अयोध्या मामले आज पुनर्विचार याचिका दायर करेगा जमीयत उलेमा-ए-हिंद

नयी दिल्ली : जमीयत उलेमा-ए-हिंद अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ सोमवार की दोपहर पुनर्विचार याचिका दायर करेगा . मुस्लिमों के इस प्रमुख संगठन के सूत्रों ने यह जानकारी दी. जमीयत की कार्यकारी समिति ने 14 नवंबर को पांच सदस्यों का एक पैनल गठित किया था जिसमें कानूनी विशेषज्ञ और धार्मिक मामलों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 2, 2019 2:51 PM

नयी दिल्ली : जमीयत उलेमा-ए-हिंद अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ सोमवार की दोपहर पुनर्विचार याचिका दायर करेगा . मुस्लिमों के इस प्रमुख संगठन के सूत्रों ने यह जानकारी दी. जमीयत की कार्यकारी समिति ने 14 नवंबर को पांच सदस्यों का एक पैनल गठित किया था जिसमें कानूनी विशेषज्ञ और धार्मिक मामलों के विद्वानों को शामिल किया गया था.

इस समिति का गठन उच्चतम न्यायालय के नौ नवंबर के फैसले के प्रत्येक पहलू को देखने के लिए किया गया था. जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी की अगुवाई में इस पैनल ने शीर्ष अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिका की संभावनाओं का अध्ययन किया और सिफारिश की इस मामले में समीक्षा याचिका दायर की जानी चाहिए. गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में संपूर्ण 2.77 एकड़ विवादित भूमि को रामलला विराजमान को सौंपने का आदेश दिया है.
पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने केंद्र को अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन देने का भी निर्देश दिया है. जमीयत बल्कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने कहा कि नौ दिसंबर से पहले एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाएगी. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड पुनर्विचार याचिका दायर करने के पक्ष में नहीं है. वक्फ बोर्ड ने यह भी कहा कि मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन स्वीकार करनी है या नहीं इस पर फैसला फिलहाल नहीं लिया गया है.
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामला मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने अयोध्या फैसले में समीक्षा याचिका दायर करने के एआईएमपीएलबी और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के फैसले को लेकर उन पर रविवार को हमला बोला था. नकवी ने कहा था कि शीर्ष अदालत की तरफ से मामले को खत्म कर दिए जाने के बाद वे ‘‘विभाजन एवं विरोध का माहौल” बनाने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि मुस्लिमों के लिए, महत्त्वपूर्ण मुद्दा सिर्फ “बाबरी (मस्जिद) नहीं है बल्कि शिक्षा, आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान के क्षेत्रों में बराबरी” है.

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