ठोस पहल जरूरी

घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारकों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास दर में कमी आयी है. कमजोर मॉनसून और देश के कई हिस्सों में जल संकट भी चिंताजनक संकेत दे रहे हैं. ऐसे में सरकार के सामने आर्थिक बढ़ोतरी को गति देने की बड़ी चुनौती है. वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में वृद्धि दर 5.8 […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 7, 2019 6:55 AM

घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारकों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास दर में कमी आयी है. कमजोर मॉनसून और देश के कई हिस्सों में जल संकट भी चिंताजनक संकेत दे रहे हैं. ऐसे में सरकार के सामने आर्थिक बढ़ोतरी को गति देने की बड़ी चुनौती है. वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में वृद्धि दर 5.8 फीसदी रही थी तथा पूरे साल का आंकड़ा सात फीसदी से भी घटकर 6.8 फीसदी के स्तर पर आ गया.

इस अवधि में हर तिमाही में आर्थिक नरमी का रुझान रहा. इसके साथ बड़े पैमाने पर बेरोजगारी की चुनौती भी सामने है, जो कि श्रम शक्ति के हर भाग-कुशल, अर्द्ध कुशल और अकुशल- में है. ये चिंताएं सरकार की प्राथमिकता में हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन चुनौतियों का सामना करने के लिए दो कैबिनेट समितियों का गठन किया है.

एक समिति निवेश और वृद्धि से संबद्ध होगी, जबकि दूसरी समिति रोजगार एवं कौशल विकास पर केंद्रित होगी. संभवतः यह पहला मौका है, जब इन मुद्दों पर कैबिनेट समितियां बनायी गयी हैं. इन दोनों समितियों की अध्यक्षता स्वयं प्रधानमंत्री करेंगे. इससे स्पष्ट इंगित होता है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने तथा रोजगार के समुचित अवसर पैदा करने के लिए हर संभव प्रयास करने का निश्चय कर लिया है. आर्थिक नरमी का एक कारण निवेश में कमी है.

वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में कुल फिक्स्ड पूंजी निर्माण सकल घरेलू उत्पादन के 32.8 फीसदी के स्तर पर था, लेकिन चौथी तिमाही में यह घटकर 30.7 फीसदी हो गया. कृषि क्षेत्र में तो विकास दर पहली तिमाही के 5.1 फीसदी से गिर कर चौथी तिमाही में ऋणात्मक 0.1 फीसदी हो गयी. औद्योगिक उत्पादन में भी नकारात्मक संकेत हैं. ऐसे में अर्थव्यवस्था के हर महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देने की आवश्यकता है. बैंकों के संरचनात्मक पुनर्गठन तथा सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश की योजनाओं पर गंभीरता से पहल करने की दरकार है.

कृषि संकट से निबटने के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाये हैं, पर मॉनसून की बारिश अगर पर्याप्त नहीं हुई, तो किसानों को राहत पहुंचाने तथा खाद्य उत्पादन कम होने की मुश्किलों के हल के लिए तैयारी की जानी चाहिए. अंतरराष्ट्रीय राजनीति और आर्थिकी की उथल-पुथल से तेल और मुद्रा की कीमतों में उतार-चढ़ाव पर भी नजर रखी जानी चाहिए. घरेलू बाजार में मांग घटने तथा निर्यात में अपेक्षित बढ़ोतरी न हो पाना भी अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह है. मांग, उत्पादन और रोजगार के समीकरण पर ही आर्थिक वृद्धि निर्भर करती है. अनेक साहसी आर्थिक निर्णय लेना मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि रही थी.

इससे आर्थिक गतिविधियों को औपचारिक दायरे में लाने में कामयाबी मिली है तथा कराधान की प्रक्रिया सरल व प्रभावी हुई है. उम्मीद है कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कैबिनेट समितियां जल्दी ठोस सुधार व उपाय तय कर उन्हें अमल में लाने की कोशिश करेंगी.

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