जंजाल बनते एप

सोशल मीडिया और स्मार्ट फोन के विस्तार ने सूचना, संवाद एवं सेवा को व्यापक बनाया है. इस कारण डिजिटल तकनीक हमारे जीवन का अभिन्न अंग बनता जा रहा है. लेकिन इसके उपयोग और उपभोग के नकारात्मक पहलुओं पर भी लगातार ध्यान रखना जरूरी है. इन दिनों एक बेहद लोकप्रिय वीडियो एप पर अदालती और सरकारी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 18, 2019 6:44 AM

सोशल मीडिया और स्मार्ट फोन के विस्तार ने सूचना, संवाद एवं सेवा को व्यापक बनाया है. इस कारण डिजिटल तकनीक हमारे जीवन का अभिन्न अंग बनता जा रहा है. लेकिन इसके उपयोग और उपभोग के नकारात्मक पहलुओं पर भी लगातार ध्यान रखना जरूरी है. इन दिनों एक बेहद लोकप्रिय वीडियो एप पर अदालती और सरकारी रोक की चर्चा है.

हाल के वर्षों में अनेक एप और इंटरनेट गेम भी प्रतिबंधित किये गये हैं. ऐसे सभी विवादों में एक बात समान रूप से कही जाती है कि इन गेम या एप से बच्चों और किशोरों पर खराब असर होता है तथा वे इनके आदी होते जा रहे हैं. ऐसे अनेक मामले सामने आये हैं, जब गेम के कारण बच्चों और किशोरों ने अपने या दूसरों को चोट पहुंचाने की कोशिश की तथा आत्महत्या या हत्या जैसे कृत्य किये. उनके भावनात्मक और शारीरिक शोषण की घटनाएं भी हुई हैं.

स्मार्ट फोन पर किसी गेम या एप की लत के शिकार बच्चों में एकाकीपन, अवसाद, चिड़चिड़ापन और स्वास्थ्य में गिरावट जैसी समस्याएं पैदा होती हैं. इससे वे पढ़ाई और बाद में रोजगार में पीछे रह जाते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि इनसे छुटकारा पाने के क्या उपाय हो सकते हैं. भारत समेत अन्य देशों का यह अनुभव है कि इंटरनेट पर पाबंदी का कोई खास असर नहीं होता है, क्योंकि एप और गेम नये रूप में ज्यादा नुकसान के साथ फिर से आ जाते हैं.

एक ही तरह के हजारों गेम और एप हैं. किसी सोशल मीडिया कंपनी के लिए भी अपने करोड़ों उपयोगकर्ताओं की हरकतों पर नजर रखना और गलती रोकना बेहद मुश्किल है. सरकार के लिए भी अनंत वर्चुअल दुनिया पर निगरानी रख पाना न तो संभव है और न ही उसके पास इसके लिए समुचित संसाधन हैं. परंतु वह समाज में जागरूकता और सतर्कता पैदा करने के लिए गहन अभियान जरूर चला सकती है. वर्ष 2013 में अमेरिका ने मनोचिकित्सा में इंटरनेट की लत को अस्वस्थता में शामिल किया है. चीन, दक्षिण कोरिया और जापान में भी ऐसे प्रावधान हैं.

हमारे देश में अभिभावकों, शिक्षकों और मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों को दुष्प्रभावों की जानकारी देकर प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. उन्हें लत लगने तथा मानसिक, मनोवैज्ञानिक और व्यवहारगत लक्षणों के बारे में पता होना चाहिए. आधुनिक जीवन शैली, शहरों की सामाजिक संरचना और भाग-दौड़ के कारण माता-पिता बच्चों के साथ कम समय बिताते हैं.

खेलने-कूदने की जगहों और मनोरंजन के साधनों की कमी ने भी बच्चों को कंप्यूटर और स्मार्ट फोन की ओर धकेला है. प्रतिस्पर्धा की संस्कृति ने बच्चों को तनाव और दबाव में डाला है. ऐसे में तकनीक उनके लिए परेशानियों से भागने या मन लगाने के विकल्प के रूप में दिखायी पड़ता है.

बच्चों को डिजिटल तकनीक के कुप्रभावों के बारे में बताया जाना चाहिए तथा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वे अधिक समय ऐसे उपकरणों के साथ न रहें. अराजक ऑनलाइन के कहर से बचाव के लिए सजग रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

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