मोहन भागवत ने कहा – स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका, कई महापुरुष दिये

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि भारतीय समाज विविधताओं से भरा है, किसी भी बात में एक जैसी समानता नहीं है, इसलिए विविधताओं से डरने की बजाय, उसे स्वीकार करना और उसका उत्सव मनाना चाहिए. उन्होंने इसके साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस के योगदान […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 17, 2018 10:13 PM

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि भारतीय समाज विविधताओं से भरा है, किसी भी बात में एक जैसी समानता नहीं है, इसलिए विविधताओं से डरने की बजाय, उसे स्वीकार करना और उसका उत्सव मनाना चाहिए. उन्होंने इसके साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस के योगदान की भी सराहना की.

भागवत ने कहा कि कांग्रेस के रूप में देश की स्वतंत्रता के लिए सारे देश में एक आंदोलन खड़ा हुआ, जिसमें अनेक सर्वस्वत्यागी महापुरुषों की प्रेरणा आज भी लोगों के जीवन को प्रेरित करती है. ‘भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण’ विषय पर तीन दिवसीय चर्चा सत्र के पहले दिन सरसंघचालक ने कहा कि 1857 के बाद देश को स्वतंत्र कराने के लिए अनेक प्रयास हुए जिनको मुख्य रूप से चार धाराओं में रखा जाता है. कांग्रेस के संदर्भ में उन्होंने कहा कि एक धारा का यह मानना था कि अपने देश में लोगों में राजनीतिक समझदारी कम है. सत्ता किसकी है, इसका महत्व क्या है, लोग कम जानते हैं और इसलिए लोगों को राजनीतिक रूप से जागृत करना चाहिए.

भागवत ने कहा, ‘और इसलिए कांग्रेस के रूप में बड़ा आंदोलन सारे देश में खड़ा हुआ. अनेक सर्वस्वत्यागी महापुरुष इस धारा में पैदा हुए जिनकी प्रेरणा आज भी हमारे जीवन को प्रेरणा देने का काम करती है.’ उन्होंने कहा कि इस धारा का स्वतंत्रता प्राप्ति में एक बड़ा योगदान रहा है. सरसंघचालक ने कहा कहा कि देश का जीवन जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, तो राजनीति तो होगी ही और आज भी चल रही है. सारे देश की एक राजनीतिक धारा नहीं है. अनेक दल है, पार्टियां हैं. इसके विस्तार में जाये बिना उन्होंने कहा, ‘अब उसकी स्थिति क्या है, मैं कुछ नहीं कहूंगा. आप देख ही रहे हैं.’ भागवत ने कहा, हमारे देश में इतने सारे विचार हैं, लेकिन इन सारे विचारों का प्रस्थान बिंदु एक है. विविधताओं से डरने की बात नहीं है, विविधताओं को स्वीकार करने और उसका उत्सव मनाने की जरूरत है.

अपनी परंपरा में समन्वय एक मूल्य है. समन्वय मिलजुल कर रहना सिखाता है. उन्होंने कहा कि विविधता में एकता का विचार ही मूल बिंदु है और इसलिए अपनी अपनी विविधता को बनाये रखें और दूसरे की विविधता को स्वीकार करें. भागवत ने इसके साथ ही संयम और त्याग के महत्व को भी रेखांकित किया.। सरसंघचालक ने कहा कि संघ की यह पद्धति है कि पूर्ण समाज को जोड़ना है और इसलिए संघ को कोई पराया नहीं, जो आज विरोध करते हैं, वे भी नहीं. संघ केवल यह चिंता करता है कि उनके विरोध से कोई क्षति नहीं हो. भागवत ने कहा, ‘हमलोग सर्व लोकयुक्तवाले लोग हैं, ‘मुक्तवाले नहीं. सबको जोड़ने का हमारा प्रयास रहता है, इसलिए सबको बुलाने का प्रयास करते हैं.’

उन्होंने कहा कि आरएसएस शोषण और स्वार्थ रहित समाज चाहता है. संघ ऐसा समाज चाहता है जिसमें सभी लोग समान हों. समाज में कोई भेदभाव न हो. युवकों के चरित्र निर्माण से समाज का आचरण बदलेगा. व्यक्ति और व्यवस्था दोनों में बदलाव जरूरी है. एक के बदलाव से परिवर्तन नहीं होगा.

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