सदियों में पहली दफा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पूरा सूती कपड़े से ढंककर हुई भस्म आरती

उज्जैन (मप्र) : उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर के ज्योतिर्लिंग को क्षरण से रोकने के शीर्ष अदालत के निर्देशों के बाद सदियों में पहली बार यहां प्रात:काल होने वाली भस्म आरती के दौरान ज्योतिर्लिंग को सूती कपड़े से पूरी तरह ढंका गया. शुक्रवार को एक याचिका की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने भगवान […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 29, 2017 5:35 PM

उज्जैन (मप्र) : उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर के ज्योतिर्लिंग को क्षरण से रोकने के शीर्ष अदालत के निर्देशों के बाद सदियों में पहली बार यहां प्रात:काल होने वाली भस्म आरती के दौरान ज्योतिर्लिंग को सूती कपड़े से पूरी तरह ढंका गया. शुक्रवार को एक याचिका की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने भगवान महाकालेश्वर (शिव) मंदिर में स्थित देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक के क्षरण को रोकने के लिये इसकी पूजा-अर्चना संबंधि नये निर्देश जारी किये.

इनमें मुख्यतौर पर ज्योतिर्लिंग की सुबह होने वाली भस्म आरती के वक्त इसे सूती कपड़े से पूरा ढंकने तथा इसके जलाभिषेक के लिये प्रति दर्शनार्थी केवल 500 मिलीलीटर आरओ (रिवर्स ओसमोसीस) पानी का इस्तेमाल करने के निर्देश शामिल हैं. महाकालेश्वर मंदिर के प्रशासक प्रदीप सोनी ने कहा, हमने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश तुरंत प्रभाव से लागू कर दिये हैं. सदियों से यहां पवित्र राख से की जाने वाली भस्म आरती के दौरान ज्योतिर्लिंग को आधा कपड़े से ढंका जाता रहा है, लेकिन कोर्ट के निर्देश के बाद अब शनिवार से भस्म आरती के दौरान ज्योतिर्लिंग को पूरा कपड़े से ढंका जा रहा है.

सोनी ने कहा कि अब प्रत्येक दर्शनार्थी को केवल 500 मिलीलीटर आरओ पानी ही जलाभिषेक के लिये उपलब्ध कराया जा रहा है तथा शाम 5 बजे के बाद ज्योतिर्लिग की केवल शुष्क पूजा की ही अनुमति दी गयी है. महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी आशीष पुजारी ने कहा कि यह सदियों पुरानी परंपरा थी, भस्म आरती सदियों पुरानी परंपरा है और पहली दफा सुबह होने वाली यह आरती ज्योतिर्लिंग या शिवलिंग को पूरी तरह कपड़े से ढंक कर की गयी. यह उपाय शिवलिंग को क्षरण से बचाने के लिये किये जा रहे हैं.

महाकाल मंदिर के ज्योतिर्लिंग को क्षरण से रोकने के लिये दायर की गयी एक याचिका की सुनवाई करते हुऐ सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष 25 अगस्त को इसकी जांच के लिये विशेषज्ञों की एक समिति गठित की थी. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के सदस्यों और अन्य विशेषज्ञों वाली इस समिति ने महाकालेश्वर मंदिर के ज्योतिर्लिंग का अध्ययन करने के बाद शीर्ष अदालत को इसके आकार में होने वाले क्षय की संभावित दर और इससे बचाव के उपाय सुझाये थे.

विशेषज्ञ समिति के सुझावों के आधार पर मंदिर प्रबंधन समिति ने ज्योतिर्लिंग की पूजा अर्चना के संबंध में एक प्रस्ताव तैयार कर शीर्ष अदालत में पेश किया था. 27 अक्तूबर की सुनवाई में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अरुण मिश्रा और एल नागेश्वरा राव की युगलपीठ ने इस प्रस्ताव के 8 बिन्दुओं को स्वीकृति देते हुए ज्योतिर्लिंग की पूजा-अर्चना के संबंध में नये निर्देश जारी किये.

इन निर्देशों के तहत जलाभिषेक के लिये प्रत्येक दर्शनार्थी को केवल 500 मिलीलीटर आरओ जल उपलब्ध कराने, भस्म आरती के दौरान ज्योर्तिलिंग को पूरा कपड़े से ढकने, प्रतिदिन शाम पांच बजे के बाद ज्योतिर्लिंग को साफ कर इसके आसपास वातावरण शुष्क रखने और इसकी शुष्क पूजा करने तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को केवल 1.25 लीटर दूध या पंचामृत (शहद, दुध, दही, घी, तरल गुड) से अभिषेक करने के निर्देश दिये गये हैं.

इससे पहले सामान्य तौर पर शक्कर से रगड़कर की जाने वाली ज्योतिर्लिंग की पूजा को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है. इसके स्थान पर खांडसारी (शक्कर का चुरा) का उपयोग किया जा सकता है. नये निर्देशों के मुताबिक बिल्व पत्र और फूल ज्योतिर्लिग के केवल ऊपरी हिस्से पर ही रखे जा सकते हैं ताकि इसके पत्थर को बराबर हवा लगती रहे. सोनी ने बताया कि मंदिर परिसर में एक नया सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एक साल के अंदर स्थापित किया जायेगा तथा मंदिर के गर्भगृह का वातावरण नमी मुक्त एवं शुष्क रखने के लिये ड्रायर और पंखे लगाये जायेंगे.

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