बलात्कारी को विशेष परिस्थिति में कम सजा दी जा सकती है: न्यायालय

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि बलात्कार के जुर्म के दोषी को कम सजा दी जा सकती है यदि अदालत को लगता है कि ऐसा करने की ‘पर्याप्त और विशेष वजह हैं. न्यायमूर्ति एम वाई इकबाल और न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोस की खंडपीठ ने हालांकि 20 साल पुराने बलात्कार के मामले में […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 1, 2015 11:42 AM

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि बलात्कार के जुर्म के दोषी को कम सजा दी जा सकती है यदि अदालत को लगता है कि ऐसा करने की ‘पर्याप्त और विशेष वजह हैं. न्यायमूर्ति एम वाई इकबाल और न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोस की खंडपीठ ने हालांकि 20 साल पुराने बलात्कार के मामले में रवीन्द्र की दोषसिद्धि बरकरार रखी लेकिन जेल में बिताई गयी अवधि की सजा सुनाते हुये उसे रिहा करने का आदेश दे दिया.

न्यायालय ने ऐसा करते समय ‘पर्याप्त और विशेष’ वजहों के मद्देनजर इस तथ्य पर विचार किया कि मुकदमा काफी लंबा खिंचा था और दोषी तथा पीडित दोनों का ही अलग अलग विवाह हो चुका है. न्यायालय ने इसके साथ ही दोनों के बीच समझौता हो जाने के तथ्य को भी महत्व दिया. भारतीय दंड संहिता की धारा 376 :2::जी: में प्रावधान है कि अदालतें पर्याप्त और विशेष कारणों का फैसले में जिक्र करते हुये दस साल से कम की कैद की सजा सुना सकती हैं. न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हमारी राय है कि अपीलकर्ता का प्रकरण कम सजा देने के लिये धारा 376 (2)(जी) का प्रावधान लागू करने का उचित मामला है क्योंकि यह घटना 20 साल पुरानी है और संबंधित पक्षों का विवाह हो चुका है और उनमें समझौता हो गया है. इसलिए यह पर्याप्त और विशेष कारण हैं.’’

रवीन्द्र को 24 अगस्त, 1994 को खेत में काम कर रही एक महिला से बलात्कार के जुर्म में निचली अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनायी थी. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने रवीन्द्र की अपील 2013 में खारिज करते हुये उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखी थी. शीर्ष अदालत ने इस तथ्य से सहमति व्यक्त की कि रवीन्द्र और पीडित के बीच समझौता हो गया है और वह दोषी के खिलाफ मामला आगे नहीं बढाना चाहती है और इसे बंद करना चाहती है क्योंकि अब दोनों की अलग अलग शादी हो चुकी है और उनके घर बस चुके हैं.

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