ऐसी विज्ञान शिक्षा से कैसे बढ़ेंगे आगे!

पिछले दिनों झारखंड में इंटरमीडिएट के जो नतीजे आये, उसने हमारी विज्ञान की शिक्षा के हाल को बेपर्दा कर दिया है. यह चौंकानेवाली खबर है कि रसायन विज्ञान में 21 हजार छात्रों को सिर्फ पास होने भर अंक मिले हैं. इस विषय में छात्रों का औसत प्राप्तांक सिर्फ 50 रहा. राज्य में केवल 32 विद्यार्थियों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 20, 2014 5:16 AM

पिछले दिनों झारखंड में इंटरमीडिएट के जो नतीजे आये, उसने हमारी विज्ञान की शिक्षा के हाल को बेपर्दा कर दिया है. यह चौंकानेवाली खबर है कि रसायन विज्ञान में 21 हजार छात्रों को सिर्फ पास होने भर अंक मिले हैं. इस विषय में छात्रों का औसत प्राप्तांक सिर्फ 50 रहा. राज्य में केवल 32 विद्यार्थियों ने 90 फीसदी से ऊपर अंक प्राप्त किये हैं. गणित का हाल भी बुरा है. इस विषय में छात्रों ने औसतन सिर्फ 37 अंक हासिल किये.

आज हर जगह यह बात कही जाती है कि यह विज्ञान और तकनीक का युग है. कोई राष्ट्र, राज्य या समाज, विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति के बिना उन्नति नहीं कर सकता. लेकिन, इस अवधारणा के बीच झारखंड कहां खड़ा है? यहां विज्ञान शिक्षा की जो स्थिति दिख रही है कि क्या उससे राज्य कभी विकास की सीढ़ियां चढ़ पायेगा? आज झारखंड में बेरोजगारी चरम पर है.

बाहर अच्छा काम पाने के लिए जरूरी है विज्ञान और तकनीकी में कुशलता. विज्ञान शिक्षा में पिछड़ेपन का ही नतीजा है कि झारखंड से बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों में जाकर काम करनेवाले युवा बहुत कम पैसे में काम करते हैं. अगर हम विज्ञान शिक्षा में अपनी स्थिति बेहतर करें तो यह तसवीर बदल सकती है. पर, ऐसा होगा कैसे? राज्य में शिक्षकों की भारी कमी है. विज्ञान शिक्षकों की तो और भी ज्यादा. यहां जब भी शिक्षकों की भरती प्रक्रिया शुरू होती है, उसमें कोई न कोई गड़बड़ी सामने आ जाती है जिसकी वजह से भरती रुक जाती है.

मामला अदालती पेचीदगियों और जांच में सालों तक उलझा रहता है. इसके चलते डिग्रीधारी युवकों को नौकरी नहीं मिल पाती और छात्रों को शिक्षक नहीं मिल पाते. विज्ञान शिक्षा के लिए स्कूल-कॉलेजों में बुनियादी ढांचे का भी हाल बुरा है. अनेक स्कूल-कॉलेजों में प्रयोगशालाएं नहीं हैं. प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिक उपकरण नहीं हैं. विज्ञान के बारे में छात्रों का प्रयोगात्मक ज्ञान शून्य है. विज्ञान में ‘करके सीखने’ का अपना महत्व है. इससे अवधारणाएं स्पष्ट होती हैं. विज्ञान को रट कर नहीं, अवधारणाओं की स्पष्टता से ही समझा जा सकता है. इस बार के इंटरमीडिएट के नतीजों को खतरे की घंटी के रूप में सरकार को लेना चाहिए और उसे शिक्षकों की नियुक्ति और प्रयोगशालाओं की बेहतरी के लिए तत्काल कदम उठाना चाहिए.