विदेशी राजदूत भी पढ़ रहे हैं भारत की जातियों का गणित, अपने हेडक्वार्टर को भेज रहे रिपोर्ट

भारत के वोटिंग पैटर्न को समझने की हो रही कोशिश दूतावास अधिकारी जाति का गणित समझने के लिए जुटा रहे आंकड़े आंकड़ों के लिए ज्यादा सफर नहीं कर रहे, ताकि लोगों की नजर में न आएं नयी दिल्ली : दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक अभ्यास है भारतीय चुनाव, जहां 90 करोड़ वोटर अपने नेता को […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 30, 2019 7:03 AM
भारत के वोटिंग पैटर्न को समझने की हो रही कोशिश
दूतावास अधिकारी जाति का गणित समझने के लिए जुटा रहे आंकड़े
आंकड़ों के लिए ज्यादा सफर नहीं कर रहे, ताकि लोगों की नजर में न आएं
नयी दिल्ली : दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक अभ्यास है भारतीय चुनाव, जहां 90 करोड़ वोटर अपने नेता को चुनते हैं. इस बार देश में किसकी सरकार बनेगी, इस ले कर काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है. देश की आगे की रणनीति क्या होगी? विदेश नीति क्या होगी. बीते कुछ साल में पीएम मोदी के कार्यकाल में विदेश नीति को लेकर बहुत कुछ चर्चाओं में रहा है. ऐसे में भारत में विभिन्न देशों के दूतावासों के अधिकारी किसी चुनावी पंडित की तरह इस चुनाव में जाति के गणित को समझने की कोशिश कर रहे हैं.
ये विदेशी अधिकारी देश की जातिगत डेटा इकट्ठा कर रहे हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि चुनावी पंडित किसी न्यूज नेटवर्क के लिए ऐसा करते हैं, जबकि ये विदेशी राजदूत अपने हेडक्वार्टर को इसकी रिपोर्ट भेजते हैं.
यूपी के नतीजों में दिलचस्पी
एक विदेशी राजदूत ने विशेष आग्रह पर बताया कि हमारा हेडक्वार्टर यूपी में वोटिंग पैटर्न को समझने को लेकर काफी उत्सुक है. भारत में महागठबंधन की सरकार होगी या भाजपा अपने सहयोगियों के साथ सरकार बनायेगी, इसे लेकर यूपी बेहद अहम रोल निभाने वाला है.
खाड़ी देशों की भी नजर
दक्षिण भारतीय राज्यों को लेकर भी इन राजदूतों की काफी दिलचस्पी है, इनमें से कई की मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई में पोस्टिंग है. भारत की अर्थव्यवस्था और डिफेंस में बड़ा योगदान देने वाले देशों के राजदूत इसमें खासी रुचि ले रहे हैं. अमेरिका और ब्रिटेन शुरू से ही भारत के चुनाव में काफी रुचि लेते रहे हैं, इस बार भी यह कोई अपवाद नहीं है. लेकिन इस बार कई अन्य एशियाई और खाड़ी देश भारत के चुनाव में दिलचस्पी ले रहे हैं.
युवा राजदूतों को सौंपी गयी जिम्मेदारी
राजदूत चुनाव से संबंधित जानकारी को जुटाने के लिए वह बहुत ज्यादा सफर नहीं कर रहे हैं, क्योंकि वह इस काम करते हुए पकड़े नहीं जाना चाहते हैं. चुनाव के ‘तापमान’ का अंदाजा लगाने की जिम्मेदारी खास कर युवा राजदूतों को सौंपी गयी है.

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