डाकिया बना बैंक

डिजिटल तकनीक और कूरियर सेवाओं के विस्तार ने चिठ्ठी पहुंचाने के डाकघरों और डाकियों के काम को बहुत कम कर दिया है, लेकिन आज भी ग्रामीण और कस्बाई इलाकों तथा दूर-दराज भागों में डाकखानों का बड़ा नेटवर्क मौजूद है. संवाद पहुंचाने के साथ डाकघर करोड़ों लोगों के लिए वित्तीय बचत केंद्र के रूप में भी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 20, 2018 6:07 AM

डिजिटल तकनीक और कूरियर सेवाओं के विस्तार ने चिठ्ठी पहुंचाने के डाकघरों और डाकियों के काम को बहुत कम कर दिया है, लेकिन आज भी ग्रामीण और कस्बाई इलाकों तथा दूर-दराज भागों में डाकखानों का बड़ा नेटवर्क मौजूद है.

संवाद पहुंचाने के साथ डाकघर करोड़ों लोगों के लिए वित्तीय बचत केंद्र के रूप में भी काम करते हैं. केंद्र सरकार ने डाक विभाग के विस्तृत फैलाव तथा उपलब्ध मानव संसाधन का उपयोग लोगों के दरवाजे तक बैंकिंग सुविधा पहुंचाने के तंत्र के रूप में करने का दूरदर्शी निर्णय लिया है. इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक के जरिये इस सप्ताह से 650 शाखाओं में यह सुविधा उपलब्ध होगी और इसके साथ 3,250 उपकेंद्र भी इस काम में सहभागी होंगे. इस प्रक्रिया में 11 हजार डाकिये ग्राहकों को उनके दरवाजे पर वित्तीय लेन-देन सुलभ करायेंगे. देश में करीब 17 करोड़ डाकघर बचत खाते हैं.

इन्हें पेमेंट बैंक से जोड़ा जा रहा है. सरकार की कोशिश है कि इस साल के अंत तक इंडिया पोस्ट बैंक प्रणाली देश के सभी 1.55 लाख डाकघरों में पहुंच जाये. रायपुर और रांची से कुछ माह पहले इस पहल को परखने का कार्यक्रम शुरू हुआ था. इस पहल के महत्व और उपयोगिता को समझने के लिए कुछ बातों को रेखांकित करना आवश्यक है.

केंद्र सरकार की वित्तीय नीतियों में निम्न आयवर्ग और निर्धन लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ना भी शामिल है, ताकि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उचित और पारदर्शी ढंग से पहुंचाया जा सके. बीते चार सालों में खाताधारकों के साथ बैंकों और एटीएम की संख्या भी बढ़ी है, लेकिन इसका एक निराशाजनक पहलू यह है कि ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में यह विस्तार बेहद कम है.

यहां तक कि इन इलाकों में एटीएम कम हो गये हैं. फिलहाल घाटे और फंसे कर्जों के बोझ से दबे बैंकों से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे गांवों में सुविधाएं बढ़ाने के लिए प्रयासरत होंगे. इसका नतीजा यह है कि गरीबों को नजदीकी एटीएम के सामने देर तक खड़ा रहना पड़ता है और अक्सर यह भी होता है कि बिना पैसे पाये वापस लौटना पड़ता है या फिर अपने बैंक की शाखा में लेन-देन के लिए कस्बे या शहर जाने की जहमत उठानी पड़ती है. एक पहलू यह भी है कि बैंकिंग सेवाएं लगातार महंगी होती जा रही हैं.

ऐसे वित्तीय परिवेश में समावेशी नीति के तहत लोगों को जोड़ने और उन्हें सुविधाएं प्रदान करने के लिए डाकघरों की सेवाएं लेना ठोस कदम है. एक नये इंफ्रास्ट्रक्चर या नेटवर्क को खड़ा करना बहुत खर्चीला होता और उसमें वक्त भी ज्यादा लगता. बदलते संचार और आर्थिक परिदृश्य में डाक विभाग की उपयोगिता को भी नया आयाम मिला है.

वित्तीय तंत्र में भागीदारी नागरिक की आर्थिकी का एक विशिष्ट पहलू होने के साथ उसके अधिकार की गरिमा से भी जुड़ी हुई है. उम्मीद है कि डाकखानों और डाकियों की नयी भूमिका देश के गांवों में शुभ-लाभ की नयी इबारत लिखने में कामयाब होगी.

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