क्या नेपाल में बैन कर दी जाएगी हिंदी ? चीन के शह पर ओली करने जा रहें हैं ये काम, मच जाएगा हंगामा

india nepal tension : क्या हिंदी भारत (hindi ban) के पड़ोसी मुल्क में बैन कर दी जाएगी ? यह सवाल नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) के एक बयान के बाद सबके मन में उठ रहा है. दरअसल, भारत विरोधी रूख अपनाए हुए ओली अब संसद में हिंदी भाषा को बैन करने पर विचार कर रहे हैं. जनता समाजवादी पार्टी की सांसद और मधेस नेता सरिता गिरी ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की है. उन्होंने नेपाल सरकार के इस फैसले को लेकर सदन के अंदर जोरदार विरोध किया.

By Amitabh Kumar | June 27, 2020 1:39 PM

क्या हिंदी भारत के पड़ोसी मुल्क में बैन कर दी जाएगी ? यह सवाल नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के एक बयान के बाद सबके मन में उठ रहा है. दरअसल, भारत विरोधी रूख अपनाए हुए ओली अब संसद में हिंदी भाषा को बैन करने पर विचार कर रहे हैं. जनता समाजवादी पार्टी की सांसद और मधेस नेता सरिता गिरी ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की है. उन्होंने नेपाल सरकार के इस फैसले को लेकर सदन के अंदर जोरदार विरोध किया.

सरिता गिरी ने कहा कि ऐसा करके सरकार तराई और मधेशी क्षेत्र में कड़े विरोध को आमंत्रित करने का काम कर रही है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सदन को इतिहास से सीख लेनी चाहिए. उन्होंने ओली सरकार पर करारा प्रहार करते हुए पूछा कि क्या इसके लिए चीन से निर्देश आए हैं ?

हिंदी भाषा को बैन करना आसान नहीं : जानकारों की मानें तो नेपाली सरकार के लिए हिंदी भाषा को बैन करना आसान नहीं होगा. नेपाली के बाद इस हिमालयी देश में सबसे ज्यादा मैथिली, भोजपुरी और हिंदी लोग बोलते नजर आते हैं. नेपाल के तराई क्षेत्र में रहने वाली ज्यादातर आबादी बोलचाल में भारतीय भाषाओं का उपयोग करती है. यदि ओली सरकार हिंदी बैन करने का काम करेगी तो तराई क्षेत्र में इसका विरोध नजर आएगा और सरकार पर इसका असर पड़ेगा.

…तो टूट जाएगी ओली की कम्युनिस्ट पार्टी: नेपाल में पीएम ओली की पार्टी टूट की कगार पर नजर आ रही है. पार्टी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने ओली का इस्तीफा मांगा है. उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो पार्टी तोड़ दिया जाएगा. दो पूर्व पीएम और कई सांसद भी ओली के खिलाफ दिख रहे हैं. इसके बाद भी ओली ने इस्तीफे से इनकार किया है.

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ओली की चालाकी : यदि आपको याद हो तो प्रचंड के प्रधानमंत्री बनते ही पार्टी में संघर्ष शुरू हो गया था. विपक्ष का डर दिखाकर ओली ने उन्हें गठबंधन और फिर विलय के लिए मजबूर करने का काम किया. ओली और बामदेव गौतम को ढाई-ढाई साल के लिए पीएम पद पर काबिज होना था लेकिन ओली ने लिपुलेख के मुद्दे को उभारा और प्रचंड को संगठन की बागडोर सौंपकर अगले ढाई साल भी अपने नाम कर लिये.

Posted By : Amitabh Kumar

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