अदालत की नसीहत

जनहित याचिका दायर करने की व्यवस्था न्याय मांगने और पाने का अधिकार को व्यापकता देती है. कुछ गंभीर मुद्दों की सुनवाई करते हुए शासन के नकारात्मक रवैये पर अदालतें तल्ख टिप्पणियां भी कर देती हैं, जो कि स्वाभाविक ही है. लेकिन, केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने इस पर ऐतराज जताया है. जेलों की […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 9, 2018 11:57 PM
जनहित याचिका दायर करने की व्यवस्था न्याय मांगने और पाने का अधिकार को व्यापकता देती है. कुछ गंभीर मुद्दों की सुनवाई करते हुए शासन के नकारात्मक रवैये पर अदालतें तल्ख टिप्पणियां भी कर देती हैं, जो कि स्वाभाविक ही है.
लेकिन, केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने इस पर ऐतराज जताया है. जेलों की बदहाली से जुड़ी याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा है कि देश में कई समस्याएं हैं, इसलिए समूची शासन-व्यवस्था पर अदालत को कड़े शब्दों के इस्तेमाल से बचना चाहिए.
इस पर अदालत ने सही ही कहा है कि अगर सरकारें अपनी जिम्मेदारी को ठीक से निभातीं, तो जनहित याचिकाओं में न्यायिक दखल की जरूरत ही नहीं पड़ती. केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे एटॉर्नी जनरल को खंडपीठ ने यह भी कहा है कि सरकार को ऐसे संकेत नहीं देना चाहिए कि अदालत उसके काम में अड़ंगा डाल रही है. लोकतांत्रिक राज-व्यवस्था में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकार और कर्तव्य स्पष्ट रूप से निर्धारित हैं.
अगर न्यायपालिका उपलब्ध साक्ष्यों और अपने विवेक के आधार पर कार्यपालिका की आलोचना करती है, तो सरकारों को उसे सकारात्मक रूप से लेते हुए आवश्यक पहलकदमी करनी चाहिए. अदालत की टिप्पणियों का खबर बनने का तर्क देकर उनसे परहेज करने की सलाह देने से सरकार को बचना चाहिए. किसी टिप्पणी या आदेश पर आपत्ति की स्थिति में अपील करने का विकल्प भी सरकार या आमजन के पास है.
ऐसे कई मामले हैं, जिनमें अदालतों ने सतही आधार पर दायर जनहित याचिकाओं को खारिज भी किया है. खंडपीठ की यह दलील भी वाजिब है कि न्यायाधीश भी नागरिक हैं और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की बहाली से वे कतरा कर नहीं निकल सकते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें अदालती फैसलों की वजह से ही काम आगे बढ़ा है या न्याय मिला है.
सरकारी कामकाज की निगरानी संसद या विधानसभाओं के जिम्मे है, पर नागरिकों को भी अदालत जाने का अधिकार है. सरकार को अदालत की इस नसीहत पर गौर करना चाहिए कि वह अपने अधिकारियों से संसद द्वारा पारित कानूनों का पालन सुनिश्चित कराये. उस दौर को बीते भी ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, जब पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय के रुख को सरकारें ‘न्यायिक सक्रियता’ और ‘न्यायिक दायरे से बाहर जाना’ कहकर आलोचना करती थीं.
लेकिन आज वे आदेश बेहद अहम माने जाते हैं. सरकार और अदालत को हर तरह की तकरार से बचना चाहिए और अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए नागरिकों के हितों को प्रमुखता देनी चाहिए. अदालती टिप्पणियों और उनके खबर बनने के मामले को सरकार बहाना न बनाकर बेहतर कामकाज करने की चुनौती और मौके के रूप में ले.

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