महिलाओं के लिए ईको-फ्रेंडली सैनिटरी पैड बना रहा यह स्टार्टअप

हमारेदेश में हर साल लगभग 12 अरब सैनिटरी नैपकिन कचरे के रूप में लैंडफिल में समा रहे हैं और वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कचरा पर्यावरण के लिए एक गंभीर चुनौती है. अधिकांश सैनिटरी नैपकिन सिंथेटिक सामग्री और प्लास्टिक से बने होते हैं, जिन्हें सड़ने में 50-60 साल से ज्यादा वक्त लग सकता है. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 19, 2020 9:50 PM

हमारेदेश में हर साल लगभग 12 अरब सैनिटरी नैपकिन कचरे के रूप में लैंडफिल में समा रहे हैं और वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कचरा पर्यावरण के लिए एक गंभीर चुनौती है. अधिकांश सैनिटरी नैपकिन सिंथेटिक सामग्री और प्लास्टिक से बने होते हैं, जिन्हें सड़ने में 50-60 साल से ज्यादा वक्त लग सकता है. ऐसे में बायोडीग्रेडेबल सैनिटरी नैपकिन समय की मांग है.

इसी कोशिश में लगा है उत्तराखंड के हल्द्वानी में स्थित एक स्टार्टअप,नामहै आरआई नैनोटेक. ये बायोडीग्रेडेबल सैनिटरी नैपकिन का निर्माण कर रहा है, जिसे फ्लोरिश पैड भी कहा जाता है. इनकी खासियत यह है कि ये इस्तेमाल के साथ ही पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हैं. इन सैनिटरी नैपकिन्स को जो चीज बाकियों से अलग करती है, वह है इनका बांस, केला कपास और बायोडीग्रेडेबल सैप जैसी प्राकृतिक चीजों से बना होना, जो इन्हे एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल बनाता है.

इसस्टार्टअप के सीईओ राजेंद्र जोशी के मुताबिकउनके सैनिटरी नैपकिन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें ग्रैफीन ऑक्साइड होता है, जो नियमित पैड की तुलना में पांच गुना अधिक मासिक धर्म रक्त सोख सकता है. यह पैड को गंध मुक्त बनानेके साथ महिलाओं को उन दिनों में दाने और खुजली से भी दूर रखता है.

दूसरी बात कि यह बायोडीग्रेडेबल है. इसका मतलब है कियह तीन से छह महीनों के भीतर ऊर्वरक में बदल जाता है. दूसरी ओर, पारंपरिक नैपकिन प्लास्टिक से बने होते हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक तो होते ही हैं, साथ ही इस्तेमाल में असुविधाजनक भी होते हैं. मासिक धर्म के समय इस्तेमाल किये जाने वाले इन नैपकीन को कूड़ेदान, खुले स्थान या और पानी में फेंक दिया जाता है, जला दिया जाता है या मिट्टी में दबा दिया है या फिर शौचालयों में बहा दिया जाता है.

इन्हें निबटाने के ये तरीके पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करते हैं. उदाहरण के लिए, जलने से डाईऑक्सिन के रूप में कार्सिनोजेनिक धुएं का उत्सर्जन होता है, जिससे वायु प्रदूषण का खतरा पैदा होता है. इस कचरे को लैंडफिल में डालने से केवल कचरे का बोझ बढ़ता है. अपनी बात आगे बढ़ाते हुए राजेंद्र कहते हैंकि बाजार में उपलब्ध ज्यादातर प्रोडक्ट्स ऐसे हैं, जो न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं, बल्कि मानव शरीर के लिए भी बहुत नुकसान पहुंचानेवाले हैं. ऐसे में हमारी सैनिटरी नैपकिन बायोडीग्रेडेबल सामग्रियों से बनी है, जो महिलाओं के अनुकूल भी हैं. 10 के पैक के लिए इन सैनिटरी पैड की कीमत 50 रुपये है.

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