर्ग को एक पाले में लाने में कामयाबी हासिल की है.
इस प्रचंड जीत के बीद कहा जा सकता है कि भाजपा भले ही चुनाव में हारी है, लेकिन राजनीतिक तौर पर काफी सशक्त है. एक बात और सामने आ रही है कि चुनाव व्यक्ति केंद्रित होते जा रहे हैं. इस जीत के बाद केजरीवाल के लिए भी चुनौती बढ़ गयी है. उन्होंने पूरी पार्टी का केंद्रीकरण कर दिया है. लोकतंत्र में केंद्रीकरण की राजनीति लंबे समय तक नहीं चल सकती है.
ऐसे में उन्हें दूसरी पीढ़ी के नेताओं को सामने लाकर मौका देना होगा. क्योंकि दो दलीय मुकाबले में बिना दूसरी पीढ़ी के नेतृत्व के लंबे समय तक पार्टी को नहीं चलाया जा सकता है.
पूरी दुनिया के लोकतंत्र में देखा गया है कि दो टर्म के बाद तीसरे टर्म में चुनौती काफी बड़ी हो जाती है और लोगों का नेताओं के प्रति मोहभंग होने लगता है. यही नहीं उन्हें मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग को अपने साथ जोड़े रखने की चुनौती का भी सामना करना होगा. साथ ही अरविंद केजरीवाल को अपना दायरा दिल्ली के बाहर नहीं बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए. अगर वे ऐसा करने की कोशिश करेंगे, तो बहुत जल्द आप का प्रभाव खत्म हो जायेगा.
उम्मीद है कि वे पहले की गलतियों से सबक लेंगे. यही नहीं अरविंद केजरीवाल को गठबंधन की कला भी सीखनी होगी. क्योंकि राजनीति संभावनाओं का खेल है. केजरीवाल में गठबंधन का नेता बनने की संभावना है, लेकिन यह काम दिल्ली में रहकर और सभी को साथ लेकर चलने की क्षमता से ही संभव हो पायेगा. दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल की जीत विकास की जीत है.
मौजूदा समय में राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन का नेतृत्व करने वाला कोई नेता नहीं है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी के पास नेतृत्व करने की क्षमता नहीं है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की कार्यशैली भारतीय जनमानस कभी स्वीकार नहीं करेगा. वामपंथी दलों का जनाधार सिकुड़ चुका है. ऐसे में बिना साॅफ्ट हिंदुत्व को अपनाये विकास और कल्याण की राजनीति को आगे कर वे गठबंधन के नेता बन सकते हैं. एक बार और ध्यान देने की है कि अब चुनाव में प्रचार का तरीका बदल रहा है.
वे डिजिटल माध्यम का बेहतरीन प्रयोग कर आम जनमानस में अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रहे. ऐसा इसलिए संभव हो पाया कि आप पार्टी सिर्फ काम और विकास के मुद्दे पर पूरी तरह फोकस रही और विपक्ष द्वारा शाहीनबाग के प्रदर्शन को मुद्दा बनाकर उसमें नहीं उलझे. नतीजों से स्पष्ट संकेत है कि लोगों ने विकास और कल्याण को तरजीह दी और धार्मिक उन्माद वाले मुद्दे को खारिज कर दिया.
(यह लेखक के निजी विचार हैं.)

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