नागरिकता संशोधन विधेयक : कांग्रेस, राकांपा, बसपा, सपा ने किया विरोध, जदयू व बीजद ने किया समर्थन

नयी दिल्ली : नागरिकता संशोधन विधेयक पर सोमवार को लोकसभा में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने विरोध दर्ज कराते हुए विधेयक पर पुनर्विचार की और इसमें मुस्लिम शब्द शामिल करने की मांग की, वहीं जदयू,लोजपा और बीजू जनता दल ने विधेयक का समर्थन किया. कांग्रेस ने […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 9, 2019 8:50 PM

नयी दिल्ली : नागरिकता संशोधन विधेयक पर सोमवार को लोकसभा में कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने विरोध दर्ज कराते हुए विधेयक पर पुनर्विचार की और इसमें मुस्लिम शब्द शामिल करने की मांग की, वहीं जदयू,लोजपा और बीजू जनता दल ने विधेयक का समर्थन किया.

कांग्रेस ने नागरिकता संशोधन विधेयक को असंवैधानिक एवं संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया और कहा कि इसमें न केवल धर्म के आधार पर भेदभाव किया गया है, बल्कि यह सामाजिक परंपरा और अंतरराष्ट्रीय संधि के भी खिलाफ है. चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा, यह विधेयक असंवैधानिक है, संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. जिन आदर्शों को लेकर बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने संविधान की रचना की थी, यह उसके भी खिलाफ है. उन्होंने कहा कि नागरिकता कानून में आठ बार संशोधन किया गया है, लेकिन जितनी उत्तेजना इस बार है, उतनी कभी नहीं थी. इसका कारण यह है कि यह अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 और 26 के खिलाफ है. तिवारी ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 किसी भी व्यक्ति को भारत के कानून के समक्ष बराबरी की नजर से देखने की बात कहता है. लेकिन यह विधेयक बराबरी के सिद्धांत के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि संविधान में किसी के साथ जाति, धर्म के आधार पर विभेद नहीं करने की बात कही गयी है तब नागरिकता देते समय भेदभाव कैसे किया जा सकता है. कांग्रेस सांसद ने कहा कि ऐसे में संवैधानिक दृष्टिकोण से यह सभी आधारों पर उचित नहीं है.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की सुप्रिया सुले ने कहा कि वह सरकार की मंशा पर सवाल नहीं उठा रहीं, लेकिन धारणाओं को लेकर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है. उन्होंने कहा कि मुस्लिमों में असुरक्षा का माहौल बन रहा है. क्या एनआरसी विफल हो गया है, इसलिए सरकार विधेयक लायी है? सरकार को देश के दूसरे सबसे बड़े समुदाय की चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए. सुले ने कहा कि गृह मंत्री ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में विधेयक पर सहमति की बात कही जो तथ्यात्मक रूप से गलत है, क्योंकि जेपीसी में इस पर कई सदस्यों ने असहमति जतायी थी. उन्होंने सवाल किया कि विधेयक लाने की तत्काल जरूरत क्या आन पड़ी. यदि पूर्वोत्तर को अभी शामिल नहीं किया जा सकता तो सरकार इसे इतनी जल्दबाजी में क्यों लायी. राकांपा सदस्य ने विधेयक वापस लेकर सरकार से इस पर पुनर्विचार की मांग की और कहा कि यह विधेयक संसद से पारित हो गया तो उच्चतम न्यायालय में नहीं टिकेगा.

बीजू जनता दल (बीजद) की शर्मिष्ठा सेठी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इस विधेयक को एनआरसी से नहीं जोड़ा जाये. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने इसमें श्रीलंका को भी शामिल करने की मांग की. बीजद सदस्य ने सुझाव दिया कि इसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी शामिल करने पर विचार किया जाये. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अफजाल अंसारी ने कहा कि यह संशोधन विधेयक संविधान की मूल भावना के विपरीत है इसलिए उनकी पार्टी इसका विरोध कर रही है. उन्होंने कहा कि जिन तीन देशों की बात हो रही है, उनमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं होने की बात ठीक हो सकती है, लेकिन यह भी कटु सत्य है कि भारत से पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों के साथ भी वहां के नागरिकों के समान व्यवहार नहीं किया जाता. अंसारी ने कहा कि सरकार इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के खिलाफ उन्हें पनाह देने की दरियादिली दिखा रही है तो थोड़ा और बड़ा दिल करके उसे मुस्लिमों को भी इसमें शामिल करना चाहिए.

तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नामा नागेश्वर राव ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि धार्मिक आधार पर नागरिकता देना संविधान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है. उन्होंने विधेयक में अन्य धर्मों के साथ मुस्लिम समुदाय को भी शामिल करने की मांग की. समाजवादी पार्टी (सपा) के एसटी हसन ने कहा कि यह विधेयक ऐसा लगता है कि एनआरसी की भूमिका निभा रहा है जिससे मुसलमानों में डर का माहौल है. उन्होंने विधेयक का विरोध करते हुए इस पर पुनर्विचार करने की और इसमें मुसलमानों को भी समाहित करने की मांग की. आईयूएमएल के पीके कुन्हालीकुट्टी और माकपा के एस वेंकटेशन ने भी विधेयक का विरोध किया. कुन्हालीकुट्टी ने कहा कि आज आजाद भारत के लिए काला दिन है और पहली बार ऐसा भेदभाव वाला विधेयक लाया गया है. इससे सरकार का सांप्रदायिक एजेंडा स्पष्ट हो जाता है.

जदयू ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह विधेयक किसी भी तरह से धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है. चर्चा में भाग लेते जुए जदयू नेता राजीव रंजन सिंह ने कहा कि सदन में कुछ लोग अपने-अपने हिसाब से धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा गढ़ रहे हैं. सिंह ने यह भी कहा कि इस विधेयक को लेकर पूर्वोत्तर के लोगों को कुछ शंकाएं थीं, लेकिन अब इन शंकाओं को भी दूर कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि जो लोग इतने समय से न्याय की आस लगाये हुए थे, उन्हें यह बड़ी राहत प्रदान करेगा. चर्चा में हिस्सा लेते हुए वाईएसआर कांग्रेस के नेता मिथुर रेड्डी ने कहा कि उनकी पार्टी विधेयक का समर्थन करती है. उन्होंने साथ ही कुछ चिंताएं व्यक्त की और कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सरकार इस पर ध्यान देगी.

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