स्वदेश में विकसित कोवाक्सिन को तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण की मंजूरी मिली, नवंबर के पहले सप्ताह में शुरू होगा ट्रायल

नयी दिल्ली : स्वदेश में विकसित कोरोना के टीके कोवाक्सिन को तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण की मंजूरी मिल गयी है. मालूम हो कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग से भारत बायोटेक कंपनी ने टीके को विकसित किया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 23, 2020 4:18 PM

नयी दिल्ली : स्वदेश में विकसित कोरोना के टीके कोवाक्सिन को तीसरे चरण के क्लिनिकल परीक्षण की मंजूरी मिल गयी है. मालूम हो कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग से भारत बायोटेक कंपनी ने टीके को विकसित किया है.

भारत बायोटेक ने कोरोना वैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के ट्रायल डाटा के साथ एनिमल चैलेंज डाटा पेश किया था. सभी डाटा देखने के बाद चर्चा कर ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने तीसरे चरण के ट्रायल को मंजूरी दे दी है.

सरकारी अधिकारी के अनुसार, ”विस्तृत विचार-विमर्श और उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर, समिति ने तीसरे चरण के नैदानिक ​​परीक्षण करने की अनुमति देने की अनुमति दे दी है. साथ ही शर्त रखा है कि रोगसूचक मामलों के लिए प्राथमिक प्रभावकारिता के बिंदु को संशोधित किया जाना चाहिए.

टीके के परीक्षण का यह अंतिम चरण नवंबर माह के पहले सप्ताह में शुरू होगा. 18 वर्ष से अधिक आयु के 28 हजार से अधिक लोगों पर इस टीके का परीक्षण किया जायेगा. इसका परीक्षण दस राज्यों के 19 स्‍थानों में किया जायेगा. इनमें दिल्ली, मुंबई, लखनऊ और पटना शामिल हैं.

मालूम हो कि पिछले माह कंपनी ने कहा था कि कोवाक्सिन ने बंदरों में वायरस के प्रति एंटीबॉडीज विकसित किये जाने से स्पष्ट हो गया कि यह वैक्सीन जीवित शरीर में भी कारगर है. देसी कोवाक्सिन के पहले चरण का ट्रायल 15 जुलाई को देश के 17 विभिन्न जगहों पर शुरू हुआ था.

प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी हाल ही जारी बयान में कहा था कि भारत में तीन टीके विकसित होने के उन्नत चरण में हैं. इनमें से दो टीके दूसरे चरण में पहुंचे हैं, जबकि एक टीका तीसरे चरण में है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने भी अगले साल की शुरुआत तक कोविड-19 का टीका उपलब्ध होने की संभावना जतायी है.

वैक्सीन को लेकर डीसीजीआई ने भी गाइडलाइन जारी की थीं. नयी गाइडलाइन में कहा गया था कि कोरोना वैक्सीन के तीसरे फेज के ह्यूमन ट्रायल में कम-से-कम 50 प्रतिशत प्रभावकारिता होनी चाहिए.

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