आॅटोफैगी और उपवास का महत्व
शफक महजबीन... टिप्पणीकार जापान के सेल बायोलॉजिस्ट योशिनोरी ओसुमी को चिकित्सा के क्षेत्र में ‘ऑटोफैगी’ के एक महत्वपूर्ण शोध के लिए साल 2016 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था. ओसुमी ने अपने शोध में पाया कि अगर आदमी कई घंटों तक कुछ भी न खाये, तो कोशिकाएं हमारे शरीर में मौजूद गंदगी को ही खाने […]
शफक महजबीन
टिप्पणीकार
जापान के सेल बायोलॉजिस्ट योशिनोरी ओसुमी को चिकित्सा के क्षेत्र में ‘ऑटोफैगी’ के एक महत्वपूर्ण शोध के लिए साल 2016 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था. ओसुमी ने अपने शोध में पाया कि अगर आदमी कई घंटों तक कुछ भी न खाये, तो कोशिकाएं हमारे शरीर में मौजूद गंदगी को ही खाने लगती हैं. इसी प्रक्रिया को ‘आॅटोफैगी’ कहते हैं. ‘आॅटोफैगी’ का शाब्दिक अर्थ ही ‘खुद को खा लेना’ होता है.
और इस प्रक्रिया में कोशिकाएं खुद को ही खा लेती हैं. सेल बायोलॉजी की एक मौलिक प्रक्रिया है ऑटोफैगी, जो हमारी सेहत और बीमारियों से लड़ने के लिए जरूरी है. इससे जाहिर है कि उपवास हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी होता है.
अपने शोध में योशिनोरी ओसुमी ने बताया है कि अगर साल में एक बार भी कोई इंसान 20 से 25 दिन रोजाना 9-10 घंटों तक भूखा रहे, तो इससे कैंसर के क्वांटम डॉट्स तेजी से कम हो जाते हैं और कैंसर का खतरा नहीं रह जाता.
ऑटोफैगी की प्रक्रिया के रुकने पर मधुमेह होने का खतरा बढ़ जाता है. करीब पंद्रह सौ साल पहले इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.) ने मुसलमानों को रोजे रखने की बात कही और रोजा सभी मुसलमानों पर फर्ज हुआ. इस्लामी कैलेंडर के हिसाब से साल के नौवें महीने ‘रमजान’ में मुसलमान रोजा रखते हैं, जिसमें बिना कुछ खाये-पिये यानी निर्जल 12-14 घंटे तक रहना होता है. अगले सप्ताह से रमजान का महीना शुरू भी होनेवाला है. जाहिर है, रोजा रखने से कई गंभीर बीमारियाें के खतरे कम हो जाते हैं.
सिर्फ इस्लाम में ही नहीं, भारत में करीब हर धर्म के लोग अलग-अलग तरीके से उपवास रखते हैं. हिंदू लोग नवरात्र में नौ दिन का व्रत रखते हैं, जिसमें वे अन्न और नमक का सेवन नहीं करते हैं. और भी कई व्रत हैं, जो समय-समय पर आते रहते हैं, जैसे फलाहारी छठ का व्रत.
महात्मा बुद्ध कहते हैं- ‘जो इंसान अपने आहार पर काबू नहीं रख सकता, वह इंसान शायद ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सके.’ इसी का अनुसरण करते हुए बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध लोग उपवास रखते हैं. जहां जैन समुदाय में ‘रोहिणी व्रत’ का विशेष महत्व है, तो वहीं ईसाई लोग ‘ऐश वेडनेसडे’ से उपवास शुरू करते हैं, जो 40 दिन तक चलता है और ईस्टर से समाप्त होता है. यानी सभी धर्मों में उपवास की महत्ता बतायी गयी है.
उपवास का अर्थ सिर्फ भूखे रहना नहीं है, बल्कि जुबान से जायके को दूर रखना है. भले ही धर्मों के हिसाब से उपवास, व्रत या रोजे के दौरान खाने-पीने की चीजों को त्यागना पड़ता हो, लेकिन अगर गौर करें, तो त्याग इंसान की वैचारिक उन्नति के लिए भी जरूरी है. धर्म की बहुत सी ऐसी बातें हैं, जिनका कुछ न कुछ लॉजिक जरूर होता है, जिसका संबंध हमारी अच्छी सेहत से भी है.
डॉक्टर भी संतुलित भोजन की सलाह देते हैं और अच्छी सेहत के लिए सप्ताह में एक दिन भूखे रहने या फिर फलाहार की बात करते हैं. उपवास से पेट से संबंधित कई बीमारियों को दूर किया जा सकता है. कहा भी गया है कि पेट ठीक, तो सब ठीक. तो आप भी उपवास को अपने जीवन का हिस्सा बनाइये.
