Mahashivratri : सर्वत्र हो, शिव हो

Mahashivratri : भगवान शंकर को अनादि और अनंत माना गया है. शिव सर्वत्र हैं और आशुतोष हैं, शीघ्र प्रसन्न हो जाने वाले हैं. मानवता की रक्षा के लिए उन्होंने विषपान किया. उनकी पूजा में कोई आडंबर नहीं है. ऐसे भगवान की स्तुति करते हुए कवि शशांक ने यह कविता लिखी है. आज महाशिवरात्रि के अवसर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 8, 2024 1:06 PM

Mahashivratri : भगवान शंकर को अनादि और अनंत माना गया है. शिव सर्वत्र हैं और आशुतोष हैं, शीघ्र प्रसन्न हो जाने वाले हैं. मानवता की रक्षा के लिए उन्होंने विषपान किया. उनकी पूजा में कोई आडंबर नहीं है. ऐसे भगवान की स्तुति करते हुए कवि शशांक ने यह कविता लिखी है. आज महाशिवरात्रि के अवसर पर यह कविता प्रासंगिक है.

शिव हो

तुम्हीं तुम हो
सर्वत्र हो
शिव हो

अनादि हो ब्रह्म हो
अनंत आशीर्वाद का समुद्र हो
विराट कृपा की आकाश गंगा हो

शिव हो

आत्मसात हो
अहम् हो
ईश्वरत्व का विस्तार हो

शिव हो

अभिभावक का भाव हो
रक्षा का अभेद्य कवच हो
गणेश के हो पार्वती के हो

तुम हो
सर्वत्र हो
शिव हो
अक्षय हो
जय हो

भगवान शिव भी अद्भुत हैं।
अन्य ईश्वर व देवी देवता स्वर्णभूषणों से आच्छादित।
महलों में रहतें, स्वर्ण मुकुट धारी।रत्नजड़ित वस्त्र।
एवं भगवान शिव
कोई स्वर्ण भूषण नहीं
गले में सर्प।
पहाड़ो पर निवास करते।
कोई मुकुट नहीं।माथे पर चंद्रमा।
वस्त्र के रूप में व्याघ्र छाल।
तन पर धूनी।
परंतु सर्वाधिक दिव्य ।कपूर की तरह गौर वर्ण।
तथा परम निर्मल हृदय।
शुभकर्ता व विध्नहर्ता गणेश जी के जन्मदाता।
आनंद के सर्वोच्च स्वरूपों में से एक नृत्य संगीत के पुरोधा।
भूत पिशाच जिनके अनुचर।
अर्थात उनमे भी ईश्वर भक्ति देव भाव का सृजन करने वाले।
परम दयालु परंतु दुष्टों के प्रति क्रोधी,उनका दमन करने वाले।
सहज सरल।समस्त मनोकामना पूर्ण करने वाले।फक्कड़ भी महादानी भी।

हैं न शिव अद्भुत।

शिव एक संपूर्ण दर्शन है।
वर्जनाओं को तोड़ने वाले।
पूरे समाज को अंगीकार करने वाले।
सार्थक व समावेशी।
मानवीय मूल्यों के अधिष्ठाता।

हे शिव आपको कोटि कोटि प्रणाम।

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