उदयपुर में प्रवासी व स्थानीय पक्षियों को बचाने में जुटे हैं ग्रामीण

उदयपुर : दक्षिणी राजस्थान के एक छोटे से गांव मेनार में ग्रामीण, पर्यावरण संरक्षण की एक नयी दास्तां लिख रहे हैं, जहां उन्होंने न केवल गांव के दो तालाबों में मछली पकड़ने पर रोक लगायी है, बल्कि उन्हें पूरी तरह पक्षियों के लिए संरक्षित किया गया है. मेनार गांव के सरपंच ओंकार मेनारिया ने बताया […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 20, 2014 12:03 PM
उदयपुर : दक्षिणी राजस्थान के एक छोटे से गांव मेनार में ग्रामीण, पर्यावरण संरक्षण की एक नयी दास्तां लिख रहे हैं, जहां उन्होंने न केवल गांव के दो तालाबों में मछली पकड़ने पर रोक लगायी है, बल्कि उन्हें पूरी तरह पक्षियों के लिए संरक्षित किया गया है. मेनार गांव के सरपंच ओंकार मेनारिया ने बताया कि गांव के लोग हमेशा से पर्यावरण के साथ-साथ गांव के दो तालाबों को प्रवासी एवं स्थानीय पक्षियों के लिए सुरक्षित रखते आए हैं.
उन्होंने बताया, ‘हमारे गांव के विरोध के कारण जिला परिषद और मछली पालन विभाग ने तालाब से मछली पकड़ने के लिए किसी को भी ठेका नहीं दिया है, क्योंकि मछली पकड़ने से तालाब में मछलियों की संख्या कम हो जायेगी जिससे प्रवासी और स्थानीय पक्षियों के भोजन की समस्या हो सकती है.’’ उप वन संरक्षक सुहेल मजबूर ने बताया, ‘‘मेनार गांव के लोगों ने प्रवासी और अप्रवासी पक्षियों के अनुकूल माहौल उपलब्ध करवाने के लिए तालाब को सुरक्षित करके पक्षी प्रेम का एक अद्वितीय उदाहरण पेश किया है.’’
मजबूर ने बताया कि उदयपुर की पिछोला झील, फतेहसागर झील, स्वरूप सागर झील, गोवर्धन सागर झील, उदय सागर झील तथा बड़ी झील जल संग्रहण स्थान है, जबकि उदयपुर में मेनार, वल्लभनगर, मंगलवार तथा सेई बांध जलग्रहण स्थान है.
जिला मछलीपालन अधिकारी लायक अली ने कहा कि उदयपुर के आसपास 122 तालाब हैं और मेनार के दो तालाबों सहित 47 ऐसे तालाब हैं, जहां मछली पकड़ने की निविदा नहीं दी जाती है.
अली ने कहा, ‘‘मेनार गांव के लोग चाहते हैं कि वहां के तालाब में मछली नहीं पकड़ी जाये, क्योंकि वहां प्रवासी पक्षियों का मछली भोजन है. ’’ घने वनों, प्राकृतिक तालाब, झीलांे के शहर उदयपुर में सर्दियों के मौसम में मध्य एशिया और यूरोप से विभिन्न प्रजाति के पक्षी जल क्षेत्र में बहुत बड़ी संख्या में आते हैं.
पक्षी प्रेमी और ‘ट्यूरोजियम एंड वाइल्ड लाइफ सोसायटी आफ इंडिया’ के सचिव हर्षवर्धन ने बताया कि प्रवासी पक्षियों के प्राकृतिक स्थान अब उदयपुर और उसके आसपास के क्षेत्र हो गये हैं, क्योंकि भरतपुर जिले में 29 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में फैले विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय पार्क में पानी की कमी के चलते प्रवासी पक्षी अपना स्थान बदल रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘विश्व प्रसिद्ध केवलादेव अभ्यारणय में पानी की कमी के चलते धीरे-धीरे पक्षियों की संख्या कम होती जा रही है और पक्षियों ने अपना रुख पानी वाली जगह डूंगरपुर, बांसवाडा और उदयपुर की तरफ कर लिया है.’’ एक अन्य पक्षी प्रेमी कमलेश शर्मा ने कहा कि इन जिलों में लगभग 250 तरह के पक्षी सर्दियों के मौसम में आते हैं. हमने ब्लैक नेक स्टोर्क, ओपन बिल स्टोर्क, एलबिनो डक्स और कई विलुप्तप्राय प्रजाति के पक्षियों को इस क्षेत्र में देखा है.
राजस्थान के दक्षिणी भाग में जहां लोग पक्षियों की देखभाल में जुटे हैं, वहीं हिरण और काले हिरण को बचाने के लिए पश्चिमी भाग के विश्नोई जाति के लोग इस काम में लगे हैं.
मेनारिया ने कहा, ‘‘हमारा गांव पक्षी प्रेमियों के लिए पंसदीदा स्थान के रूप में उभर रहा है, क्यांेकि गांव वालों ने अपने प्रयास से तालाब के आसपास कई पेड़ लगाये हैं, जिससे प्रवासी पक्षी अपना घर बनाकर वहां निवास कर सकें.’’ उन्होंने कहा, ‘‘तालाब के पानी को न तो हम पीने के पानी के रूप में उपयोग में लेते हैं और न ही इसे सिंचाई के रूप में काम में लिया जाता है. तालाब के आसपास कई पेड़ लगाये गये हैं और गर्मियों में जब तालाब का पानी कुछ कम हो जायेगा तब कुछ पेड़ तालाब के बीच में भी लगाये जायेंगे, जिससे अधिक संख्या में प्रवासी पक्षी अपना घांेसला बना सकें.’’ सरपंच ने कहा कि कुछ वर्षो से इन स्थानों पर प्रवासी पक्षियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिसका मुख्य कारण उनको उपलब्ध पर्याप्त भोजन और पर्यावरण संतुलन है.

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