वृक्ष की निगहबानी में

मिथिलेश कु. राय टिप्पणीकार ‘दिल्ली बेचारी प्रदूषण की मारी’ का शोर इतना बढ़ गया है कि कल कक्का भी पूछ रहे थे. तभी मुझे फतेहपुर की याद आ गयी. फतेहपुर एक गजब का गांव है. गांव में प्रवेश करते ही जेब में पड़े मोबाइल से टावर गायब हो जाता है. स्कूल की छत पर चढ़ […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 10, 2017 5:53 AM

मिथिलेश कु. राय

टिप्पणीकार

‘दिल्ली बेचारी प्रदूषण की मारी’ का शोर इतना बढ़ गया है कि कल कक्का भी पूछ रहे थे. तभी मुझे फतेहपुर की याद आ गयी. फतेहपुर एक गजब का गांव है. गांव में प्रवेश करते ही जेब में पड़े मोबाइल से टावर गायब हो जाता है. स्कूल की छत पर चढ़ जाइये, तब मोबाइल में टावर आता है.

छत के जिस कोने में टावर आता है, आप वहीं डोलते रहिये. परिधि से बाहर निकले नहीं कि टावर मोबाइल से चला जायेगा. तब आपको फोन लगाने या इंटरनेट कनेक्ट करने के लिए फिर से प्रयास करने पड़ेंगे.

कहते हैं कि हमारी जेब में पड़ा मोबाइल फोन हमेशा एक ‘रे’ के संपर्क में रहता है, जो मानव स्वस्थ्य के लिए खतरनाक होता है. लेकिन जहां रे का कोई खतरा ही न हो वहां क्या! कोई सुनता है, तो उसे आश्चर्य होता है. संयोग से टॉवर आ भी जाता है, तो जितनी देर की बात होती है, उससे ज्यादा देर का हेल्लो-हेल्लो हो जाता है. कहते हैं कि यहां के लोगों को इसकी आदत हो गयी है, सो यह बात कुछ खास नहीं है, जिस पर चर्चा हो और कोई समाधान निकाला जाये, ताकि आगे से बातें करने में कोई परेशानी न हो और मोबाइल में नेट भी द्रुत गति से चले.

दूर से यह गांव बांसों का एक घना जंगल दिखता है. बांसों के झुरमुट में जामुन के लंबे-लंबे और मोटे-मोटे पेड़ दिखते हैं. जैसे-जैसे गांव नजदीक आता जाता है- बांस और जामुन के जंगल में कच्चे-पक्के घर दिखने शुरू हो जाते है.

गांव के एकदम पास आ जाने के बाद ही पता चलता है कि बांस के जंगल में बसे इस गांव में पक्की सड़कें भी हैं और स्कूल और सामुदायिक भवन भी. बिजली भी है और घरों में एलसीडी एवं छतरी भी हैं. अंदर आने के बाद ही पता चलता है कि गांव में युवाओं के पास कंप्यूटर भी हैं और कई परिवार के पास चरपहिया वाहन भी.

कहते हैं कि इस धरती पर पहले सिर्फ जंगल हुआ करता था. जंगल में ही गांव बसाये गये. जिन गांव के पास से जंगल पूरी तरह लुप्त हो गये, कालांतर में वे शहर में पतिवर्तित हो गये. जबकि, जिन गांव ने अपने आस-पास कुछ पेड़-पौधों को रहने दिया, उनके पास गांव की संज्ञा रहने दी गयी.दूर से जंगलनुमा दिखनेवाले इस गांव के पास बांस और जामुन के जंगल का किस्सा कुछ भी नहीं है.

सब दादा-परदादा के लगाये हुए हैं, लेकिन अब एक धरोहर के रूप में सबको इनसे मोह हो गया है. गांव की नयी पीढ़ी के लोगों को भी विभिन्न तरह के वृक्षों के बागान लगाने में खूब मन लगता है. कदम आम के साथ-साथ महोगनी रबड़ और सागवान के पौधे रोपे जा रहे हैं.

किसी को भी किसी के बारे में यह पता चलता है कि उन्होंने पचास पौधे लगाये हैं, तो उनके मन में भी सौ पौधे लगाने के विचार उठने लगते हैं. डॉक्टर और इंजीनियर से भरे इस गांव का ग्राम देवी भी बांस के एक घने जंगल में विराजती हैं. जंगल में ही उनका मंदिर है. वहीं उनकी पूजा होती है. वहीं सालाना मेला लगता है. वहीं लोग मनौती मांगते हैं. वहीं रात को मंडली सजती है. वहीं कीर्तन होता है.

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