राष्ट्रपति चुनाव : शिव सेना फिर बिगाड़ेगी भाजपा का खेल ?

नयी दिल्ली : जुलाई में होनेवाले राष्ट्रपति चुनाव की तैयारियां शुरू हो गयी हैं. सरकार और विपक्ष के बीच इस बार कांटे की टक्कर हो सकती है, क्योंकि छह क्षेत्रीय दलोंका ग्रुपइसबारचुनावमें अहमभूमिकानिभा सकताहै. शिव सेना भी एनडीए को गच्चा दे सकती है. ऐसे में देश के प्रथम नागरिक के चुनाव में एक-एक मत भाजपा […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 24, 2017 10:00 AM

नयी दिल्ली : जुलाई में होनेवाले राष्ट्रपति चुनाव की तैयारियां शुरू हो गयी हैं. सरकार और विपक्ष के बीच इस बार कांटे की टक्कर हो सकती है, क्योंकि छह क्षेत्रीय दलोंका ग्रुपइसबारचुनावमें अहमभूमिकानिभा सकताहै. शिव सेना भी एनडीए को गच्चा दे सकती है. ऐसे में देश के प्रथम नागरिक के चुनाव में एक-एक मत भाजपा के लिए अहम है.

इसलिए भाजपा एक साथी की तलाश कर रही है, जो उसके उम्मीदवार की जीत पक्की कर सके. वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चाहती हैं कि एक बृहद गंठबंधन बने, जो भाजपा नीत एनडीए का मुकाबला कर सके.

राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए को टक्कर देने के लिए गोलबंदी हो गयी शुरू, विपक्ष ने सौंपी सोनिया को कमान

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात इस बात के संकेत हैं कि राज्यों की सरकारें केंद्र को अपनीताकत का इल्म करा देना चाहती हैं.

दरअसल, इस बार छह क्षेत्रीय दलों अन्नाद्रमुक (तमिलनाडु), बीजू जनता दल (ओड़िशा), तेलंगाना राष्ट्र समिति (तेलंगाना), वाइएसआर कांग्रेस पार्टी (आंध्रप्रदेश), आम आदमी पार्टी (दिल्ली और पंजाब) और इंडियन नेशनल लोक दल (हरियाणा)का प्रेसिडेंशियल इलेक्टोरल कॉलेज की 13 फीसदी वोट शेयरपरकब्जा है. ऐसे में ये दल राष्ट्रपति चुनाव के मुकाबले को दिलचस्प बना सकते हैं.

राष्‍ट्रपति चुनाव से पहले आज NDA की महा बैठक, उद्धव भी होंगे श‍ामिल

इन दोनों दलों ने अब तक भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों से समान दूरी बना रखी है. लेकिन, कांग्रेस यदि इन दलों को अपने पक्ष में करने में कामयाब हो गया, तो मुकाबला कांटे का हो सकता है. वहीं, यदि भाजपा सिर्फ एक दल को अपने साथ लाने में कामयाब रहा, तो उसके प्रत्याशी की जीत पक्की हो जायेगी.

यहां बताना प्रासंगिक होगा कि विपक्ष के पास इस समय प्रेसिडेंशियल इलेक्टोरल कॉलेज के 35.47 फीसदी वोट हैं. यदि उन्हें छह दलों का समर्थन मिल जाये, तो 13.06 फीसदी वोट के साथ उसका वोट प्रतिशत बढ़ कर 48.53 हो जायेगा, जो सत्तासीन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन (एनडीए) के वोट शेयर 48.64 फीसदी से 0.11 फीसदी ही कम रह जायेगी.

आडवाणी, जोशी के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी में बाधा नहीं

हालांकि, भाजपा के लिए राहत की बात यह है कि कोई एक बड़ा दल या कोई दो छोटे दल उसके साथ आ जाते हैं, तो वह बहुमत का आंकड़ा पार कर लेगी. विशेषज्ञ मानते हैं कि सत्ता में होने का फायदा उसे मिलेगा और अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनाने के लिए उसे जरूरी मत जुटाने में कोई परेशानी नहीं होगी. इसके लिए जरूरी है कि एनडीए के सभी दल (शिव सेना समेत) एकजुट रहें.

देश में बड़ी संख्या में छोटी पार्टियां भी हैं, जो उपरोक्त तीन गुटों (भाजपा, कांग्रेस और छह क्षेत्रीय दलों का गंठबंधन) में खुद को फिट नहीं पाते. ऐसे दलों के पास तीन फीसदी से कुछ ही कम वोट हैं. लेकिन, मुश्किल यह है कि ये दल अभी अपने पत्ते नहीं खोलेंगे. उम्मीदवारों के सामने आने के बाद ही ये पार्टियां तय करेंगी कि इन्हें किसके साथ जाना है. किसी भी प्रत्याशी को जिताने में इनकी भूमिका अहम हो सकती है.

दलित को राष्ट्रपति बनाने की जीतन राम मांझी की मांग, अब तक ये हुए दलित राष्ट्रपति

यहां बताना प्रासंगिक होगा कि राष्ट्रपति चुनाव में सभी लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों के अलावा 31 विधानसभाओं में भी मतदान होता है. देश में 784 सांसद और 4,114 विधायक हैं, जिनके वोट का मूल्य प्रेसिडेंशियल एंड वाइस प्रेसिडेंशियल इलेक्शन रूल्स, 1974 से तय होता है. हर सांसद के वोट का मूल्य 708 है, जबकि एक-एक विधायक के मत का मूल्य अलग-अलग होता है, जो राज्य की आबादी पर निर्भर करता है.

उत्तर प्रदेश के विधायक के वोट का मूल्य सबसे ज्यादा (208) है, जबकि सिक्किम के विधायक के मत का मूल्य सबसे कम (07) है.

Next Article

Exit mobile version