अभिजीत सेन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दी धार, फसलों पर MSP और PDS में गेहूं-चावल को कराया शामिल, नहीं रहे

रीब चार दशक से अधिक के अपने करियर में अभिजीत सेन ने नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अर्थशास्त्र के प्रध्यापक थे और कईं महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर रहे. वह कृषि लागत और मूल्य आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 30, 2022 9:14 AM

नई दिल्ली : भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को धार देने वाले और योजना आयोग के पूर्व सदस्य तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ अभिजीत सेन का सोमवार रात निधन हो गया. वह 72 साल के थे. अर्थशास्त्री अभिजीत सेन के भाई डॉ प्रणव सेन ने यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि अभिजीत सेन को रात करीब 11 बजे दिल का दौरा पड़ा. हम उन्हें अस्पताल ले गए, लेकिन तब तक उनका निधन हो चुका था.

2004 से 2014 तक थे योजना आयोग के सदस्य

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, करीब चार दशक से अधिक के अपने करियर में अभिजीत सेन ने नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अर्थशास्त्र के प्रध्यापक थे और कईं महत्वपूर्ण सरकारी पदों पर रहे. वह कृषि लागत और मूल्य आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2004 से 2014 तक अर्थशास्त्री अभिजीत सेन योजना आयोग के सदस्य थे.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दी नई धार

बताया यह भी जाता है कि अर्थशास्त्री अभिजीत सेन ने भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नई धार दी. अभिजीत सेन 1985 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आर्थिक अध्ययन के बारे में पढ़ाते थे. इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज और एसेक्स में अर्थशास्त्र पढ़ाया. इसके अलावा, वह कृषि लागत और मूल्य आयोग, 1997-2000 के अध्यक्ष थे.

फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू कराया

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, अर्थशास्त्री अभिजीत सेन ने अपने शिक्षण और शोध के अलावा नीतिगत पक्ष पर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1997 में संयुक्त मोर्चा सरकार ने उन्हें कृषि लागत और मूल्य आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया. कृषि मंत्रालय ने अभिजीत सेन की सिफारिश पर कई फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की सिफारिश करने का काम किया.

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पीडीएस में गेहूं-चावल को कराया शामिल

जब उनका कार्यकाल तीन साल बाद समाप्त हुआ, तो उन्हें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार द्वारा दीर्घकालिक खाद्य नीति पर विशेषज्ञों की उच्च-स्तरीय समिति का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी. समिति ने भारत में सभी उपभोक्ताओं के लिए चावल और गेहूं के लिए एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) शुरू करने और सीएसीपी को एक सशक्त, वैधानिक निकाय बनाने के लिए की गई सिफारिशों में से एक था.

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