नेताओं का वैलेंटाइन डे

सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार drsureshkant@gmail.com मुझे संत बचपन से ही बहुत पसंद रहे हैं. मैं खुद बड़ा होकर संत बनना चाहता था. बड़ा होकर इसलिए कि ज्यादातर लोग बड़े होकर ही कुछ बनते देखे गये हैं. बच्चों से भी यही पूछा जाता है कि बड़े होकर तुम क्या बनोगे? संतों की उलझी-मैली दाढ़ी और जटाएं […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 14, 2019 8:05 AM

सुरेश कांत

वरिष्ठ व्यंग्यकार

drsureshkant@gmail.com

मुझे संत बचपन से ही बहुत पसंद रहे हैं. मैं खुद बड़ा होकर संत बनना चाहता था. बड़ा होकर इसलिए कि ज्यादातर लोग बड़े होकर ही कुछ बनते देखे गये हैं. बच्चों से भी यही पूछा जाता है कि बड़े होकर तुम क्या बनोगे?

संतों की उलझी-मैली दाढ़ी और जटाएं मुझे बहुत लुभाती थीं. उन्हें देख मुझे लगता था कि उन्हें जिंदगी में कुछ नहीं करना पड़ता, यहां तक कि नहाना-धोना भी नहीं. दूसरा कारण था मेरा संता नामक चरित्र से लगाव, जो सबको हंसाता रहता है.

संता को भी मैं कोई परोपकारी संत ही समझता था और मंदिरों में आरती या प्रवचनों के बाद जो यह जयकारा लगाया जाता है कि ‘बोल भई सब संतन की जय’, उसे मैं दुनियाभर के सभी संताओं की ही जय मानकर जोर-शोर से जयकारे में साथ देता था.

आज भी कभी-कभी मुझे मलाल होता है कि मेरे माता-पिता ने मुझे बड़ा होकर संत नहीं बनने दिया, वरना आज मैं भी कहीं किरपा बांटकर मुफ्त की रोटी तोड़ रहा होता. बस, यही सोचकर सब्र कर लेता हूं कि कहीं जेल की रोटी न तोड़नी पड़ जाती.

आगे चलकर उन कहानियों की वजह से भी संत-महात्मा मुझे पसंद आते रहे, जिनके अनुसार बड़े-बड़े राजा-महाराजा अपनी बेटियों की शादी संत-महात्माओं से करने के लिए लालायित रहते थे. पता नहीं, इससे उनका कौन-सा शौक पूरा होता था या राजकुमारी को वे किस अपराध की सजा देना चाहते थे.

पर मैं इसलिए भी संत-महात्मा बनना चाहता था कि पता नहीं, कब अपना भी भाग्य खुल जाये. सुना ही होगा आपने कि ऐसे ही किसी राजा ने अपनी बेटी की शादी किसी संत-महात्मा से करने की घोषणा की, तो एक चोर भी संतों का भेस बनाकर उम्मीदवारों की लाइन में लग गया. राजा सभी संतों से अपनी बेटी से शादी करने का निवेदन करता गया और सभी उसका निवेदन ठुकराते गये.

आखिर में जब चोर के पास आकर राजा ने उससे प्रार्थना की, तो उसे पता नहीं क्या हुआ, वह सोचने लगा कि जब संत का भेस बनाने भर का इतना प्रभाव है कि खुद राजा मेरे सामने झुका हुआ प्रार्थना कर रहा है, तो असल में संत बनने पर तो पता नहीं क्या होगा! और यह सोचकर उसने भी मना कर दिया और सचमुच का संत बनने चल दिया. सच है, दिमाग खराब होते देर नहीं लगती.

कभी-कभी संत विदेशों में भी हो जाते हैं, फर्क सिर्फ यह है कि वहां उन्हें सेंट कहा जाता है. सेंट वैलेंटाइन का तो देश में इतना प्रभाव है कि नेता तक उनसे प्रभावित हैं. वर्तमान लोकसभा के आखिरी सत्र में यह प्रभाव खूब देखा जा रहा है. चुनाव निकट होने के कारण सदन में कामकाज के दौरान भले ही राजनीतिक तल्खी नजर आती हो, सदन स्थगित होते ही माहौल वैलेंटियाना हो जाता है. सत्ता पक्ष के सांसद विपक्षी बेंच तक, तो विपक्ष के सांसद सत्ता पक्ष की बेंच तक पहुंच जाते हैं.

सभी दलों के सदस्य बड़े प्रेम-भाव से बतियाते नजर आते हैं. दल अपनी जगह है, दिल अपनी जगह. सत्ता जाती है, तो दल काम नहीं आयेगा, इसीलिए वे ‘दल मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिये’ के अंदाज में वैलेंटाइन डे मनाते दिख रहे हैं.

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