Covid-19 वैक्सीन बनाने की रेस में भारत काफी पीछे, दुनिया भर में 21 कंपनियां ह्यूमन ट्रायल तक पहुंची

covid-19 vaccine, coronavirus update: कोरोना वायरस से संक्रमण को रोकने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक वैक्सीन तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं ताकि इस महामारी को रोका जा सके. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक, दुनियाभर में लगभग 160 तरह की वैक्सीन पर काम हो रहा है, जबकि इनमें से करीब 21 वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के स्टेज में हैं. इसके साथ ही भारत कोविड-19 वैक्सीन बनाने की रेस में दुनिया के मुकाबले काफी पीछे है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 14, 2020 9:54 AM

Covid-19 vaccine, coronavirus update: दुनिया में बढ़ते कोरोना वायरस संकट के बीच कोविड-19 वैक्सीन बनाने को लेकर विभिन्न देशों के बीच एक तरह की होड़ नजर आ रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक, दुनियाभर में लगभग 160 तरह की वैक्सीन पर काम हो रहा है, जबकि इनमें से करीब 21 वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के स्टेज में हैं. इसके साथ ही भारत कोविड-19 वैक्सीन बनाने की रेस में दुनिया के मुकाबले काफी पीछे है. हाल ही में भारत सरकार द्वारा कोविड-19 की वैक्सीन कोवाक्सिन को 15 अगस्त तक लॉन्च करने का दावा किया गया था, मगर ऐसा अब होता नहीं दिख रहा.

लाइव मिंट ने भारतीय वायरोलोजिस्ट शाहिद जमील के हवाले से लिखा है कि दुनियाभर में लगभग 160 तरह की वैक्सीन पर काम चल रहा है. इनमें से 139 प्रीक्लीनिकल ट्रायल तक पहुंची है. मतलब इन वैक्सीन का जानवरों पर ट्रायल बाकी है. उन्होंने कहा कि मानवता को बचाने के लिए इतिहास में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर कोशिशें की जा रहीं हैं. शाहिद जमील के मुताबिक, भारत की दो वैक्सीन ने प्रीक्लीनिकल ट्रायल सफल रही हैं और आगे के ट्रायल के लिए संबंधित प्राधिकरण के अनुमति का इंतजार है. इसमें एक तथ्य ये है कि भारत की कोवाक्सिन नामक वैक्सीन डब्लूएचओ की सूची में नहीं है.

ऐसा क्यों है इस बारे में पूछने पर डब्लूएचओ के अधिकारी ने बताया कि डब्लूएचओ के पास हर देशों की वैक्सीन को सूचीबद्ध करने का एक क्राइटेरिया है. इस क्राइटेरिया से पता चलता है कि ये वैक्सीन आगे विकास करेगा कि नहीं. हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि भारत की कोवाक्सिन ने कौन सा क्राइटेरिया पूरा नहीं किया. डब्लूएचओ ने की सूची के मुताबिक दुनिया भर में 21 कंपनियां कोविड-19 के क्लीनिकल ट्रायल स्टेज में है. यह वह स्टेज है जिसमें वैक्सीन की जांच मानव शरीर पर होता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि जिस रफ़्तार से वैज्ञानिक कोरोना वायरस के टीके के लिए रिसर्च कर रहे हैं, वो असाधारण है. हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि किसी वैक्सीन के विकास में सालों लग जाते हैं और कभी-कभी तो दशकों भी. उदाहरण के लिए हाल ही जिस इबोला वैक्सीन को मंजूरी मिली है, उसके विकास में 16 साल का वक़्त लग गया.

वैक्सीन का प्रयोग कैसे

डब्लूएचओ के मुताबिक, इंसानों पर परीक्षण की प्रक्रिया भी तीन चरणों में पूरी होती है. पहले चरण में भाग लेने वाले लोगों की संख्या बहुत छोटी होती है और वे स्वस्थ होते हैं. दूसरे चरण में परीक्षण के लिए भाग लेने वाले लोगों की संख्या ज़्यादा रहती है और कंट्रोल ग्रुप्स होते हैं ताकि ये देखा जा सके कि वैक्सीन कितना सुरक्षित है. कंट्रोल ग्रुप का मतलब ऐसे समूह से होता है जो परीक्षण में भाग लेने वाले बाक़ी लोगों से अलग रखे जाते हैं. प्रयोग के तीसरे चरण में ये पता लगाया जाता है कि वैक्सीन की कितनी खुराक असरदार होगी.

डब्लूएचओ की शीर्ष वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन के हवाले से लाइव मिंट ने लिखा है कि वैक्सीन के तीसरे चरण में बहुत बड़ी संख्या के लोगों पर जांच होती है. अगर भारत में क्लीनिकल ट्रायल होता है तो कम से कम हजार में से 10 लोगों पर उस वैक्सीन की जांच होनी चाहिए. उनके मुताबिक, दुनिया की जो 21 वैक्सिन क्लीनिकल ट्रायल तक पहुंची है वो तीसरे चरण में पहुंच चुकी हैं. इसमें से एक है एक ही चीन की और दूसरा ब्राजील का. हांलांकि इच चरण से आगे बढ़ना अभी मुशिकल लग रहा है क्योंकि वैक्सीन का फैल्योर रेट बहुत ज्यादा है.

इन देशों में इतना हो रहा खर्च

कोरोना वायरस से संक्रमण को रोकने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक वैक्सीन तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं ताकि इस महामारी को रोका जा सके.इसके लिए खूब सारा पैसा भी खर्च किया जा रहा है. वैक्सीन के लिए पैसा खर्च करने में भी भारत काफी पीछे है. रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना की वैक्सीन बनाने के लिए अमेरिका में सबसे ज्यादा 1122 मिलियन डॉलर खर्ज हो रहा है. इसके बाद जर्मनी में 997 मिलियन डॉलर खर्च हो रहा है. इसके बाद ब्रिटेन, नार्वे, साउथ कोरिया, चीन, सऊदी अरब, स्पेन और हॉलेंड जैसे देशों में वैक्सीन को लेकर सबसे ज्यादा पैसा बहाया जा रहा है.

Posted By: Utpal kant

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