भोपाल गैस त्रासदी के दोषी एंडरसन की मौत, भोपाल में जश्न

नयी दिल्ली : भोपाल गैस त्रासदी के बाद चर्चा में आये यूनियन कार्बाइड कंपनी के प्रमुख वॉरेन एंडरसन की अमेरिका में मौत हो गई है. न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी खबर के अनुसार 92 साल के एंडरसन की मौत 29 सितंबर को ही हो गई थी जिसकी घोषणा घर वालों ने नहीं की. उनकी मौत फ्लोरिडा […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 31, 2014 1:41 PM

नयी दिल्ली : भोपाल गैस त्रासदी के बाद चर्चा में आये यूनियन कार्बाइड कंपनी के प्रमुख वॉरेन एंडरसन की अमेरिका में मौत हो गई है. न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी खबर के अनुसार 92 साल के एंडरसन की मौत 29 सितंबर को ही हो गई थी जिसकी घोषणा घर वालों ने नहीं की. उनकी मौत फ्लोरिडा के वीरो स्थित उनके घर में हुई. इसकी पुष्टि पब्लिक रिकॉर्डो के जरिए हुई.

गौरतलब है कि 02 दिसंबर, 1984 को घटित भोपाल गैस त्रासदी आज भी लोगों के जेहन में जिंदा है. भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) का रिसाव हुआ जिसके कारण हजारो लोग काल के गाल में समा गए.सरकारी आंकड़ों की माने तो दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हज़ार लोग मारे गए थे. लेकिन हमेशा की तरह यह सिर्फ सरकारी आंकड़ा था और मरने वाली की संख्या और भी ज्यादा थी.

ब्रूकलेन के बढई के बेटे एंडरसन ने यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के शीर्ष पद तक का सफर तय किया था. भारत सरकार ने एंडरसन के प्रत्यर्पण के लिए कई अनुरोध किए थे और आधिकारिक तौर पर उन्हें भगौडा भी घोषित किया था. एक न्यायाधीश ने भी उन्हें ‘भगौडा’ कहा था.

एंडरसन दुर्घटना के चार दिन बात भोपाल पहुंचे थे और तत्काल गिरफ्तार कर लिए गए थे. लेकिन जल्दी ही जमानत भरने के बाद, वे फिर कभी मुकदमे का सामना करने के लिए लौटे नहीं. भोपाल त्रसदी की शुरुआत 2-3 दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि को उस समय हुई, जब कीटनाशी बनाने वाले संयंत्र में एक रासायनिक अभिक्रिया के चलते जहरीली गैसों का रिसाव हो गया, जो कि आसपास फैल गई.

मध्यप्रदेश सरकार ने इसके कारण कुल 3,787 मौतों की पुष्टि की थी. गैर सरकारी आकलन का कहना है कि मौतों की संख्या 10 हजार से भी ज्यादा थी. पांच लाख से ज्यादा लोग घायल हो गए थे, बहुतों की मौत फेफडों के कैंसर, किडनी फेल हो जाने और लीवर से जुडी बीमारी के चलते हुई.

वर्ष 1989 में, यूनियन कार्बाइड ने भारत सरकार को इस आपदा के कारण शुरु हुए मुकदमे के निपटान के लिए 47 करोड डॉलर दिए थे. द टाईम्स ने कहा, ‘‘अमेरिकी सरकार के समर्थन के चलते वह प्रत्यर्पण से बच गए. वह वीरो बीच, ग्रीनविच, कनेक्टिकट और न्यू यार्क के ब्रिजहैंप्टन स्थित अपने घरों को बारी-बारी बदलते हुए और चुपचाप रहते हुए विभिन्न दीवानी मामलों में जारी सम्मनों से चालाकी के साथ बचते रहे.’’

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